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गंदगी और बदबू पर नियंत्रण नहीं?

  • जानकारी के बाद भी खामोश है प्रदूषण नियंत्रण बोर्डgomti

 

लखनऊ। केंद्र व प्रदेश सरकार के सख्त आदेशों के बाद भी गोमा माई के जल में कोई सुधार आने को तैयार नहीं है। प्रदेश की सरकारें तमाम दावे किये जा रहे है। नगर निगम और विकास प्रधिकरण को इसके संवारने का जिम्मा मिला हुआ है, लेकिन इसके प्रदूषित जल को स्वच्छ बनाने के लिए सरकार के पास कोई ठोस एक्सन प्लान नहीं है। जिसकी वजह से गोमती नदी दिनों-दिन न केवल प्रदूषित होती जा रही है बल्कि इसका बहता हुआ जल सीवरेज की बदबू का अहसास करा रहा है। हालांकि नदी के आसपास से प्रतिदिन लाखों लोग निकलते है, जिसमें मंत्री से लेकर प्रशासनिक अफसर भी होते है, लेकिन किसी को बदबू मारती गोमती की चिंता होती तो इसकी सूधी जरूर अफसरों को लेनी होती।

मिली जानकारी के मुताबिक स्लाटर हाउस प्रदूषण नियंत्रण मानकों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। कुंभ मेले के चलते राज्य सरकार के सख्त निर्देश भी हैं कि किसी भी उद्योग की गंदगी किसी भी प्रकार से नदी- नालों में न जाने पाए। राजधानी के एक कुर्सी रोड स्थित स्लाटर हाउस में पशुओं को काटने के बाद निकलने वाली गंदगी व खून सीधे फैक्ट्री के नजदीक रेठा नाले में जा रही है। यह नाला आगे जाकर गोमती में मिल जाता है। रेठा नाले के नजदीक बसे आधा दर्जन गांव के ग्रामीणों में गंदगी व बदबू से बूरा हाल हैं। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इस फैक्ट्री को वर्षो से कागजी शर्तें लगाकर रिनीवल कर रहा है। इसमें प्रमुख शर्त यही है कि स्लाटर हाउस पशुओं के काटने के बाद निकलने वाले गंदे पानी को ईटीपी में शुद्धीकरण करके उसे परिसर में केवल सिंचाई कार्य में ही प्रयोग करेगा। इसके विपरीत बूचडख़ाना सारी गंदगी सीधे नाले में फेक रहा है। खून और गंदगी युक्त यह पानी नाले के माध्यम से गोमती में मिलकर उसे भी प्रदूषित कर रहा है। गोमती के द्वारा स्लाटर हाउस की गंदगी गंगा में पहुंच रही है। स्थानीय लोगों ने ये भी बताया कि कई बार बूचडख़ाने के कर्मचारियों से बदबू से संबंधित शिकायतें भी की गयी, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है।

पुराने एसटीपी कब होंगे अपग्रेड
वर्तमान में भरवारा ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता 345 एमएलडी (मिलियन लीटर डेली) जबकि, दौलतगंज एसटीपी की क्षमता 56 एमएलडी की है। पुरानी तकनीक व सीमित क्षमता होने की वजह से यह वर्तमान जरूरत के मुताबिक गंदे पानी का ट्रीटमेंट करने में समर्थ नहीं हैं। इसी को देखते हुए नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत भरवारा और दौलतगंज सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को अपग्रेड करने के लिये 1677.87 की रकम मंजूर की गई है। इस रकम से भरवारा एसटीपी की क्षमता 100 एमएलडी जबकि, दौलतगंज एसटीपी की क्षमता में 59 एमएलडी का इजाफा किया जाना है, लेकिन अब तक इस ओर कोई कदम नहीं बढ़ सका है। इसके अलावा पुराने एसटीपी की तकनीक को भी अपग्रेड किया जाना प्रस्तावित है, जिसके बाद इन दोनों एसटीपी से ट्रीटमेंट किया हुआ पानी पीने लायक होकर बाहर निकलेगा। अपग्रेडेशन के बाद पांच नये नालों का पानी इन दो एसटीपी में डायवर्ट किये जाने का प्रस्ताव भी है, लेकिन कोई सुधी लेने वाला नहीं है।

