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अहम पदों पर दागी काबिज

  • भ्रष्टाचार में जेल गये कई अफसर अहम पदों पर हैं काबिज
  • मनमोहन को बना दिया उप महाप्रबंधक, तो कई दागियों को सौंप दी आरएम की कुर्सी

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शैलेन्द्र यादव

बिजनेस लिंक ब्यूरो

लखनऊ। उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास निगम में योगी सरकार की स्थानान्तरण नीति के मार्ग दर्शक सिद्धांतों की खुलेआम धज्जियां उड़ रही हैं। इस सिद्धांत के मुताबिक, संदिग्ध सत्यनिष्ठा वाले कार्मिकों की तैनाती संवेदनशील पदों पर किसी भी स्थिति में नहीं की जायेगी। बावजूद इसके हालही में यूपीएसआईडीसी में हुये तबादलों में तमाम ऐसे अधिकारियों की अहम पदों पर ताजपोशी कर दी गई, जिनके विरुद्ध विभागीय अनुशासनिक कार्रवाई प्रचलित हैं। इतना ही नहीं अनियमितता के गंभीर आरोपों में इनमें से कई अधिकारियों पर जांच एजेंसियों की तहकीकात जारी है। बावजूद इसके निगम में कई दागी अधिकारी अहम पदों पर काबिज हो गये हैं।

सूत्रों की मानें तो मलाईदार पदों पर इन दागियों की डिमांड के मुताबिक तैनाती दी जा रही है। चहेते अधिकारियों को एक से अधिक पदों का प्रभार दिया जा रहा है। इतना ही नहीं, तकनीकि संवर्ग के अधिकारियों की ताजपोशी नॉन टेक्निकल पदों पर की जा रही हैं, जबकि इस संवर्ग के अधिकारियों की निगम में टोटा है। जानकारों की मानें तो घूस लेने के मामले में जेल भेजे गये मनमोहन के खिलाफ विजिलेंस की जांच चल रही है। यह मुकदमा अभी भी लंबित है। पर, यूपीएसआईडीसी प्रबंध तंत्र ने मनमोहन को कई अहम जिम्मेदारियां देते हुये उप महाप्रबंधक पीएम बना दिया है। साथ ही एमडी ने मनमोहन की झोली में कन्नौज स्थित इत्र प्रोजेक्ट समेत कई महत्वपूर्ण परियोजनायें डाल दी हैं।

योगी सरकार की तबादला नीति के मुताबिक, ऐसे किसी भी दागी अधिकारी को जब तक जांच पूरी न हो जाय अहम तैनाती नहीं दी जा सकती। ऐसे अफसरों को संदिग्ध की श्रेणी में रखा जाता है। फिर भी दागी अधिकारी को उप महाप्रबंधक बनाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश और राज्य सरकार की तबादला नीति का मजाक उड़ाया है। तबादलों में कई अधिकारी ऐसे भी हैं जिन्हें गंभीर प्रकरणों में निलंबित किया गया। विभागीय जांचों के साथ ही सीबीसीआईडी, सीबीआई सहित अन्य एजेंसियों की जांचे प्रचलित हैं बावजूद इसके निगम के अहम पदों पर इनकी ताजपोशी कर दी गई है। अब भला ऐसे में निगम को भ्रष्टचारियों से मुक्त कराने के प्रति गंभीर विभागीय मंत्री और प्रबंध निदेशक के सपने कैसे साकार होंगे।

भ्रष्टाचार का अड्डा था निगम, अब ऐसा नहीं चलेगा : महाना
बीते दिनों सूबे के औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना ने यूपीएसआईडीसी के ई-एप्लीकेशन पोर्टल लांङ्क्षचग कार्यक्रम में कहा, बीती सरकार में प्रदेश का औद्योगिक विकास विभाग मुख्यमंत्री के पास था। उनकी व्यस्तता और ध्यान न देने के कारण यह निगम भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया था। बिना अधिकारियों को समझे काम नहीं बनता था। लेकिन अब ऐसा नहीं चलेगा। सतीश महाना ने कहा, भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए ही पोर्टल की शुरुआत हुई है। यूपीएसआईडीसी में भ्रष्टाचार का यह आलम है कि कुछ अधिकारी संस्था से बड़े हो गए हैं। कंसल्टेंट को बिना काम किए करोड़ों के भुगतान किये गये। ट्रोनिका सिटी गाजियाबाद में इंजीनियरों ने लो लैंड में उद्योग लगवा दिये। इन्हीं स्थितियों को बदलने के लिए ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुझे इस विभाग की जिम्मेदारी सौंपी है।

क्या है सुप्रीम कोर्ट का आदेश
केसी सरीन वर्सेज सीबीआई चंडीगढ़ प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, अधिकारियों के गलत तबादले और भ्रष्टाचार को रोकने के लिये किसी भी ऐसे अधिकारी को अहम तैनाती तब तक नहीं दी जा सकती, जब तक केस का फैसला न आ जाय। इस आदेश के अनुसार भ्रष्टाचार के आरोपी किसी अधिकारी को जांच पूरी होने तक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी सकती। पर, यूपीएसआईडीसी में सब चलता है।

मनमोहन पर मेहरबान
विभागीय सूत्रों की मानें तो क्षेत्रीय प्रबंधक के पद पर रहते हुये मनमोहन को गिरफ्तार किया गया था। विजिलेंस की टीम ने आवंटी से तीन लाख रुपये घूस लेते हुए वर्ष 2010 में मुख्यालय में मनमोहन को दबोचा। इस मामले में मनमोहन को 60 दिनों तक कानपुर जेल में भी रहना पड़ा। इसके अलावा लखनऊ आरएम पद पर तैनात अधिकारी पर भी गंभीर जांचें प्रचलित हैं। निगम में ऐसे दागी अधिकारियों की फेहरिस्त लम्बी है।

तबादलों में हुई मनमानी, दागियों को मिली बड़ी कुर्सी
तबादला नीति के विपरीत यूपीएसआईडीसी में हुये तबादले चर्चा का विषय हैं। महज दो माह बाद रिटायर होने वाले आगरा में तैनात कार्यालय अधीक्षक महेश चंद्र शर्मा का भी तबादला बरेली कर दिया गया, जबकि नीति के मुताबिक ऐसे काॢमक जिनकी सेवानिवृत्त दो वर्षों में होने वाली है उन्हें इच्छित जनपद में तैनाती देने पर विचार करने की व्यवस्था है। इतना ही महेश चंद्र शर्मा अभी तक 90 फीसदी रिटायरमेंट फंड भी ले चुके हैं। नीति के मुताबिक, समूह ग के काॢमकों का प्रत्येक तीन वर्षों में पटल परिवर्तन कर दिया जाय। सूत्रों के मुताबिक, बिजली खण्ड में 10-10 साल से काॢमक एक ही पटल और शहर में डटे हुए हैं। पर, इनको टस से मस नहीं किया गया।

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