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जांच के घेरे में सिंचाई विभाग

अखिलेश सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना गोमती रिवर फ्रंट के खर्च का देना होगा हिसाब

जांच समिति के लिए लक्ष्य निर्धारित

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लखनऊ। सरकार ने तीन सदस्यीय समिति गठित करने के साथ ही जांच का लक्ष्य निर्धारित कर दिया है। समिति को परियोजना की लागत का सत्यापन, क्रियांवयन में विलंब के कारण लागत राशि के 95 फीसद खर्च होने के बावजूद मात्र 60 फीसद कार्य होने के लिए जिम्मेदार लोगों को चिन्हित करना, पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से योजना की उपयुक्ता, स्वीकृत मदों के विरुद्ध नियमानुसार भुगतान की स्थिति तथा परियोजना के क्रियांयवन में बरती गई वित्तीय अनियमितता की जांच कर आख्या देनी है। इस समिति को डेढ़ माह का मौका दिया गया है।

गौरतलब है कि 656 करोड़ रुपये की लागत से अनुमोदित हुई गोमती रिवर फ्रंट परियोजना की पुनरीक्षित लागत 1513 करोड़ रुपये पहुंच गई। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने अपने दौरे में जब सिंचाई विभाग के अधिकारियों से बातचीत की तो पता चला कि बढ़ी लागत में भी 95 प्रतिशत धन खर्च हो जाने के बावजूद परियोजना का 60 फीसदी काम ही पूरा हुआ है। मुख्यमंत्री ने गोमती नदी के जल को प्रदूषण मुक्त करने के बजाय अनेकों गैर जरूरी कार्यों पर अत्यधिक धनराशि खर्च करने और इन कार्यो को पूरा करने के लिए निर्धारित प्रक्रिया का पालन न किये जाने पर यह जांच कमेटी गठित की है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एक्शन में आने के बाद गोमती रिवर फ्रंट की जांच शुरू हो गई है। आयोग के गठन के साथ ही इसका आगाज हो गया है। रिवर फ्रंट का काम देख रहे अफसरों को आयोग को पाई-पाई का हिसाब देना होगा। अभियंताओं ने रिवर फ्रंट में खर्चा करने में कतई परवाह नहीं की। सिंचाई विभाग ने नदी की गाद निकालने में ही 54 करोड़ खर्च कर दिया। पक्का पुल से निशातगंज के बीच गाद निकालने का दावा किया गया था। गाद भी निकाली गई, लेकिन अब उसे निकालने की जो रकम खर्च दिखाई जा रही है, वह किसी के गले से नहीं उतर रही है। अनुपयोगी कार्य को कराकर सत्ता से जुड़े ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने में जुटे सिंचाई विभाग के अभियंताओं ने गोमती पर बनी डायाफ्राम वॉल के पीछे की एंकर दीवार बनाने में भी लापरवाही की थी।

यह दीवार सुरक्षा के लिए बनाई जानी थी। गोमती के दोनों तट पर कुल 15.8 किलोमीटर में डायाफ्राम वाल बनाई जानी थी, लेकिन नौ सौ मीटर की एंकर दीवार नहीं बन पाई। इसके लिए डायाफ्राम वाल के पीछे मिट्टी निकालने में लापरवाही बरती थी। इसके अलावा गोमती रिवर फ्रंट की खूबसूरती निखारने के लिए रंग-बिरंगी फव्वारे को करोड़ों रुपये लगाकर बाहर से मंगाया गया। एक फव्वारे की कीमत करीब 45 करोड़ बताई जा रही है। दरअसल पूरा प्रोजेक्ट ही अब सवालों के घेरे में है। अब देखना है कि जब आयोग अपनी जांच शुरू करेगा तो किन अफसरों और ठेकेदारों की गर्दन फंसेगी।

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