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योगीराज में न्याय नहीं, मिली मौत

  • savitaलम्बे समय तक राष्ट्रीय राजनीति की धुरी रहने वाले रायबरेली जनपद का मामला
  • डीएम कार्यालय परिसर में 14 दिनों तक अनशन करने वाले किसान नेता अमृत लाल सविता की मौत
  • जिला प्रशासन के किसी अधिकारी ने नहीं समझी अनशन पर बैठे किसानों से मुलाकात की जरूरत
  • मामला दबाने के लिये रातो-रात दे दिया गया मृतक किसान के परिवार को मुआवजा
  • मृतक किसान नेता के घर अब लगा जनप्रतिनिधियों का तांता

शैलेन्द्र यादव

लखनऊ। बदहाल किसानों को समृद्धशाली बनाने के लिये उनकी आय दोगुनी करने का दावा करने वाली भाजपा सरकार में न्याय के लिये अनशन पर बैठे किसान की मौत हो गई। मामला, लम्बे समय तक राष्ट्रीय राजनीति की धुरी रहे रायबरेली जनपद का है। जिलाधिकारी कार्यालय परिसर में 14 दिनों तक किसान नेता अमृत लाल सविता अपने साथी किसानों के साथ धरने पर बैठे रहे, लेकिन जिलाधिकारी सहित किसी भी अधिकारी ने अनशन पर बैठे किसानों से मुलाकात करने की जहमत तक नहीं उठाई। जब किसान की मौत हो गई, तो समूचा प्रशासनिक अमला हरकत में आया और मामला दबाने के लिये रातो-रात मृतक के परिवार को मुआवजा देकर अपने निकम्मेपन पर पर्दा डालने का असफल प्रयास करने में जुट गये।

जानकारों की मानें तो जनपद में किसान अपनी भूमि पर कब्जे के लिए तरस रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण किसान कल्याण एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष अमृतलाल सविता का प्रकरण है। जमीनी विवाद पर डलमऊ तहसील प्रशासन के उपेक्षित रवैये और दबंगों के जुल्मों सितम से आजिज होकर मृतक किसान नेता डीएम से न्याय पाने की आश में बीते चार जून को जिलाधिकारी कार्यालय परिसर में अनशन पर बैठा। पर, किसान नेता को न्याय नहीं, मौत मिली। 14 दिनों से अनसन पर बैठे किसान कल्याण एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष अमृत लाल सविता की हालत देर रात बिगड़ गयी, पुलिस जब तक उसे जिला अस्पताल लेकर पहुंची, उससे पहले ही उसकी मौत हो गई। तब अपनी नाकामी छिपाने के लिए प्रशासन सक्रिय हुआ। जिलाधिकारी संजय कुमार खत्री और पुलिस अधीक्षक सुजाता सिंह भारी पुलिस फोर्स के साथ घटनास्थल पर पहुंचे और मामले को शांत कराने की कोशिश करते रहे।

तमाम किसानों और किसान संगठनों ने इस मौत का जिम्मेदार जिलाधिकारी को ठहराते हुए कहा कि अगर डीएम समय रहते ध्यान देते तो किसान नेता की मौत न होती। साथ ही इस पूरे मामले के लिए उपजिलाधिकारी डलमऊ को भी जिम्मेदार बताया जा रहा है। अपने कार्यों को लेकर जिले में चर्चित हो चुके जिलाधिकारी संजय कुमार खत्री किसान नेता की मौत के बाद फिर सुर्खियों में है। प्रतिदिन अपने कार्यालय आने वाले जिलाधिकारी ने इस धरने के बाबत बातचीत करने की कोई जरूरत नहीं समझी, जबकि कलेक्टर से वार्ता को लेकर किसान संगठन के लोग अपना प्रदर्शन कर रहे थे। काफी प्रयासों के बावजूद भी जिला प्रशासन ने धरने को समाप्त कराने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किये। हां, किसान नेता की मौत के बाद अपने निकम्मेपर पर पर्दा डालने के लिये जिला प्रशासन जरूर जी-जान से जुटा रहा। तो वहीं सत्तारुण दल, विपक्ष सहित अन्य सामाजिक व किसान संगठनों के नेता भी अब मृतक के परिवार का ढांढस बंधाने पहुंच रहे हैं। इतना ही नहीं जिस दुर्घटना बीमा की राशि पाने के लिये आम आदमी की एडिय़ां घिस जाती हैं, वहीं राशि मौत के कुछ घंटे में ही दे देना, इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि किसान नेता अमृत लाल सविता की मौत में जिला प्रशासन कितना जिम्मेदार है?

किसानों ने खो दिया प्रशासन के खिलाफ लडऩे वाला अपना एक नेता
रायबरेली जनपद के किसानों ने डीएम दफ्तर से लेकर, बचत भवन व विकास भवन के चूबतरों पर अक्सर किसानों के हक की आवाज बुलंद करने वाले नेता को खो दिया है। वह किसान नेता जो किसानों के हक के लिए एक दो नहीं बल्कि कई वर्षों से संघर्ष कर रहा था। आए दिन किसानों के हक के लिए तहसील से लेकर जिला मुख्यालय तक प्रदर्शन करता रहता था। सिर पर किसान यूनियन वाली हरी और सफेद रंग की टोपी, कंधे पर गमछा लेकर हमेशा ही किसानों की बात करता था। तहसील प्रशासन हो या जिलाधिकारी कार्यालय या विकास भवन हर जगह किसानों के हित की बात किया करता था। किसानों के हित की बात करते-करते किसानों का वहीं नेता मौत के आगोश में समा गया।

एसडीएम डलमऊ से कई बार की शिकायत, पर नतीजा शून्य
किसान कल्याण एसोसिएशन के नेता अमृतलाल सविता लगभग एक दर्जन किसानों के साथ विगत 4 जून से कलेक्ट्रेट में धरने पर बैठे थे। सविता का आरोप था कि उनके खेत का रास्ता कुछ दबंगों ने बंद करा दिया है। दबंगों द्वारा रास्ता बंद किये जाने की शिकायत उन्होंने एसडीएम डलमऊ से कई बार की, लेकिन मामला जस का तस बना रहा, जिसके बाद न्याय की आस में जिलाधिकारी कार्यालय परिसर में अमृतलाल सविता ने धरना प्रदर्शन शुरू किया था। यह प्रदर्शन 14 दिनों तक चला। डीएम प्रतिदिन अपने वातानुकूलित कक्ष में विराजते रहे, पर चिलचिलाती धूप में अनशन पर बैठे किसानों की समस्या जानना उन्होंने उचित नहीं समझा। जानकारों की मानें तो अमृतलाल ने भी जिद ठान ली थी कि जब तक रास्ता नहीं मिलेगा तब तक वे अनशन पर डटे रहेंगे। लेकिन उसे क्या पता था कि अधिकारियों के पास किसानों की बात सुनने का समय नहीं है और न्याय पाने की यह जिद उसकी मौत का सबब बन जायेगी।

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