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भर्तियों की सीबीआई जांच में खुलेंगे राज

  • विधान सभा सत्र में बोले योगी, केवल शिक्षक भर्ती घोटाले में जेल में सड़ रहे हरियाणा के नेता
  • सपा सरकार में हुई भर्तियां, 2012 के बाद यूपीपीएससी से हुई नियुक्तियों की होगी जांच

uppscबिजनेस लिंक ब्यूरो

लखनऊ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सपा सरकार में हुई भॢतयों की सीबीआई जांच कराने का एलान किया है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि भर्तियों में धांधली की सारी जांचें होगी और कोई दोषी बचेगा नहीं। याद रखना केवल शिक्षक भर्ती घोटाले में हरियाणा के एक नेता ओमप्रकाश चौटाला दस वर्षो से जेल में सड़ रहे हैं। कागज जलाने से कोई बच नहीं सकता। विधानसभा में बजट चर्चा पर विपक्ष के सदस्यों का जवाब देते हुए योगी ने 2012 के बाद उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग यूपीपीएससी से हुई नियुक्तियों की जांच कराने की बात कही।

कहा, पिछली सरकार में यूपीपीएससी की ऐसी हालत कर दी गई कि आज इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। पौने दो घंटे के अपने भाषण में वह सपा, बसपा और कांग्रेस की सरकारों की खामियां गिनाकर प्रदेश की बदहाली के लिए निरंतर विपक्ष को जिम्मेदार ठहराया। योगी ने कहा कि पुलिस के डेढ़ लाख पद खाली हैं और दस वर्षो में कोई नियुक्ति ऐसी नहीं हुई जिस पर अंगुली न उठी हो। यह पद इसलिए नहीं भरे गए क्योंकि नीयत साफ नहीं थी।

उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग में 2012 से 2016 के बीच हुई तमाम भर्तियों की सीबीआई जांच कराने का निर्णय लिया है। इसकी घोषणा करते हुये सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा, पिछली सरकार के दौरान यूपीपीएससी की भॢतयों में जमकर गड़बड़ी हुई। सीबीआई जांच में जो भी लोग दोषी पाये जायेंगे उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी। सीएम योगी के इस निर्णय के बाद 2012 से 2016 के बीच भर्ती हुए करीब 15,000 कर्मचारियों की नौकरी जांच के घेरे में आ गई है, जिनमें पीसीएस अधिकारी, शिक्षक, चिकित्सक और इंजीनियर शामिल हैं।

आयोग की कार्य प्रणाली पर प्रतियोगी छात्रों ने समय-समय पर कई आरोप लगाये। प्रतियोगियों ने स्केलिंग में मनमानी के आरोप लगाये थे। एक ही विषय में एक समान अंक पाने वाले कुछ अभ्यॢथयों के स्केल्ड मार्क अधिक तो कुछ के कम कर दिये गये। परीक्षा केन्द्रों के निर्धारण मं भी जमकर मनमानी हुई। चहेतों की परीक्षा के लिए खास स्कूलों को सेंटर बनाया गया। पश्चिम के कुछ ऐसे जिलों में केन्द्र बनाये गये, जहां पीसीएस जैसी बड़ी परीक्षा के लिये सुविधायें न के बराबर थीं।

गौरतलब है कि अखिलेश सरकार के दौरान यूपीपीएससी में भर्ती को लेकर उठे विवाद में आयोग के चेयरमैन डा. अनिल यादव पर आरोप लगा था कि उन्होंने जाति विशेष के अभ्याॢथयों की भर्ती को प्राथमिकता दी, जिसे लेकर प्रदेश भर में यूपीपीएससी के खिलाफ छात्रों ने आंदोलन किया। हाईकोर्ट ने भी इस मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुये तत्कालीन अखिलेश सरकार को आड़े हाथों लिया। इसके बाद अखिलेश सरकार ने नवंबर 2015 में अदालत के निर्देश के आगे विवश होकर डॉ. अनिल यादव आयोग के चेयरमैन पद से को हटा दिया।

डॉ. अनिल यादव के हटने के बाद यूपीपीएससी का चेयरमैन अनिल यादव के कार्यकाल में आयोग के सदस्य रहे सुनील जैन को बनाया गया। बताया जाता है कि सुनील जैन को अनिल यादव की सिफारिश पर ही आयोग का चेयरमैन बनाया गया, इसलिये वह उनके ही इशारे पर काम करते रहे।

सूत्रों की माने तो डॉ. अनिल यादव और सुनील जैन ने यूपीपीएससी का चेयरमैन रहते जो भी काले कारनामे किये, उनकी लीपा पोती भी अपने कार्यकाल के दौरान ही कर डाली। बड़े स्तर पर चली घूंस और जाति के आधार पर हुई भॢतयों के साक्ष्यों को मिटाने के लिये परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाओं को जलवा दिया गया।

कोडिंग के नियमों में बदलाव
पीसीएस परीक्षाओं के साक्षात्कार में गोपनीयता पहली शर्त होती है। आयोग के पूर्व अध्यक्ष केबी पांडेय ने इसके लिए अपने कार्यकाल में कोडिंग का सिस्टम लागू किया था। डॉ. अनिल यादव के कार्यकाल में इसके नियम बदल दिए गए। अभ्यर्थियों का आरोप है कि इसके सहारे ही एक विशेष जाति के छात्रों को साक्षात्कार में अधिक अंक मिले। इससे लिखित में ज्यादा नंबर पाने के बावजूद सामान्य वर्ग के कई अभ्यर्थी सफल ही नहीं हो सके। आश्चर्यजनक रूप से पीसीएस में कापियां बदल जाने का भी एक मामला सामने आया। इसने अनियमितताओं की एक नई परत खोल दी। इसका पर्दाफाश पीसीएस मेंस 2015 में रायबरेली की एक अभ्यर्थी सुहासिनी बाजपेयी ने किया। सुहासिनी को पहले अनुत्तीर्ण घोषित किया गया था। बाद में उसे उत्तीर्ण तो किया गया लेकिन, साक्षात्कार में असफल करार दिया गया। प्रतियोगियों का कहना है कि कापी बदलने का यह इकलौता प्रकरण नहीं है। जांच में ऐसे कई और मामले सामने आ सकते हैं।

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