- वाणिज्य कर सेवासंघ ने कमिश्नर को सौंपा ज्ञापन
- घर बैठे रिपोर्ट तैयार किये जाने पर खड़े हुए सवाल
- चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी संघ ने सीएम को भेजा शिकायती पत्र
लखनऊ। वाणिज्य कर विभाग में जीएसटी के अनुरूप पदों की संरचना के लिए प्रबंधन संस्था आईआईएम को दिये गए 69 लाख के बजट जिसका आधा भुगतान होने के बाद आईआईएम के प्रतिनिधि विभाग में तैनात अधिकारियों- कर्मचारियों की गिनती ही शुरू कर पाए हैं, विभाग की कार्य प्रणाली के कई ऐसे पहलू हैं, जिनका अध्यन किये बिना कैडर पुनर्गठन किया गया तो यूपी में जीएसटी प्रभावित हो जाएगी। उत्तर प्रदेश वाणिज्य कर सेवासंघ के अध्यक्ष राजवर्धन सिंह ने कमिश्नर वाणिज्य कर को ज्ञापन सौपकर पुर्नगठन प्रक्रिया को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। वहीं चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश सिंह यादव पहले ही सरकार से मांग कर चुके हैं कि कैडर पुनर्गठन की प्रक्रिया विभागीय अधिकारियों या शासकीय सुधार विभाग से करायी जाए। सवाल ये है कि जिन अधिकारियों ने 69 लाख का बजट दिये जाने की सिफारिश की है क्या वे विभाग की कार्य प्रणाली से वाकिब नहीं थे क्योंकि आईआईएम एक प्रबन्धन संस्था है और जीएसटी कर संग्रह का विभाग।
कमिश्नर अमृता सोनी को दिए गए ज्ञापन में अध्यक्ष ने तल्ख सवाल उठाए हैं कि क्या अभी तक किसी भी सरकारी विभाग में कैडर पुनर्गठन का कार्य आईआईएम से कराया गया है। सबसे महत्वपूर्ण सवाल ये है कि देश के सबसे बड़े राज्य यूपी के जीएसटी विभाग का कैडर पुनर्गठन होना है लेकिन आईआईएम के किसी भी प्रतिनिधि ने लखनऊ छोड़ किसी भी जिले में जाकर अध्ययन नहीं किया है जबकि अन्य जिलों की भौगोलिक स्थिति एवं कार्य प्रणाली में काफी अन्तर है। इसके अलावा जीएसटी में सबसे महत्वपूर्ण मासिक रिर्टन देने वाले डीलर्स, रिटर्न नॉन फाइलर्स, ई-वे बिल की रिपोर्ट के आधार पर रिटर्न स्क्रूटनी, ऑडिट का पूर्णता नया स्वरूप, प्रवर्तन कार्याें में बदलाव प्रथम एवं द्वितीय अपील के संबंध में हुए बदलाव एवं जीएसटी अधिनियम में उल्लेखित कार्यांे का अध्ययन किये बिना ही आईआईएम के प्रतिनिधि मानव सम्पदा का आकलन कैसे करेंगे? शासन को इस पर भी विचार करना चाहिए कि जीएसटी अधिनियम में वाणिज्य कर व केन्द्र सरकार के सेवा कार्य दोनों ही विभागों की कार्य प्रणाली में समानता होने के बाद ही सेवाकर विभाग ने अपना कैडर्र पुनर्गठन खुद कर लिया जबकि वाणिज्य कर विभाग में यह कार्य 69 लाख की धनराशि खर्च करके आईआईएम से कराया जा रहा है। कर संग्राह व इससे जुड़े कार्य तो वाणिज्यकर विभाग के अधिकारी करते ही है, इसके अलावा इसका भी अध्ययन जरूरी है कि विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों की ड्यूटी निर्वाचन कार्य में लगायी जाती है। कमिश्नर वाणिज्य कर इस प्रकरण भर भले ही खुलकर नहीं बोल रही है लेकिन प्रबंधन संस्थान को कैडर पुनर्गठन का कार्य दिए जाने पर वे भी हैरत में जरूर हैं।
सीएम ने दिये कैडर पुनर्गठन मामले की जांच के आदेश
वाणिज्य कर विभाग में जीएसटी के अनुरूप विभागीय ढांचे (कैडर्र पुनर्गठन) के लिए आईआईएम संस्था को दिए गए 59 लाख के ठेके काम मामला जनता दर्शन व समाचार पत्रों के माध्यम से मुख्यमंत्री के संज्ञान में आने पर सीएम ने एक सप्ताह में मामले की जांच रिपोर्ट प्रस्तुत किये के आदेश उप्र चतुर्थ श्रेणी राज्य कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कुमार यादव व राजकीय वाहन चालक संघ वाणिज्य कर का ज्ञापन जो की सीएम को जनता दर्शन कार्यक्रम में सौपा गया था, उस पर दिये हैं। वहीं उप्र वाणिज्य कर सेवासंघ के अध्यक्ष राजवर्धन सिंह ने भी कमिश्नर को ज्ञापन सौपकर कैडर्र पुनर्गठन का काम प्रबन्धन संस्था को दिये जाने पर सवाल खड़े किये हैं। सरकारी कोश से इतनी बड़ी धनराशि आवंटित किये जाने को लेकर बन रहे दबाव को देखते हुए अब ये आंकलन लगाया जा रहा है कि कैडर्र पुनर्गठन का काम आईआईएम से वापस लेकर शासकीय सुधार विभाग से यह काम कराया जाएगा।