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अब सभी उद्योगों को लेनी होगी भूजल बोर्ड से एनओसी

भूजल के अति दोहन के कारण राजधानी लखनऊ में औसतन 74 सेमी प्रतिवर्ष नीचे जा रहा है स्तर

लखनऊ। अत्यधिक भूजल दोहन को नियंत्रित करने के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने आवासीय कालोनी बनाने वाले कालोनाइजर्स के साथ ही ऐसे सभी उद्योगों को जो कि उद्योग संचालन में भूजल का उपयोग करते हैं के लिए एनओसी/ कंसेन्ट जारी करने की शर्तोंकड़ी कर दी हैं। बोर्ड मुख्यालय ने निर्देश जारी किया है कि पर्यावरणीय क्लीयरेंस के लिए आवेदन करने से पहले बिल्डर्स/ कालोनाइजर्स को केन्द्रीय भूजल बोर्ड से इस बात का प्रमाणपत्र लेना होगा कि जिस जमीन पर कालोनी विकसित की जानी है, वहां पर जमीन से पानी लेने पर भूजल को खतरा नहीं है। भूजल बोर्ड द्वारा यह प्रमाणपत्र जारी न करने पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एनओसी नहीं देगा।

पुराने उद्योगों को भी यह निर्देश दिया गया है कि उनकी संचालन सहमति का नवीनीकरण तभी किया जाएगा जब वह भूजल उपयोग संबंधी क्लीयरेंस प्राप्त कर लेंगे। दिन प्रति दिन किये जा रहे भूजल दोहन से वाटर लेवल काफी नीचे जा रहा है। पानी की आपूर्ति करने वाले विभागों के साथ ही बड़े कालोनाइजर्स व उद्योग भी जल आपूर्ति के लिए मनमाने ढंग से भूजल का दोहन कर रहे हैं। अति दोहन के कारण राजधानी में औसतन 74 सेमी भूजल प्रतिवर्ष नीचे जा रहा है। इसी कारण केन्द्रीय भूजल बोर्ड ने लखनऊ को अति दोहित क्षेत्र के रूप में घोषित कर रखा है।

आवासीय कालोनी विकसित करके कॉलोनाइजर्स अपने नलकूप स्थापित करके मनमाने तरीके से भूजल का दोहन करते हैं। इसे नियंत्रित करने के लिए लखनऊ विकास प्राधिकरण ने बरसाती पानी को वापस जमीन में रिचार्ज करने के लिए रेन वाटर हाव्रेसिं्टग सिस्टम स्थापित करना जरूरी कर दिया है। रेन वाटर हाव्रेसिं्टग जरूरी होने के बावजूद मॉनीटरिंग के अभाव में यह उपाय प्रभावी नहीं हो पाया है।

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राजधानी में गोमती पार के पॉश इलाके गोमती नगर, इन्दिरा नगर, फैजाबाद रोड, कुर्सी रोड और सीतापुर रोड के इलाकों में अत्यधिक दोहन के कारण भूजल तेजी से नीचे जा रहा है। अधिकतर बड़े उद्योग भी मनमाने तरीके से भूजल का उपयोग करके धरती की कोख खाली कर रहे हैं। अपने स्तर से भूजल दोहन को नियंत्रित करने के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने उद्योगों को यह आवश्यक कर दिया है कि उद्योग को एनओसी/ कंसेन्ट तभी जारी की जाएगी जब वह केन्द्रीय भूजल बोर्ड से इस बात का सहमति पत्र प्रस्तुत करेगा कि औद्योगिक स्थल या विकसित की जाने वाली जमीन पर जल दोहन करने से ग्राउंड वाटर पर दबाव नहीं पड़ेगा।

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