बिजनेस लिंक ब्यूरो
लखनऊ। विधानसभा चुनाव में मोदी का जादू मतदाताओं के दिल और दिमाग पर कुछ ऐसा चला कि भाजपा के लिये यह जीत इतिहास बन गई। तो वहीं छात्र राजनीति से अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाले कई धुरंधर नेता इस चुनावी दंगल में धरासाई हो गये। इन नेताओं ने विधान सभा चुनाव-2012 में जीत के साथ सत्ता में अपने रसूख का डंका बजाया लेकिन इस बार इन्हें हार का सामना करना पड़ा।
लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति से सियासी बुलंदियों पर पहुंचे अरविन्द सिंह गोप, धनंजय सिंह, पवन पाण्डेय और अभय सिंह इस बार विधानसभा नहीं पहुंच पाये। वही इलाहाबाद विश्वविद्यालय के 128 साल के इतिहास में पहली महिला अध्यक्ष चुनी गई रिचा सिंह भी चुनाव हार गई।
यूपी में इस बार करीब दो दर्जन नेता छात्र राजनीति से निकलकर सियासी समर में किस्मत आजमाई। इनमें से कुछ को जनता ने पसंद किया, तो कुछ को नकार दिया। ये नेता लखनऊ विश्वविद्यालय से लेकर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। यह छात्र नेता भाजपा, सपा, कांग्रेस और बसपा दांव लगाते रहे हैं।
अरविंद सिंह गोप को मिली हार
एलयू के छात्रसंघ से सर्वाधिक चर्चित चेहरों में से हैं। विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष के बाद गोप ने सपा से राजनीतिक करियर शुरू किया। विधायक बनने के बाद अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। गोप को सीएम अखिलेश यादव का करीबी माना जाता है। अखिलेश ने इन्हें बाराबंकी की रामनगर से प्रत्याशी बनाया लेकिन इस बार उन्हें भाजपा के शरद कुमार अवस्थी ने करारी शिकस्त दे दी।
अभय सिंह भी नहीं पहुंच पाए विधानसभा
लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति से निकला एक और नाम अभय सिंह है। बाहुबली छवि के अभय सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में नब्बे के दशक की अपराध में लिप्त छात्र राजनीति की उपज माने जाते हैं। विधान सभा चुनाव-2012 में पहली बार सपा के टिकट पर गोसाईगंज से विधायक बनने में कामयाब हुये, लेकिन इस बार अभय जीत दोहराने में नाकामयाब साबित हुए।
अयोध्या में जीत दोहरा न सके पवन
2012 से सपा को अयोध्या जैसी अहम सीट से जीत दिलाने वाले पवन पांडेय को सपा सरकार ने मंत्री पद का उपहार दिया। लेकिन इस बार पवन पांडेय जीत दोहरा नहीं सके। लखनऊ विश्वविद्यालय के उपाध्यक्ष रहे पवन की गिनती अखिलेश के करीबी नेताओं में रही है।
फिर रूठी धनंजय की किस्मत
उत्तर प्रदेश की राजनीति में बाहुबली नेताओं में शुमार धनंजय सिंह इस बार निषाद पार्टी के टिकट पर मल्हनी से चुनाव लड़े लेकिन किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया। लखनऊ विश्वविद्यालय के जमाने में कभी अभय सिंह और धनंजय सिंह की दोस्ती खासी चर्चा में रहती थी लेकिन समय बीतने के साथ ही दोनों अलग हो गए। धनंजय सिंह विधायक और सांसद रह चुके हैं, लेकिन इस बार वह चुनाव नहीं जीत सके।
- इन्हें मिली विजय
बृजेश पाठक
1990 में एलयू के छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे। बाद में बसपा ज्वाइन की। 2004 में उन्नाव से लोकसभा सांसद बने। 2009 में चुनाव हारने के बाद बसपा ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया। इस बार बृजेश पाठक ने भाजपा के टिकट पर लखनऊ मध्य से चुनाव जीत विधानसभा तक का सफर तय किया है।
शैलेश सिंह, शैलू
एलयू में महामंत्री से लेकर अध्यक्ष तक का चुनाव जीता। शैलू ने पहले बसपा ज्वाइन की, फिर भाजपा में चले गये। 2012 में बलरामपुर के गैसड़ी से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन हार गये। इस बार शैलू एक नजदीकी लड़ाई में बसपा के अलाउद्दीन को दो हजार मतों से हराने में सफल रहे।
उपेन्द्र ने अम्बिका को फिर दी मात
बलिया जिले के फेफना विधानसभा क्षेत्र के बीजेपी विधायक उपेन्द्र तिवारी ने एक बार फिर इस सीट पर कमल खिलाया है। उपेन्द्र छात्र जीवन में इलाहाबाद छात्रसंघ का चुनाव लड़े लेकिन सफलता नहीं मिली। लंबे समय के बाद 2012 विधानसभा चुनाव में जनता ने सर माथे पर बिठाया। एक बार फिर उपेन्द्र तिवारी ने बसपा में शामिल हुए सपा के दिग्गज नेता अम्बिका चौधरी को करारी शिकस्त दी।
कांग्रेस के गढ़ से विधानसभा पहुंचे धीरेन्द्र
धीरेन्द्र बहादुर सिंह रायबरेली की सरेनी विधानसभा से भाग्य आजमा रहे थे। उन्होंने बसपा के ठाकुर प्रसाद को करीब 13 हजार वोट से हराकर जीत का परचम लहराया। धीरेन्द्र लखनऊ विश्वविद्यालय और विद्यांत डिग्री कालेज के महामंत्री रहे।
ऋचा सिंह भी हारी
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के 128 साल के इतिहास में रिचा पहली महिला हैं, जो विश्वविद्यालय छात्रसंघ की अध्यक्ष बनीं। इलाहाबाद पश्चिम से समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी थी। ऋचा सिंह ने सिटिंग बसपा विधायक पूजा पाल को तो चुनाव में पछाड़ दिया लेकिन वह भाजपा के सिद्धार्थनाथ सिंह के हाथों हार गईं। ऋचा 2015 से 2016 तक इलाहाबाद छात्र संघ की अध्यक्ष रही।