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चाय पर भी देना पड़ेगा जीएसटी

tea copyआजकल हर व्यापार और कार्यालय मे एक चाय बेचने वाला होता है, और अमूमन वह अपना या तो मासिक बिल देता है या दैनिक बिल देता है। प्रतिदिन व्यापार या कार्यालय में इस तरह कि दैनिक आपूॢत करने वाले व्यापारी जिसमे स्टेशनरी वाला भी शामिल है। वह अपंजीकृत व्यापारी माना जाएगा यदि उस चाय वाले ने या स्टेशनरी वाले ने अपना पंजीयन जीएसटी में नहीं कराया है और यदि वह चाय वाला अपंजीकृत है तो उसका जीएसटी उस व्यापारी या कार्यालय को भरना पड़ेगा और उसके लिए बकायदे उस व्यापारी को खुद के नाम से, खुद को बिल भी जारी करना होगा। मतलब जिस चाय पर अभी तक कोई टैक्स नहीं दे रहे थे क्योंकि वह चाय वाला बिना टैक्स के आपको बिल दे रहा था, अब वह चाय वाला आपके द्वारा खुद से खुद को बिल निर्गत के माध्यम से सरकार कि निगरानी मे आ जाएगा। और सरकार ने जीएसटी रिटर्न के फारमैट में यह सुनिश्चित किया है कि वह व्यापारी जो कि चाय पीता है या किसी अपंजीकृत व्यापारी से माल खरीदता है उसकी पूरी डीटेल मतलब नाम पता फोन आदि सब अपने रिटर्न मे भरे ताकि जब उस अपंजीकृत व्यापारी का 20 लाख कई श्रोतों से पार कर जाए तो सरकार उसको ट्रैक कर सके। अब आप समझ सकते हैं कि जब जीएसटी का प्रभाव जब आपके चाय पर पड़ सकता है तो यह समाज के किन किन तबकों तक अपना प्रभाव डाल रहा है।

आज तक व्यापार के कई कार्यकलाप ऐसे थे जिसे व्यापारी बहुत हल्के में ले रहा था लेकिन जीएसटी आने के बाद उसे छोटी से छोटी चीज का ध्यान रखना पड़ेगा। उदाहरण, एक रेस्टोरेंट वाला है यदि उसने अपने स्टाफ को या खुद उस रेस्टोरेंट का खाना खा लिया उसे उस खाने पे खुद से खुद को बिल निर्गत कर के जीएसटी भरना पड़ेगा क्यूकि साधारणतया ऐसे व्यवसाय मे व्यापारी ने क्रय खरीद पर जीएसटी का क्रेडिट ले लिया है। देश के छोटे और मझोले व्यापारियों को यह समझना पड़ेगा कि जीएसटी कि जो अवधारणा है वह पुराने सभी अवधारणा को समाप्त कर के बनी है इसलिए पुराने नियम काम नहीं आएगा। अब तक कोई भी कर या तो उत्पादन या तो बिक्री या तो सेवा पे लगता था, अब जीएसटी इन तीनों पर नहीं लगेगा अब यह सिर्फ सप्लाई पर लगेगा। मतलब अगर आपने खुद से खुद के ब्रांच डिपो या वेयरहाउस को माल कि सप्लाई किया है जिसका अलग पंजीयन है तो भी आपको जीएसटी लगा के ही माल अपने ब्रांच डिपो या वेयरहाउस को सप्लाई करना पड़ेगा, मतलब माल बिना बेचे। जीएसटी बिना वसूले, जीएसटी भरना पड़ेगा। हां इसमे कोई क्रेडिट पड़ा होगा तो मिलेगा।

