सूबे में 24 घंटे बिजली बयानबाजी तक सीमित
बिजली की बढ़ी मांग के मुकाबले आपूॢत देने में ग्रिड अक्षम
प्रदेश की बिजली मांग को पूरा करने के लिए नहीं बढ़ायी गयी ग्रिड की क्षमता
सरकार की ओर से विद्युत आपूॢत के ढ़ांचे को दुरुस्त करने के लिए नहीं उठाया गये आवश्यक कदम
सार्वजनिक क्षेत्र के बिजलीघरों को लगाने में सरकारें नहीं दे रहीं ध्यान
लखनऊ। सूबे में 24 घंटे बिजली बयानबाजी तक सीमित रह गयी है। बिजली की मांग और उपलब्धता समेत इन्फ्रास्ट्रक्चर का आंकलन किए बिना सरकार का 24 घंटे बिजली देने का दावा शिगूफा बनकर रह गया है। हालिया दिनों में सूबे में बिजली की बढ़ी मांग ने इस बात को सच भी साबित कर दिया। प्रदेश का ऊर्जा विभाग और पावर कॉरपोरेशन प्रबंधन सूबे में बिजली की अप्रत्याशित मांग को पूरा करने में फेल साबित हुआ है। प्रदेश की बिजली मांग जहां 20,500 मेगावाट से अधिक पहुंच गयी तो वहीं उपलब्धता अधिकतम 17500 मेगावाट तक ही रही। सूबे की बिजली मांग को पूरा करने में फेल साबित हुई सरकार ने इसका ठीकरा पूर्ववर्ती सरकार पर फोड़ा। ऊर्जा मंत्री ने प्रदेश में मांग के मुकाबले बिजली आपूर्ति करने में ग्रिड की क्षमता को अक्षम बताया। यह भी कहा गया कि पिछली सरकार अगर ग्रिड की क्षमता बढ़ाती तो यह हालात न पैदा होते। सूबे में 6 महीने से सत्तासीन भाजपा सरकार ने पावर फार आल के तहत बिजली कनेक्शनों की संख्या बढ़ाने और हर घर बिजली पहुंचाने की मुहिम को तेजी से बढ़ावा दिया। पावर फार आल के तहत प्रदेश में दिए गए कनेक्शनों के आंकड़े प्रमुखता से पेश किए गए। आंकड़ों की बाजीगरी में उलझी सरकार इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने की दिशा में कदम बढ़ाना भूल गयी। चुनावी घोषणापत्र में सूबे में 24 घंटे बिजली आपूर्ति का वादा करने वाली सरकार के अब तक के 6 महीने के कार्यकाल में विद्युत आपूर्ति को लेकर कई तरह के बयान सामने आये हैं। कभी कहा गया कि हम प्रदेश में 24 घंटे विद्युत आपूर्ति के लिए कटिबद्घ हैं तो कभी कहा गया कि जिस जनपद में जितना कम लाइन लास उस जनपद को उतने घंटे बिजली। ऐसे में विद्युत आपूर्ति का हाल ही में उठा संकट प्रदेश में बेहतर विद्युत आपूर्ति के ढ़ांचे की सुदृढ़ता की पोल खोल रहा है। साथ ही 24 घंटे विद्युत आपूर्ति की दिशा में सरकार की नाकाम कोशिशों की कहानी भी बयां कर रहा है। इस संकट ने यह भी साबित कर दिया कि 24 घंटे बिजली आपूर्ति का दावा तो किया जा रहा है, लेकिन उस दिशा में जरुरी कदम उठाना अभी बाकी है।
निजी घरानों से बिजली खरीद का बड़ा खेल
