- निर्माण के औचित्य पर मंत्री ने उठाये थे सवाल
- बोले थे सतीश महाना, किसी को बक्शा नहीं जायेगा चाहे वह पूर्व विभागीय मंत्री ही क्यों न हो
लखनऊ। देश के राष्ट्रपति से लेकर सूबे के राज्यपाल तक और प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार विनाशक कार्यप्रणाली सख्ती से लागू करने का आवाहन कर रहे हैं। ऐसे में यूपीएसआईडीसी द्वारा बनवाई गई भ्रष्टाचार की इमारत के दोषियों पर कार्रवाई न होना चिंतनीय है। राजधानी के अमौसी औद्योगिक क्षेत्र में ठप पड़े निर्माणाधीन भवन का औचक निरीक्षण कर चार माह पूर्व सूबे के औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना ने भ्रष्टाचारियों पर सख्त कार्यवाई का ऐलान भी किया। साथ ही विभागीय प्रमुख सचिव और तत्कालीन प्रबंध निदेशक ने भी मौका मुआयना किया। बावजूद इसके अब तक कार्रवाई एक इंच भी आगे नहीं बढ़ी और न बढऩे की उम्मीद है। ऐसा विभागीय सूत्रों का दावा है।
राजधानी में निगम कैम्प कार्यालय प्रतिमाह 2 लाख 30 हजार रुपये के किराये पर संचालित है। इस किराये को बचाने के लिये 12३ करोड़ रुपये की लागत से कार्यालय भवन के निर्माण पर औद्योगिक मंत्री ने सवाल उठाते हुये कहा था, यह भवन क्यों बनवाया जा रहा है। इसका क्या औचित्य है। इस भवन के निर्माण में प्रथम दृष्टया अनियमितता प्रदॢशत होती है। इसकी जांच सक्षम अधिकारी से कराकर दोषी लोगों को बख्शा नहीं जायेगा, भले ही इस मामले में कोई पूर्व विभागीय मंत्री ही क्यों न शामिल हो। किसी को छोड़ा नहीं जायेगा। औद्योगिक मंत्री ने निर्माणाधीन भवन के बंद निर्माण कार्य पर भी नाराजगी जताई थी।
बीते अप्रैल माह में औद्योगिक विकास मंत्री ने औचक निरीक्षण कर दोषियों पर सख्त कार्रवाई के संकेत दिये थे, जिससे उम्मीद जगी थी कि यूपीएसआईडीसी के मनबढ़ अधिकारियों पर अब लगाम लगेगी। पर, लगभग चार माह बीतने के बावजूद औद्योगिक मंत्री के ऐलान पर होने वाली सख्त कार्रवाई अब तक फाइलों में कैद है। एक वरिष्ठ विभागीय अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, इस पूरे मामले में अब तक कोई प्रगति नहीं हुई है। इस प्रकरण की जांच चार माह पूर्व जहां थी, वर्तमान में भी वहीं पर खड़ी है।
गौरतलब है कि राजधानी के गोमती नगर स्थित पिकप भवन में स्थापित यूपीएसआईडीसी के कैम्प कार्यालय पर प्रतिमाह व्यय होने वाले दो लाख रुपये के अत्यधिक बड़े भार से निजात पाने के लिये जिम्मेदारों ने 123 करोड़ रुपये की परियोजना का पर्चा फाड़ दिया। उद्यमियों को मानचित्र, पर्यावरण क्लीरियंस आदि की स्वीकृति के लिये नाकों चने चबाने पड़ते हैं लेकिन इस कमाऊ परियोजना का मानचित्र बगैर भू-उपयोग परिवर्तन, अग्नि शमन व पर्यावरण क्लीरियंस के ही स्वीकृत करा लिया गया।
औद्योगिक विकास सम्बंधी निगम के कार्यों, शासन स्तर पर बेहतर समन्वय और औद्योगिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के नाम पर इस मनमाने प्रोजेक्ट की नींव रखी गई। यह परियोजना जिस विवादित अधिकारी के दिमाग की उपज है उनके कारनामें जगजाहिर हैं। बावजूद इसके इस गंभीर प्रकरण में शासन-प्रशासन का स्थायी इलाज से परहेज करना जहां निगम के मनबढ़ अधिकारियों के हौसले बुलंद कर रहा है, तो वहीं भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति को पलीता लगा रहा है। साथ ही प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार को समाप्त कर सुशासन स्थापित करने के सपने को तोड़ रहा है।
मनमानी की हद कर दी आपने
बीते वर्षों निगम के निदेशक मण्डल के समक्ष 123 करोड़ रुपये के भव्य कैम्प कार्यालय निर्माण का प्रस्ताव भेजा गया। इस परियोजना का निर्माण औद्योगिक क्षेत्र अमौसी में शुरू भी हो गया, लेकिन अभिलेखों में इस निर्माण की स्पष्ट स्वीकृति नदारद है। इस भूखण्ड का न तो भू-उपयोग परिवर्तित कराया गया और न यूपीसीडा से मानचित्र ही स्वीकृत कराने की जरूरत समझी गई। इतना ही नहीं इस व्यय को निगम के वाॢषक कार्ययोजना में सम्मिलित करना भी जरूरी नहीं समझा गया। बावजूद इसके इतने बड़े बजट की परियोजना प्रारम्भ हुई और चहेती फर्मों को करोड़ों के भुगतान कर दिये गये। फिलहाल, यह निर्माण अधर में लटका है।
कुकरेजा-अहलूवालिया पर मेहरबान रहे मुख्य अभियंता
यूपीएसआईडीसी के अभिलेखों में दर्ज सूचना के मुताबिक, मुख्य अभियंता ने 26 दिसम्बर 2014 को तत्कालीन प्रबंध निदेशक से 115 करोड़ रुपये की लागत के इस निर्माण का अनुमोदन लिया। मुख्य अभियंता ने नई दिल्ली के आॢकटेक्ट सीपी कुकरेजा को 17 नवम्बर 2014 को स्वीकृति पत्र जारी किया। स्वीकृति पत्र के मुताबिक, इस आॢकटेक्ट फर्म को चार स्तर में कार्य करना था और इसके लिये 4.50 करोड़ रुपये का भुगतान होना था। लेकिन, इस फर्म पर मुख्य अभियंता की मेहरबानी कुछ ऐसी हुई कि ठप पड़ी निर्माण परियोजना में फर्म को 473.10 लाख रुपये का भुगतान कर दिया। वहीं इस भवन का निर्माण करने के लिये नई दिल्ली की ही मैसर्स अहलूवालिया कान्सट्रक्शन ग्रुप को 10 अक्टूबर 2015 को अनुबंधित किया गया। इस फर्म को चार रनिंग पेमेण्ट में लगभग 22 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया गया। लेकिन इस फर्म ने निगम को 11.25 करोड़ रुपये की बैंक गारंटी जमा नहीं कराई।