देश के छोटे और मझोले व्यापारियों को जिनका वाॢषक बिक्री 20 लाख से कम है, सरकार के प्रचार-प्रसार से उनको ऐसा लग रहा है कि जीएसटी उनपे नहीं लगेगा, जबकि यह पूरा सत्य नहीं है। पूरा सत्य यह है कि इस 20 लाख कि लिमिट का फायदा लेने के लिए कुछ शर्तें हैं जैसे कि अगर आपने दूसरे राज्य के एक भी व्यापारी को एक भी रुपये का बिल जारी किया तो यह 20 लाख कि लिमिट बेमानी है आपको पंजीयन करना पड़ेगा, अगर आपको कोई भी टैक्स रिवर्स चार्ज से भरना है या जीएसटी- टीडीएस भरना है तो आपको तुरंत पंजीयन करना पड़ेगा, अनिवासियों को तुरंत करना पड़ेगा यदि व्यापार करते हैं तो। ई कॉमर्स का व्यापार है या आप एजेंट है तो पंजीयन करना पड़ेगा। अगर आपने किसी ने कुछ भी सप्लाई कर दिया तो आपको पंजीयन कराना है। यहां 20 लाख कि लिमिट कि गणना के लिए ऐसा नहीं है कि सिर्फ आपकी बिक्री को जोड़ा जाएगा, इसमे व्यापारी कि एक पैन नंबर पे लिए गए जीएसटी नंबर द्वारा कि गई देश के सभी जगहों से कर योग्य बिक्री, कर मुक्त बिक्री, आंतरिक सप्लाई, गैर प्रदेश में आंतरिक सप्लाई या अपने एजेंट को सप्लाई आदि को जोड़ के गिनी जाएगी मतलब यह साधारण रूप में 20 लाख का कर मुक्त सीमा नहीं है। जहां तक कंपोजीशन स्कीम के 50 लाख की सीमा है पंजीयन नहीं कराने की वह तभी मिलेगा जब आप पंजीकृत व्यापारी से ही माल खरीदेंगे यहां तक उसकी चाय भी पियेंगे।

कन्स्ट्रक्शन या अन्य कंपोजीशन व्यापार मे यह संभव है क्या, मतलब कहीं न कहीं से व्यापारी को पंजीयन तो कराना ही पड़ेगा, इसलिए हर व्यापारी को जागरूक होना जरूरी है ताकि जीएसटी के लिए सज्ज हो सके। उदाहरण, देश मे गल्ला व्यापार बड़े पैमाने पर होता है और वहां कमीशन एजेंट होते हैं अब तक कमीशन एजेंट सिर्फ अपने कमीशन कि अकाउंटिंग करते थे अब उनके द्वारा कि गई सभी बिक्री और खरीद पर उन्हे जीएसटी लगेगा जो कि पूर्व मे नहीं था। सरकार बड़े पैमाने पर प्रचार कर रही है कि एक देश एक कर एक दर जबकि वास्तविक रूप मे ऐसा नहीं है। जीएसटी एक मॉडेल लॉ है जिसे हर प्रदेश को अपने विधान सभा मे पास करना पड़ेगा, मतलब भारत मे जीतने राज्य हैं उतने राज्य जीएसटी कानून होंगे हां उनके पैटर्न केन्द्रीय जीएसटी मॉडल ही होगा। मतलब वास्तविकता यह है कि 29 राज्य जीएसटी कानून होंगे दो केन्द्र शासित प्रदेश के जीएसटी कानून होंगे एवं एक केन्द्रीय जीएसटी कानून होगा कुल मिला के 32 जीएसटी कानून। और ऐसा भी नहीं है कि एक कर ही रहेगा कुछ चीजों पे पुरानी कर व्यवस्था लागू ही रहेगी अगर कोई मानव उपभोग वाले अल्कोहल व्यवसाय में है या पेट्रोलियम व्यवसाय में है।