सार्वजनिक क्षेत्र के बिजली घरों को बढ़ावा न देने के पीछे निजी घरानों से बिजली खरीद का बड़ा खेल है। कॉरपोरेशन सूत्रों की मानें तो वर्तमान सरकार भी सार्वजनिक क्षेत्र के बिजली घरों को बढ़ावा देने के पक्ष में नही है। सरकार की ओर से अभी तक ऐसा कोई कदम उठाया भी नहीं गया है। दरअसल उत्तर प्रदेश बिजली खपत का एक बड़ा हब है। सार्वजनिक क्षेत्र के बिजली घरों से मिलने वाली बिजली कुल खपत का आधा भी नही है। ऐसे में गर्मी के दिनों में पीक आवर में सूबे की बिजली मांग को पूरा करने के लिए केंद्रीय पूल से बिजली खरीदने का करार किया जाता है। निजी घरानों से अरबों रुपए की बिजली खरीदी जाती है। जिसमें करोड़ो रुपए का वारा-न्यारा मंत्री से लेकर अफसर तक करते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के बिजली घर प्रदेश की बिजली मांग को पूरा करने लगेंगे तो यह खेल बंद हो जाएगा।
मांग बढ़ी तो चरमरा गयी विद्युत आपूर्ति व्यवस्था
वर्तमान सरकार को भी प्रदेश में सत्ता संभाले हुए करीब 6 महीने हो गये हैं। इन 6 महीनों में सरकार की ओर से 24 घंटे विद्युत आपूर्ति के लिए पावर फार आल पर फोकस किया गया। लेकिन सरकार के ऊर्जा विभाग ने यह समझने की कोशिश नहीं की कि प्रदेश का विद्युत आपूर्ति तंत्र कितना सुदृढ़ है। प्रदेश में बिजली की मांग 20,000 मेगावाट के ऊपर पहुंच गयी। वहीं कॉरपोरेशन के पास 16,000 से 17,000 मेगावाट बिजली की ही उपलब्धता रही। प्रदेश की बिजली मांग और आपूर्ति में 3000 से 3500 मेगावाट बिजली का अंतर रहा। अन्य स्रोतों से बिजली उपलब्ध भी होती तो कॉरपोरेशन आपूर्ति नहीं कर पाता। इसकी वजह रही कि ग्रिड इससे अधिक बिजली सप्लाई कर पाने में सक्षम नहीं था। जिसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ा।
निजी घरानों पर निर्भरता बढ़ा रहा संकट
प्रदेश में उपभोक्ताओं की बढ़ती संख्या के साथ बढ़ रही बिजली की मांग के बावजूद सरकारें सार्वजनिक क्षेत्र के बिजली घरों को स्थापित करने की बजाय निजी घरानों पर अधिक निर्भर हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के ताप विद्युत गृहों से कम दर पर बिजली मिलने के बावजूद सरकारें उदासीन हैं। नतीजा विद्युत सेक्टर में निजी घरानों के बढ़ते प्रभाव के रुप में सामने आ रहा है। साथ ही उपभोक्ताओं तक बहुत महंगी दर पर बिजली पहुंच रही है।
बिजली की औसत दर भी बहुत कम
उप्र राज्य विद्युत उत्पादन निगम की तापीय इकाईयों से मिलने वाली बिजली की औसत दर भी बहुत कम है। इसकी तुलना अगर निजी घरानों से मिलने वाली औसत बिजली की दरों से की जाए तो इनमें बड़ा अंतर है। राज्य विद्युत उत्पादन निगम के ताप गृहों से मिलने वाली बिजली की औसत दर 3.45 रुपए है। वहीं निजी घरानों से मिलने वाली बिजली की औसत दर 6 रुपए प्रति यूनिट से कहीं अधिक है।
बिजली बहुत कम दर पर मिलती है
इकाई दर (रु.में)
अनपरा ए २.44
अनपरा बी 2.06
अनपरा डी 3.00
ओबरा ए 9.84
ओबरा बी 2.72
पनकी 6.48
हरदुआगंज 6.58
हरदुआगंज एक्सटेंशन 4.39
पारीछा 12.19
पारीछा एक्सटेंशन 4.11
बिजली घर क्षमता
अनपरा २६३०
ओबरा ११८८
हरदुआगंज ६१०
पनकी २१०
पारीछा ११४०
कुल ५७७८
अनपरा २१० मेगावाट
ओबरा ३८८ मेगावाट
पारीछा ११० मेगावाट
कुल ७०८ मेगावाट