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अधिकारी सुस्त, टैक्स माफिया सक्रिय

बिजनेस लिंक ब्यूरो

लखनऊ। प्रदेश सरकार के वाणिज्य कर विभाग में तबादला नीति घोषित होते ही बड़ी संख्या में उन अधिकारियों ने होलडाल बांध लिए हैं जिनका जिले का कार्यकाल पूरा हो गया है, वहीं जिन लोगों का पद का कार्यकाल पूरा हो गया है, उन्होंने अपने कक्षों का सामान बटोरना शुरू कर दिया है। इसी-बीच कई ऐसे भी लोग हैं जो मजधार में फंसे हैं, जिनको अपने स्थानान्तरण को लेकर संशय है।

ये संशय इसलिए है बरकरार है कि इस विभाग के लिए जो तबादला नीति में सत्र व साल की गणना विभाग के दिग्गज अधिकारी आज तक कभी कर ही नहीं सके ये बात अलग है कि ये अधिकारी सालों से बड़ी सफलता के साथ टैक्स की गणना कर रहे हैं। यही कारण है विभाग की आने वाली पीढ़ी जब जब तबादला नीति आएगी तब- तब विभाग में तबादलों को लेकर कितनी बार हल्दी घाटी का युद्ध लड़ा गया, उसका इतिहास जरूर पढ़ेगें।

फिलहाल ताजा हालात ये है कि जिन लोगों को अपने तबादले को लेकर संशय है, उन लोगों ने कोई विकल्प नहीं भरा है, उनका तबादला होगा कि नहीं इसको लेकर अब ज्योतिष गणना करवा रहे हैं क्योंकि विभाग के पास ऐसी कोई गणित नहीं है जो यह सिद्ध कर सके कि साल की शुरूआत किस तिथि से होती है और सत्र की गणना कैसे होती है।

जो अधिकारी सचल दल में तैनात है वह कुर्सी का मोह छोड़ चुके हैं क्योंकि उनको जरूर मालूम है कि उनका तबादला होना है, केवल उन 2009 बैच के उन अधिकारियों को छोड़कर जिनकी असिस्टेन्ट कमिश्नर पद पर पदोन्नति के बाद अक्टूबर माह में तैनाती हुई थी। ये अधिकारी भी दिन भर कक्ष में लगे कलेन्डर को देकर अंक गणित लगाते नजर आ रहे हैं। इन उथल- पुथल के बीच उन टैक्स माफियाओं को सहालग आ गयी है जो दिल्ली से बोगियों में टैक्सचोरी का माल भर कर ला रहे हैं और राज्य सरकार के टैक्स में सेंधमारी कर रहे हैं।
कमिश्नर अमृता सोनी के निर्देशन में स्थापना के अधिकारी समय पर तबादला सूची तैयार करके शासन को भेजने के लिए लगातार कार्य कर रहे हैं। इस बार कार्य की गोपनीयता व परदर्शिता को लेकर भी कोई सवाल नहीं खड़े हो रहे हैं।

इस बार भी यक्ष प्रश्न यही बना हुआ है कि सत्र व साल की गणना कैसे की गयी है। विभाग का यह विवाद आज का नहीं बिक्री कर के जमाने से चला आ रहा लेकिन इसके समाधान के लिए कोई उपाया निकाला ही नहीं जा सका। जिन अधिकारियों को ये संशय होता है कि उनका तबादला नहीं होगा तो वे ऑनलाइन अपना स्थान भरते ही नहीं है, अगर मुख्यालय की गणना के अनुसार उनका तबादला होना चाहिए तो ऐसे अधिकारियों को विकल्प भरने के लिए संदेश भेज कर बाध्य किया जाना चाहिए जिससे वह अपना भी पक्ष रख सकें। या फिर जिन अधिकारियों का तबादला होना है उनकी उनको ऑनलाइन पहले ही सूचित किया जाना चाहिए कि उनका तबादला होना है, लिहाजा वे विकल्प भरें, जिससे बाद में कोई विवाद खण्डा होने पर मामला कोर्ट तक न पहुंचे।

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हालाकि लखनऊ जोन कार्यालय में एडीशनल कमिश्नर ने एक नयी पहल की है, चंूकि कर्मचारियों के तबादले उनके स्तर पर होने है, इसलिए ऐसे कर्मचारियों की सूची जारी की गयी है जिनकी तबादले होने है और इन कर्मचारियों से अपत्तियां भी मांगी है कि अगर उनको कोई अपत्ति दर्ज करानी है तो तर्क सहित प्रस्तुत हों।

जानकारों की माने तो अगर यही नियम अगर मुख्यालय स्तर पर भी लागू हो जाए तो काफी हद तक तबादले शान्ति पूर्ण हो सकते हैं। इस समय हालात ये है कि रेलवे स्टेशनों पर चेकिंग केवल नाम के लिए ही चल रही है, रेलवे के जरिये मारी मात्रा में माल आ रहा है। पिछले दिनों कानपुर के ज्वाइंट कमिश्नर सुशील कुमार सिंह ने रेलवे स्टेशन पर अभियान चलाया था, जिसमें कालिंदी एक्सप्रेस का एसएलआर कोच जिसे रेलवे ने प्राइवेट पार्टी को दिया था, उसमें 69 नग माल टैक्सचोरी का निकला, इस माल को जब्त करने में विभाग व रेलवे के अधिकारियों के बीच घंटों विवाद चला। इसी प्रकार दिल्ली से चलकर गोरखपुर जाने वाली आमृपाली एक्सप्रेस में भी भारी मात्रा में टैक्सचोरी का माल लाए जाने की सूचनाएं लगातार मुख्यालय प्रशासन को मिल रही हैं। लेकिन कार्यवाही क्यों नहीं की जा रही ये भी बताने की जरूरत नहीं है।

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