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जीपीएस की लाचारी, तेल की कालाबाजारी

  • नगर निगम के सारे दावे हवा- हवाई

  • जीपीएस सिस्टम फेल, नगर निगम में धड़ल्ले से तेल चोरी जारी

  • कंट्रोल रूम से निगरानी के बाद भी कैसे हो रहा खेल

  • निगम की सख्ती के बाद भी बेधकड़ है चोर कर्मचारी

लखनऊ। शहर को स्वच्छ और सुंदर बनाने का जिम्मा जिसके सिर पर है, वहां कर्मचारी तेल में खेल करने से बाज नहीं आ रहे है। पिछले कई सालों से कर्मचारियों को तेल चोरी करने की लत लग चुकी है। इस चोरी को रोकने के लिए तमाम जतन किये गये, पर कारगर एक भी साबित नहीं हुये। नतीजतन, शहर की तमाम व्यवस्थाएं चौपट होने के कगार पर है।

विदित है कि नगर निगम ने एक साल पहले तेल चोरी रोकने के लिए जीपीएस सिस्टम लगवाने का दम भरा था, जो अब लग रहा है? निगम के आंकड़ों के अनुसार छोटी- बड़ी कुल मिलाकर करीब 600 गाडिय़ां हैं, लेकिन अब तक जीपीएस केवल आधे में ही लग पाये हैं। सवाल ये खड़ा होता है कि आखिर इतना खर्चा करने के बाद भी नगर निगम सभी वाहनों को जीपीएस से जोड़ नहीं पाया है, जिसका नतीजा ये है कि आयेदिन गाडिय़ों से वाहन चोरी होने की घटनाएं सामने आ रही है। यदि समय रहते जीपीएस सिस्टम सभी गाडिय़ों में लगाये गये होते तो आज चोरी की घटनाओं से बचा जा सकता था।

सूत्रों की मानें तो वाहन चालक खुलेआम केन्द्रीय कार्यशाला के आसपास ही गाड़ी खड़ी कर तेल चोरी कर रहे हैं। यदि समय रहते इन पर लगाम लगाई जाती तो तेल का खेल कब का बंद हो चुका होता? कुछ महीने पहले ही पुलिस ने गोमती नगर में नगर निगम के कई कर्मचारियों को गाडिय़ों से तेल चोरी करके बेचते पकड़ा था। एफआईआर भी दर्ज हुई थी, लेकिन उसके बाद भी कर्मचारी अपनी हरकतो से बाज नहीं आये।

अब फिर तेल चोरी पकड़ी गई और कार्यदायी संस्था से तैनात दो कर्मचारी सूरज पाल और अरविंद कुमार को नौकरी से हटा दिया गया। एफआईआर भी दर्ज हुई। लेकिन जीपीएस पर सवाल न उठे उसके लिए निगम प्रशासन तेल चोरी के मामले को दबा दिया। चोरी के इस खेल में केन्द्रीय कार्यशाला के कर्मचारियों की मिलीभगत रहती है। इसके चलते ही यह थम नहीं रही है। जब- जब तेल के सौदागर पकड़े गये है तब- तब निगम पर सवाल खड़े हुए है। ऐसे में निगम द्वारा तेल चोरी रोकने के लिए उठाए गये कदम पर सवाल उठना लाजिमी है।

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सिस्टम से आगे हैं चोर

जीपीएस लगने के बाद तेल चोरी का एक नया मामला पकड़ा गया था। इसमें कर्मचारी ने गाड़ी के वाइपर को हटाकर उसके मोटर का कनेक्शन स्पीडोमीटर से कर दिया था। इससे वाइपर ऑन करने पर स्पीडोमीटर चल रहा था। सामने से वाइपर हटा दिए गए थे, इससे सामने से कुछ पता भी नहीं चलता था कि वाइपर का स्विच ऑन है। इसके जरिए चालक खुलेआम तेल चोरी कर रहा था, हालांकि अचानक गोपनीय शिकायत पर पकड़ा गया।

आधे पर शिकंजा, बाकियों पर मेहरबानी

एक साल में लगातार तेल चोरी पकड़े जाने के बाद कर्मचारियों पर कार्रवाई भी हुई। उनको नौकरी से निकाला गया, लेकिन वह बाज नहीं आ रहे हैं। इसको देखते हुए निगम प्रशासन ने बीते साल नया जीपीएस सिस्टम गाडिय़ों में लगाने का आदेश किया था। एक निजी कंपनी को यह काम दिया गया है, लेकिन तेल चोरी करने वालों के विरोध और उनकी मजबूत पहुंच के कारण यह काम पूरा ही नहीं हो पा रहा है। बीते करीब एक साल में नगर निगम की करीब 600 गाडिय़ों में से महज 300 में ही जीपीएस सिस्टम लग पाया। जिससे तेल चोरी पर लगाम नहीं लग पा रही है।

दावों की खुल रही पोल

नया जीपीएस सिस्टम लगाने का आदेश करते समय अफसरों ने दावा किया था कि अब यह भी पता चलेगा कि कितनी देर गाड़ी चली, कितने किलोमीटर चली। कितनी देर इंजन चालू रहा है और कितनी देर बंद रहा। नए सिस्टम में यह भी पता चलेगा कि कितनी देर गाड़ी स्टार्ट में खड़ी रही और कितनी देर इंजन बंद होने पर। टैंक में कितना तेल भरा गया था उसमें से कितना खर्च हुआ और कितना बचा। उसकी ऑनलाइन जानकारी नगर निगम के कंट्रोल मॅानीटर पर आती रहेगी। जिससे तेल चोरी आसान नहीं रहेगी, लेकिन यह सब हवाई साबित हो रहा है।

तेल चोरी में पकड़े गए कर्मचारियों को हटा दिया गया है, जिन गाडिय़ों में अभी जीपीएस नहीं लग पाया है उनमें उसे लगाने का काम जल्द पूरा कराया जाएगा। चोरी पर निगम की निगरानी बनी हुई है। आगे भी यदि तेल चोर बाज नहीं आये, तो सख्त कदम निगम को उठाना पड़ेगा।

इंद्रमणि त्रिपाठी, नगर आयुक्त

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