यूपीएसआईडीसी में भ्रष्टाचार का पर्याय बने मुख्य अभियंता
क्या खत्म होगा निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार
शैलेन्द्र यादव
लखनऊ। उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास निगम में भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुके मुख्य अभियंता के कारनामें जगजाहिर हैं। इनके मनमाने कार्यों में निगम के जिस प्रबंध निदेशक ने हस्तक्षेप किया, तो पलक झपकते ही उसका तबादला हो गया या फिर वह ‘पीआईएल वार’ से न्यायालयों की चौखटों की परिक्रमा में उलझा दिया गया। लिहाजा, कई तत्कालीन एमडी ने इनके मनमाने कार्यों को अनदेखा करने में भलाई समझी, लेकिन बीते आठ माह से वर्तमान प्रबंध निदेशक तमाम दबाव के बावजूद भ्रष्टचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। सूत्रों का दावा है कि इस बार भी राजनैतिक आकाओं के बूते वर्तमान प्रबंध निदेशक को हद में रहने की नसीहत दी गई, लेकिन इन पर इसका प्रभाव नहीं पड़ा।
यूपीएसआईडी के मुख्य अभियंता पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप हैं। फर्जी भुगतानों की लम्बी फेहरिस्त है। नामजद मुकदमें दर्ज हैं। बेनामी संपत्तियां सीज हुई हैं। सीबीआई और ईडी इनके पीछे है। यह जेल यात्रा पर भी जा चुके हैं। फर्जी डिग्री के आधार पर नौकरी हथियाने के आरोप में उच्च न्यायालय ने इन्हें बर्खास्त करने तक का आदेश दिया। पर, स्टे के प्रसाद से यह फिर अपनी चिरपरिचित कमाऊ कार्यशैली की अन्तहीन यात्रा पर कुलाचे भरते रहे हैं। बीते वर्ष निगम का दायित्व संभालने वाले एमडी अमित घोष इनकी मनमानी कार्यप्रणाली पर लगाम लगाने के लिये संघर्षरत हैं। अब देखना यह है कि बदली राजनीतिक परिस्थितियों में भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुके इस अभियंता पर पाबंदी लगती है या नहीं।
दिन दूनी, रात चौगुनी बढ़ी हैसियत
जानकारों की मानें तो चहेते ठेकेदारों को कागजी कार्यों पर करोड़ों के भुगतान, औद्योगिक भूखण्ड आवंटन, मानचित्र स्वीकृति और हस्तांतरण आदि जैसे कार्य बिना सुविधा शुल्क वसूले न करना इनकी कमाऊ कार्यशैली का हिस्सा रहा है। पिछले 15 वर्षों में इनकी आॢथक हैसियत दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ी। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राजधानी के समीप इनका एक भव्य इंजीनियरिंग कालेज है। साथ ही नोएडा, दिल्ली, लखनऊ, देहरादून में खड़ी आलीशान कोठियां इनकी कमाऊ कार्यप्रणाली को बख़ूबी बयां करती हैं।
‘पीआईएल वार’ से खूब बनाया गया दबाव
विधायिका और कार्यपालिका निरंकुश न हो इसलिये न्यायपालिका की व्यवस्था की गई। न्यायपालिका की अवधारणा है कि सौ गुनहगार छूट जाये पर किसी बेगुनाह को सजा न हो। जानकार बताते हैं कि न्यायपालिका की इसी खासियत का बेजा इस्तेमाल भी हुआ, समय-समय पर इसके कई उदाहरण सामने आये हैं। न्यायालय ने फटकारते हुये जुर्माना भी वसूला है। जनहित याचिका की आड़ में स्वहित साधने वालों पर भी न्यायालय समय-समय पर सख्त हुई है। पर, उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास निगम प्रबंध तन्त्र के निर्णयों पर पीआईएल दाखिल करना कुछ चुनिन्दा लोगों को बहुत पसंद है। यह इनका शगल बन गया है। जानकारों का कहना है कि जनहित याचिका दाखिल करने वालों की निष्पक्ष जांच हो, तो पता चल जायेगा कि वर्षों से यह खेल किसके इशारे पर खेला जा रहा है।