आज पूरे देश में जीएसटी की चर्चा हो रही है साथ में चर्चा हो रही है जीएसटीएन की जिसे जीएसटी नेटवर्क कहते हैं। इस पूरे नए सिस्टम का भार इसी जीएसटीएन पर आने वाला है। वर्तमान दौर में जहां दशकों से चली आ रही रेलवे की नूतन ऑनलाइन व्यवस्था रेलवे रिजर्वेशन का व्यस्त समय पे भार नहीं उठा पाती है हैंग हो जाती है, अंतिम तारीख के समय इनकम टैक्स और सर्विस टैक्स की वेबसाइट भार नहीं उठा पाती है, ऐसे समय में यह और भी जरूरी हो जाता है की हम जीएसटीएन को जानें। अब तक ऐसी कोई भी सूचना तकनीक से संबन्धित व्यवस्था पूरी तरह से सरकार के नियंत्रण में होती थी, लेकिन यह पहली बार हो रहा है इस तरह का जीएसटी तंत्र जिसे पहले से चली आ रही 29 प्रदेशों की वैट व्यवस्था, केन्द्र की एक्साइज एवं सर्विस टैक्स व्यवस्था एवं अन्य करों की व्यवस्था को अपने में समाहित करना है। इसलिए एक नागरिक के तौर पर यह जानना जरूरी हो जाता है कि क्या यह व्यवस्था काम कर पाएगी और इस व्यवस्था कि जबाबदेही और स्वरूप क्या है।
स्वरूप एवं शेयरहोल्डिंग ढांचा
जीएसटीएन एक गैर सरकारी निजी एसपीवी कंपनी है जिसकी स्थापना कंपनी अधिनियम कि धारा 8 के तहत बिना लाभ कमाने वाली कंपनी के रूप में हुई है। इसकी स्थापना कांग्रेस काल में ही 28 मार्च 2013 को हो गई थी। इसकी अधिकृत पूंजी कुल 10 करोड़ रुपये है। कंपनी की स्थापना का मुख्य उद्देश्य जीएसटी के क्रियान्वयन में केन्द्र, राज्य, करदाताओं एवं अन्य जुड़े लोगों को सूचना तकनीक का सपोर्ट देना है। इस कंपनी में सरकार का शेयर 49 प्रतिशत होगा और अन्य का 51 प्रतिशत। इस 49 प्रतिशत में केन्द्र सरकार का 24.50 प्रतिशत, राज्य सरकार एवं ईन्पावर्ड कमेटी का 24.50 प्रतिशत, एचडीएफसी, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई, एनएसई स्ट्रेटेजिक इनवेस्टमेंट कंपनी का 10-10 प्रतिशत और एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड का 11 प्रतिशत शेयर है। हम आशा कर सकते हैं कि इन अन्य 51 प्रतिशत संस्थाओं को शेयर देते समय इनकी योग्यता एवं क्षमता का मूल्यांकन तत्कालीन सरकार और बाद में आने वाली मोदी सरकार ने कर लिया होगा। इसे निजी कंपनी के रूप में स्थापित करने कि सलाह ईन्पावर्ड कमेटी द्वारा ही गठित कि गई इकाई ईन्पावर्ड ग्रुप ने दी जिसके तत्कालीन चेयरमैन इंफोसिस से आये नन्दन नीलकेनी थे।
जीएसटीएन का वित्तीय ढांचा
जीएसटीएन की कुल शुरुवाती अधिकृत पंूजी 10 करोड़ रुपये है। इसे एकमुश्त ग्रांट के रूप में 315 करोड़ रुपये केन्द्र सरकार से मिलने हैं ताकि यह अपना आधारभूत ढांचा खड़ा कर सके, हालांकि इसके वेबसाइट पर यह उल्लेख नहीं है की यदि 24.50 प्रतिशत अंश धारिता रखने वाली केन्द्र सरकार 315 करोड़ का ग्रांट दे रही है तो 51 प्रतिशत की शेयर होल्डिंग रखने वाली निजी क्षेत्र की कंपनियां कितना ग्रांट दे रही हैं। मार्च 2016 तक केन्द्र सरकार 143,96,65,612 रुपये ग्रांट में दे चुकी है और उसमें से जीएसटीएन ने 62,11,94,054 रुपये खर्च किए हैं। इसके तकनीकी कार्य के लिए इंफोसिस को नियुक्त किया गया है जो की हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर उपलब्ध कराएगा। इसके भुगतान के लिए 315 करोड़ के अलावा जीएसटीएन को 550 करोड़ का लोन वाणिज्यिक बैंकों से लेने की व्यवस्था की गई है और इसकी गारंटी केन्द्र सरकार ने दी है।
जीएसटीएन का रेवेन्यु मॉडल
