- सॉफ्टवेयर तैयार होते ही करायी जाएगी डिजिटल मैपिंग
लखनऊ। किसी भी कॉलोनी या समूह आवास योजना के विकास से पहले जिले के विकास प्राधिकरण से क्षेत्र का लेआउट प्लान मंजूर कराना अनिवार्य है। पिछले कई सालों में लेआउट प्लान स्वीकृत किए बिना ही कालोनियां बन गईं। विकास कार्य तो अधूरे हैं हीं, वहां पर घर खरीदने वाले सुविधा से वंचित हैं। ऐसी सभी अवैध कॉलोनियों को रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर के माध्यम से गूगल मैप की फाइल में सुरक्षित किया जाएगा।
शहर में बिना ले आउट पास अनाधिकृत कालोनियां बनाने वाले कॉलोनाइजर और विकासकर्ताओं पर गूगल मैप के जरिए निगरानी की जाएगी। इसके लिए रिमोट सेसिंग एप्लीकेशन का सहारा लिया जाएगा। प्रमुख सचिव आवास एवं शहरी नियोजन नितिन रमेश गोकर्ण ने समस्त प्राधिकरणों को आवास बंधु को निर्देश दिए हैं। एक मई 2016 तक या उससे पहले बनी सभी अननाधिकृत कॉलोनियों की डिजिटल मैपिंग कराई जाएगी। सॉफ्टवेयर तैयार होते ही डिजिटल मैपिंग कराई जाएगी। हाल ही में प्रमुख सचिव आवास एवं शहरी नियोजन विभाग की अध्यक्षता में विकास प्राधिकरणों की समीक्षा बैठक के दौरान यह निर्देश दिए गए।
अनाधिकृत निर्माण के नियंत्रण के सम्बंध में विकसित की गई नई रिमोट सेंसिग तकनीकियों का प्रयोग करते हुए रियल टाइम में अनाधिकृत निर्माण की मॉनीटरिंग करने के लिए आवास एवं शहरी नियोजन विभाग ने अगस्त 2018 में ही शासनादेश जारी किया था। मगर किसी भी प्राधिकरण ने अभी तक इस सम्बंध में कोई कार्रवाई नहीं की। कानपुर, गाजियाबाद, उन्नाव, शुक्लागंज, गोरखपुर आदि विकास प्राधिकरणों की शांति रिमोट सेंसिग एप्लीकेशन सेंटर के माध्यम से सम्पादित कराने के आदेश दिए गए।
ट्रांसफर होने पर गूगल मैप से मिलेगी मदद
प्रमुख सचिव आवास एवं शहरी नियोजन के भेजे गये फरमान में स्पष्ट किया गया है कि ट्रांसफर होने पर गूगल मैप कॉपी का हस्तांतरण किया जाएगा। प्राधिकरण क्षेत्र को जोन में बांटकर अवैध कॉलोनियों की पड़ताल की जाएगी। केवल भू-माफिया, कॉलोनाइजर या डेवलपर ही नहीं, जिम्मेदार अफसर कार्रवाई से नहीं बच पाएंगे। कार्यकाल के दौरान विकसित हुई एक-एक अवैध कालोनी का डिजिटल ब्योरा रखा जाएगा। ट्रांसफर होने पर चार्ज के साथ ही गूगल मैप की प्रति का आदान-प्रदान करना पड़ेगा ताकि किस अधिकारी या कर्मचारी की तैनाती अवधि में कितना अवैध निर्माण हुआ यह तय रहे।