शहर के लोगों का बदबू से बुरा हाल
गोमतीनगर जैसे राजधानी के कई मोहल्ले जो गोमतीनगर के किनारे बसे है, वहां गंदगी और बदबू से लोगों का बुरा हाल है। गोमती बैराज और गोमती नगर से प्रतिदिन आवागमन करने वाले लोगों का भी बुरा हाल है। सुबह- शाम वहां से निकलने पर बदबू का आलम है। कई दिनों से सेतु पर लगने वाली भीड़ भी इस बदबू और गंदगी के चलते गायब है।

गोमती में जा रहा 274 एमएलडी गंदा पानी
अभी राजधानी में हर रोज 675 एमएलडी सीवेज उत्पन्न होता है। भरवारा एसटीपी की क्षमता 345 एमएलडी व दौलतगंज एसटीपी की क्षमता 56 एमएलडी प्रतिदिन की है। ऐसे में 274 एमएलडी सीवेज व गंदा पानी बिना ट्रीटमेंट के ही गोमती नदी में गिर जाता है। इसके चलते गोमती का पानी लगातार प्रदूषित हो रहा है। माना जा रहा है कि दोनों एसटीपी की क्षमता में इजाफे और बिजनौर में नये एसटीपी के स्थापित होने से गोमती नदी को प्रदूषित होने से रोका जा सकेगा। लेकिन ये कब होगा कोई बताने वाला नहीं है।

सड़क के नीचे डाल रखा है पाइप 
कुर्सी रोड स्थित स्लाटर हाउस के संचालकों ने लोगों को धोखा देने के लिए फैक्ट्री के पीछे वाले हिस्से से एक मोटा पाइप मीरनगर गांव के नजदीक से बहने वाले रेठा नाले तक डाला हुआ है। यह पाइप कच्ची सड़क के नीचे लगभग 300 मीटर तक बिछाया गया है। फैक्ट्री से निकलने वाली सारी गंदगी इसी पाइप के माध्यम से नाले में गिरायी जाती है। पशुओं के सड़े- गले अंग इसी पाइप के माध्यम से नाले में आकर असहनीय बदबू करते हैं। हालात इतने बदतर हैं कि मीरनगर व राजापुर गांव पहुंचते ही नाक पर रुमाल रखना पड़ता है।

नर्क जैसी जिंदगी जी रहे आधा दर्जन गांवोंं के लोग
स्लाटर हाउस के नजदीक बसे गांव मीरनगर, बनौगा, राजापुर, महमूदपुर, भेड़हापुर व उमरा सहित अन्य गांवों में रहने वाले ग्रामीण इस गंदगी से सीधे तौर पर प्रभावित हैं। रेठा नाला भी इन्हीं गांवों के किनारे होकर निकलता है। यहां रहने वाले ग्रामीण नर्क से भी बदतर जीवन व्यतीत कर रहे हैं। गंदगी के कारण इन गांवों के लोग कई जानलेवा बीमारियों से पीडि़त हैं।

जिम्मेदारों को क्यूं नहीं दिखता प्रदूषण
नाले से आने वाली गंदगी सीधे गोमती से जाकर मिल रही है। लेकिन हैरानी इस बात कि है कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पुलिस व स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों को यह गंदगी क्यूं नहीं दिखती। ग्रामीणों की व्यथा सुनकर कोई भी कह सकता है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी प्रदूषण मानकों का अनुपालन केवल कागजों पर ही कराते हैं। गांव वाले चिल्ला-ल्लिाकर कह रहे हैं कि नाले में फैक्ट्री से खून व गंदगी के साथ ही कभी- कभी मांस के लोथड़े भी गिरते हैं। दर्जनों बार जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन तथा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों से शिकायत की गयी है लेकिन पैसों की ताकत से सभी शिकायतों को दबा दिया गया।

गोमती में ये नाले गिरते हैं
बरीकला, घैला, फैजुल्लागंज अपस्ट्रीम, फैजुल्लागंज डाउनस्ट्रीम, सहारा सिटी नाला, गोमती नगर, गोमती नगर विस्तार

इस मामले की गंभीरता से जांच करायी जाएगी। प्रदूषण मानकों का उल्लंघन मिलने पर स्लाटर हाउस के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के साथ ही क्षेत्रीय कार्यालय के अधिकारियों की भी जांच की जाएगी और संलिप्तता मिलने पर अधिकारियों के खिलाफ भी कठोर कार्रवाई की जाएगी।
आशीष तिवारी, सदस्य सचिव, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

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