साधारण रूप में एक दर भी नहीं है। दर भी श्रेणियों के हिसाब से छह हैं 0 प्रतिशत, पांच प्रतिशत, 12 प्रतिशत, १8 प्रतिशत, 28 प्रतिशत, ज्वेलरी पर नया रेट आने वाला है और 28 प्रतिशत के ऊपर सरकार सेस लगाएगी। व्यापारियों को इसकी रिटर्न की भी गंभीरता समझनी पड़ेगी अब समान्यतया व्यापारियों को हर महीने मे 3 रिटर्न भरना पड़ेगा और साल में एक मतलब साधारण व्यापारियों को 37 रिटर्न भरना पड़ेगा और अगर व्यापारी ने जीएसटी टीडीएस काटा तो इसका मासिक रिटर्न 12 और बढ़ जाएंगे मतलब 49 रिटर्न भरने होंगे। पूर्व कि व्यवस्था की तरह अब कोई भी जीएसटी रिटर्न व्यापारी रीवाइज नहीं कर सकता, किसी भी तरह का सुधार व्यापारी को अब डेबिट या क्रेडिट नोट के माध्यम से ही करना पड़ेगा। और तो और पहले व्यापारी अपने बिक्री और खरीद को टोटल के माध्यम से रिटर्न मे भरता था अब उसे एक एक बिल कि विवरण, साथ में पंजीकृत व्यापारी है तो उसका नाम पता जीएसटी नंबर प्रॉडक्ट या सेवा के नाम कि जगह उसका एचएसएन कोड एवं अन्य विवरण भरने पड़ेंगे मतलब यदि थोड़ा सा भी व्यापार बड़ा हुआ तो काफी समय खपाने वाला काम है।

हर सप्लाई का बिल अगले महीने कि 10 तारीख तक भर देना है और 10 के बाद 15 तक आप सप्लाई कि डीटेल भर नहीं पाओगे क्योंकि आपको 11 से 15 तक खरीद का एक एक बिल का विवरण भरना है जो औटोमेटिक नहीं आया है। फिर 16 और 17 तारीख को कोई सुधार हो उसको आप कर सकते हैं और अंत में 20 तारीख को नेट रिटर्न भरना है। इसके इनपुट टैक्स क्रेडिट लेने कि प्रक्रिया भी बड़ी जटिल है और कम्प्युटर बेस्ड हैं मतलब जब तक बेचने वाला सही आउटवर्ड रिटर्न भर नहीं देता है और जीएसटी का भुगतान नहीं कर देता है तब तक खरीददार को क्रेडिट नहीं मिलना है और यह भी ऑनलाइन ही मिलेगा जबकि पूर्व मे व्यापारी के पास अगर बिल है तो क्रेडिट मिल जाता था अब क्रेडिट सरकार का कम्प्युटर सिस्टम ही देगा। क्रेडिट लेने के लिए कागजी कारवाई भी बढ़ गई है।

कुल मिला का समस्या यह है कि इतना बड़ा परिवर्तन हो रहा है तो क्या टेबल के दोनों साइड के लोग तैयार हैं? सरकार तो तैयार है, क्या जनता तैयार है? क्या जनता के अकाउंटेंट तैयार हैं? देश मे 90 प्रतिशत टैक्स के सलाहकार वकील हैं उनके बीच सरकार ने कितने इंटैन्सिव वर्कशॉप चलाये? क्या देश का यह 90 प्रतिशत सलाहकार का फोर्स तैयार और ट्रेंड है? क्या सब लोगों ने इसके लिए अपनी अकाउंटिंग सिस्टम को अपग्रेड कर लिया है? क्या सभी तहसीलों में ट्रेनिंग और टीआरपी कि व्यवस्था कि गई है? यदि नहीं तो कैसे इम्प्लीमेंट करेगी सरकार। समस्या यह है कि जीएसटी एक आइडिया के रूप मे अच्छा है लेकिन यदि क्रियान्यवन फेल हुआ तो देश की अर्थव्यवस्था को बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। सरकार को कम से कम तहसील और वकीलों के स्तर पर लगातार कार्यक्रम चलाने पड़ेंगे। देश में सिर्फ सीए इंस्टीट्यूट ही है जिसने चार्टर्ड अकाउंटेंट को लगातार इसके लिए तैयार किया है वकीलों सहित अन्य सलाहकारों को सज्ज होना बाकी है। अंत मे लब्बोलुवाब यह है कि आपके लाभ हानि खाते के वेतन वाले मद को छोड़कर सारे मद में जीएसटी देना है। अगर पंजीकृत व्यापारी से वस्तु सेवा प्राप्त की हैं तो बिल पर भुगतान किया ही होगा और यदि अपंजीकृत से प्राप्त किया तो खुद आप भरिये। जीएसटी से कुछ भी अछूता नहीं रहेगा।

Pankaj jaiswalपंकज जायसवाल
लेखक, आर्थिक सामाजिक विश्लेषक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।

 

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