खरीदारों से पंजीकरण शुल्क के नाम पर मनमाना पैसा वसूल रहे वाहन डीलर
खरीदारों से चार पहिया के लिए 1500 जबकि दो पहिया के लिए 600-1000 रुपये वसूला जा रहा अतिरिक्त शुल्क
वाहन डीलरों के एजेंटों की सुविधा के लिए की गयी व्यवस्था को बना लिया गया कमाई का जरिया
वाहन डीलरों के जरिए बैक डोर से हो रही कमाई पर मौन धारण किए रहता है आरटीओ कार्यालय
वाहन पंजीकरण के लिए आरटीओ कार्यालय में होने वाले खर्च को राउंड फीगर में दिखाकर खरीदारों को किया जाता है गुमराह
लखनऊ। संभागीय परिवहन कार्यालय में वाहनों के पंजीकरण के नाम पर वाहन डीलरों ने लूट मचायी हुई है। डीलर, वाहन खरीदारों से आरटीओ में पंजीकरण कार्य के बदले लिए जाने वाले शुल्क से कई गुना अधिक की वसूली कर रहे हैं। आरटीओ व वाहन डीलरों की खरीदारों से वसूली का यह धंधा सालों से चल रहा है। वाहन डीलर संभागीय परिवहन कार्यालय की सरपरस्ती में इस खेल को बखूबी अंजाम दे रहे हैं। जिसके चलते आरटीओ कार्यालय और वाहन डीलरों की मिलीभगत से की जा रही वसूली का शिकार वाहन खरीदार बन रहे हैं। वाहन खरीदारों से पंजीकरण शुल्क के नाम पर कई गुना अधिक वसूली के बाद भी किसी डीलर के खिलाफ कार्रवाई न होना इसका बड़ा उदाहरण है। दरअसल, वाहनों के पंजीकरण कार्य के बदले खरीदारों से लिया जा रहा शुल्क संभागीय परिवहन कार्यालय के लिए मोटी कमाई का जरिया है। इसलिए सब कुछ जानते हुए भी संभागीय परिवहन कार्यालय अनजान बना हुआ है। सूत्रों की मानें तो इसकी खास वजह यह भी है कि वाहन डीलरों द्वारा खरीदारों से पंजीकरण के नाम पर लिए जा रहे ज्यादा पैसे का अधिकांश हिस्सा कार्यालय को भी जाता है। ऐसे में वाहन डीलरों द्वारा खरीदारों से की जा रही वसूली में बराबर का हिस्सेदार आरटीओ कार्यालय भी है। इसका नतीजा है कि मनमानी के बाद भी एक भी वाहन डीलर पर कार्रवाई का जज्बा संभागीय परिवहन कार्यालय का कोई भी अधिकारी नहीं दिखा पाया। जानकारों की मानें तो आरटीओ में वाहनों के पंजीकरण के नाम पर डीलरों को खरीदारों से किसी प्रकार का अतिरिक्त शुल्क लिया जाना निर्धारित नहीं किया गया है। हालांकि 1996-97 में परिवहन विभाग मुख्यालय की ओर से एक सर्कुलर जारी कर दो पहिया वाहन के लिए 50 रुपये व चार पहिया वाहन के लिए 200 रुपये अतिरिक्त शुल्क लिए जाना सुनिश्चित किया गया था। वाहनों के पंजीकरण के संबंध में आरटीओ कार्यालय जाने वाले डीलरों के एजेंट की सुविधा के लिए शुरू की गयी अतिरिक्त शुल्क की व्यवस्था को ही कमाई का जरिया बना लिया गया। आलम यह है कि आरटीओ कार्यालय की मिलीभगत से वाहन खरीदारों से डीलर मनमाना पैसा ले रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि मौजूदा समय में डीलर जैसा वाहन खरीदार उससे वैसे ही अतिरिक्त शुल्क की वसूली कर ले रहे हैं। चार पहिया के लिए 1500-1800 रुपए और दो पहिया वाहन के लिए 600 से 1000 रुपए लिए जा रहे हैं। मजे की बात तो यह है कि वाहन खरीदार को डीलर आरटीओ में होने वाले खर्च का ब्यौरा राउंड फीगर में बताते हैं। डीलर द्वारा वाहन खरीदार को गाड़ी के वास्तविक मूल्य व टैक्स के ब्यौरे वाली जो रसीद दी जाती है उसमें वाहन पंजीकरण के लिए आरटीओ में होने वाले खर्च को भी दर्ज किया जाता है। लेकिन यह खर्च डीलर रोड टैक्स, फार्म सहित अलग-अलग न लिखकर राउंड फीगर में रसीद पर दर्ज कर देते हैं। जिसके चलते वाहन खरीदारों को भी पता नहीं चल पाता कि आखिरकार डीलर हमसे अतिरिक्त शुल्क के रूप में कितना पैसा ले रहा है।
जानकर भी बने अनजान
आरटीओ कार्यालय की मिलीभगत से वाहन खरीदारों से डीलरों द्वारा वसूली किए जाने का सिलसिला वर्षों से चला आ रहा है। लेकिन वाहन खरीदारों द्वारा शिकायत न करने की आड़ में जिम्मेदार हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। आरटीओ कार्यालय में दलालों पर अंकुश और दलाली पर रोक लगाने का दावा सभी करते हैं, लेकिन बैक डोर से की जा रही इस दलाली पर अंकुश लगाने का नाम कोई नहीं लेता है। आरटीओ कार्यालय की मोटी कमाई का जरिया बने वाहन डीलरों को मनमानी की खुली छूट दी गयी है। वाहन डीलरों की इस मनमानी पर परिवहन मंत्री, प्रमुख सचिव से लेकर कोई भी जिम्मेदार अधिकारी सख्त कदम उठाने से परहेज करता है। जिसका नतीजा वाहन खरीदारों से मनमानी वसूली के रूप में सामने आ रहा है।
1996-97 में परिवहन विभाग मुख्यालय की ओर से वाहन डीलरों के लिए सर्कुलर जारी कर गाडिय़ों के पंजीकरण के लिए 200 रुपये निर्धारित किया गया था। उसी सर्कुलर के आधार पर काम चल रहा है। डीलरों द्वारा ज्यादा पैसा लिए जाने की शिकायत मिलती है तो उनका पंजीयन निरस्त करने की कार्रवाई की जाएगी। वाहन खरीदने वाले अवैध वसूली करने की एफआईआर करावें तो निश्चित तौर पर कार्रवाई की जाएगी। हालांकि डीलर वाहन खरीदारों को दी जाने वाली रसीद पर आरटीओ में होने वाले खर्च को राउंड फीगर में लिखते हैं, इसलिए मैचिंग नहीं हो पाती है।
संजय तिवारी
एआरटीओ, प्रशासन, लखनऊ आरटीओ