इसको अपने पैरों पर खड़ा करने के लिये इन शुरुआती पूंजीगत फंडिंग के अलावा इसके आय का मॉडल भी विकसित किया गया है जिसके तहत जीएसटीएन अपने सेवाओं के बदले सेवा शुल्क (यूजर फी) चार्ज करेगी। इस जीएसटीएन के उपभोक्ता होंगे करदाता, केन्द्र सरकार, राज्य सरकार, केन्द्र शासित प्रदेश, अन्य कर प्रशासक एवं बैंक। सेवा शुल्क (यूजर फी) का भुगतान फिलहाल केन्द्र एवं राज्य सरकार अन्य सेवा प्राप्तकर्ताओं की तरफ से वहन करेगी जिसका अनुपात 50:50 होगा। हालांकि जीएसटीएन की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के हिसाब से 12 अप्रैल 2012 की मीटिंग के बिन्दु संख्या पांच में करदाताओं से भी सेवा शुल्क लेने की बात कही गई थी।
जीएसटीएन का प्रशासकीय ढांचा
जीएसटीएन के बोर्ड में कुल 14 निदेशकों की नियुक्ति होगी, इन 14 में से छह सरकार की तरफ से निदेशक होंगे। इनमें तीन केन्द्र सरकार एवं तीन 29 राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में से चुने जाएंगे। सरकार की तरफ से निदेशक प्रतिनियुक्ति पर आएंगे। बाकी बचे आठ में से तीन गैर सरकारी निजी भागीदार कंपनियों से आएंगे। एक चेयरमैन होगा जिसे केन्द्र एवं राज्य सरकार मिलकर नियुक्त करेंगे। तीन स्वतंत्र निदेशक होंगे एवं एक सीईओ होगा जिसे खुली चयन प्रक्रिया के तहत चुना जाएगा। वर्तमान में इसके चेयरमैन 1975 बैच के आईएएस नवीन कुमार हैं और प्रकाश कुमार सीईओ हैं। प्रकाश कुमार 1985 से 2008 तक आईएएस के रूप में अपनी सेवा देश को दे चुके हैं, 2008 से 2013 तक सिस्को में बफे पोस्ट पर और 2013-14 में माइक्रोसॉफ्ट के राष्ट्रीय तकनीकी अधिकारी रह चुके हैं। कंपनी के नियमों के तहत रणनीतिक विषयों पर निर्णय लेने का अधिकार बोर्ड को होगा, किसी निर्णय पर अगर बराबर वोट के बंटवारे के कारण अनिर्णय की स्थिति आती है तो एक अतिरिक्त कास्टिंग वोट का अधिकार चेयरमैन को होगा।
यहां ध्यान देने योग्य तथ्य है की इसमें छह सदस्य और एक चेयरमैन ही सरकार के हैं। बोर्ड का कोरम तभी पूरा होगा जब इसके चार सदस्य उपस्थित होंगे और इन चारों में से कम से कम एक केन्द्र सरकार की तरफ से एक राज्य सरकार की तरफ से चेयर मैन जो की दोनों सरकारों की सहमति से होगा, का होना अनिवार्य होगा। साथ ही यह कोरम तभी पूरा माना जाएगा जब सभी निदेशकों में से कम से कम 50 प्रतिशत सरकार की तरफ से उपस्थित होंगे। किसी बड़े महत्वपूर्ण विषय पर विशेष प्रस्ताव की अनिवार्यता की गई है जिसमें कम से कम 75 प्रतिशत प्र्रस्ताव के पक्ष में वोङ्क्षटग अनिवार्य की गई है और ऐसे मसलों पर बिना सरकार के 49 प्रतिशत वोट समर्थन के कोई निर्णय हो ही नहीं सकता है। साथ ही साथ सरकार ने सभी शेयर होल्डर के साथ मिलकर एक अनुबंध भी बनाया है जहां सभी रणनीतिक महत्व के मुद्दों पर सरकार की सहमति अनिवार्य की गई है।
प्रशासन को बेहतर ढंग से चलाने के लिए वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर भेजा जाएगा, जिसमें फिलहाल दो सीबीईसी से, आठ राज्य सरकारों के कर विभाग से, एक भारतीय अंकेक्षण एवं लेखा सेवा से और एक केन्द्र सरकार की तरफ से भेजा गया है। जरूरत पडऩे पर और अधिकारियों को तैनात करने की व्यवस्था की गई है। जीएसटीएन जीएसटी इको तंत्र का फ्रंट एंड होगा और सीबीईसी एवं राज्यों के कर विभाग बॅक एंड होंगे। सीबीईसी एवं नौ राज्य अपना बॅक एंड खुद तैयार कर रहें हैं जबकि 20 राज्य एवं पांच केन्द्र शासित प्रदेश का बॅक एंड ढांचा जीएसटीएन तैयार कर रहा है।
पंकज जायसवाल- लेखक आर्थिक एवं सामाजिक विश्लेषक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।
यह सूचना जीएसटीएन की वेबसाइट से ली गई है।