आयु पूरी कर चुकी बसों से शासन-प्रशासन से लेकर नगरीय निदेशालय तक बेखबर
आयु पूरी कर चुकीं सिटी बसों से कभी भी हो सकता है हादसा
छोटी बसों की 5 तो बड़ी बसों की 8 साल निर्धारित है आयु
लखनऊ। शहर की लाइफ लाइन कही जाने वाली महानगरीय बसें जुगाड़ से चल रही हैं। आयु पूरी कर चुकी ये बसें जुगाड़ के मेंटीनेंस से ठीक होकर सड़कों पर फर्राटा भर रही हैं। लाइफ पूरी कर चुकी इन बसों की खोज खबर न तो शासन प्रशासन को है और न ही नगरीय निदेशालय को। ऐसे में यह कहना गलत न होगा कि संचालित की जा रही सिटी बसें कभी भी हादसे का शिकार हो सकती हैं। दिन ब दिन भयावह होते जा रहे हालात के बावजूद प्रबंधन हाथ पर हाथ धरे बैठा है। बसों के संचालन से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि नई बसों को खरीदने का बजट उनके पास है ही नहीं। ऐसे में आयु पूरी कर चुकी बसों को संचालित कर लोगों को सुविधा दी जा रही है। बताते चलें कि जवाहर लाल नेहरु नेशनल अर्बन रिनुअल मिशन के अंतर्गत सिटी बसों का संचालन राजधानी समेत सात महानगरों में शुरु किया गया था। हालांकि 260 बसों के बेड़े के साथ 2009 में सिटी बस का संचालन राजधानी और उससे सटे क्षेत्रों में किया जा रहा है। जेएनएनयूआरएम के अंतर्गत शुरु की गयी सिटी बस सेवा के संचालन को आठ वर्ष बीत गये, लेकिन इसके दिन नहीं बहुरे। राजधानी में 2009 में शुरु बस सेवा के बेड़े में 300 बसों को लाने की तैयारी थी लेकिन 260 बसें ही शहर को मिल सकी थीं। जिसमें 15 वातानुकूलित, 30 साधारण मार्कोपोलो बस, 90 टाटा बस और 125 मजदा बसें शामिल हैं।
नगरीय परिवहन निदेशालय के बाद भी स्थिति बदतर
अर्बन ट्रांसपोर्ट के अंतर्गत सिटी बसों का संचालन शुरु किया गया था और मंडलायुक्त की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गयी थी जिसमें नगर निगम, एलडीए विभाग भी शामिल था। 2015 में भारत सकरार की ओर से नगरीय परिवहन निदेशालय का गठन कर सिटी बसों को इसके अधीन ला दिया गया। नगरीय परिवहन निदेशालय के गठन का उद्देश्य शहर की परिवहन सेवाओं को अनुदान प्रदान कर इनका सुचारु रुप से संचालन कराना है। लेकिन इसके गठन के दो सालों बाद भी सिटी बसों के दिन नहीं बहुरे हैं। आलम यह है कि निदेशालय के गठन के समय से ही 40 नई बसों के बेड़े में शामिल किये जाने की बात हो रही है लेकिन अब तक बसें नहीं आ सकीं।
वर्कशॉप में ही खड़े-खड़े खराब हो गयीं 40 बसें
बसों के आ जाने के बाद इनका सही तरीके से संचालन नहीं किया जा सका। 40 बसें तो गोमती नगर स्थित सिटी बस वर्कशॉप में खड़े- खड़े ही खराब हो गयीं। बसों के मेंटीनेंस की जिम्मेदारी जिस संस्था के पास थी वह भी एक साल में ही चली गयी, जिससे सिटी बस प्रबंधन को ही इन बसों के मेंटीनेंस की जिम्मेदारी उठानी पड़ी। वर्कशॉप में जिन लोगों को रखा गया उनके पास टेक्निकल जानकारी नहीं थी। इससे जो बसें चल रही थीं उनमें भी जब खराबी आयी तो इन कर्मचारियों ने खड़ी बसों के उपकरण निकालकर इन बसों में लगा दिए। अब स्थिति यह है कि इन बसों की बॉडी ही कबाड़ के रुप में वर्कशाप में है।
करोड़ों की एसी बसें हुईं कबाड़
260 बसों के साथ शुरु हुई सिटी बस बेड़े में 15 वातानुकूलित बसें भी शामिल थीं। लेकिन वर्तमान समय में करीब 90 लाख रुपये कीमत वाली ये सभी बसें लगभग खराब पड़ी हैं। एक दो बसें जो संचालित भी हो रही हैं, उनकी भी हालत खस्ताहाल है। रास्ते में वे कब खड़ी हो जाएं कुछ कहा नहीं जा सकता। करोड़ों की इन बसों के पार्ट भी निकाले जा चुके हैं। जिसकी वजह से गोमतीनगर स्थित वर्कशाप में इनका ढ़ांचा ही रह गया है।
निर्धारित है बसों की आयु
सिटी बस सेवा की नियमावली में छोटी बसों की आयु पांच और बड़ी बसों की आठ साल निर्धारित की गयी है। ऐसे में देखा जाए तो छोटी बसों की आयु तीन साल पहले ही पूरी हो चुकी है। वहीं बड़ी बसें भी अपनी आयु पूरी कर चुकी है।
-सिटी बसें अपनी लाइफ पूरी कर चुकी है। इन्हें ठीक करके चलाने लायक बनाया गया है। इन बसों को सड़क से हटाने का आदेश अभी तक मेरे पास नहीं आया है। मैने अपनी रिपोर्ट सभी अधिकारियों को दे दी है।
ए. रहमान, प्रबंध निदेशक लखनऊ सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड
कुल सिटी बस-260
वर्कशॉप में खराब होने वाली बसें- 40 (जो कभी चली ही नहीं)
- अन्य खराब हो चुकी बसें 16
- ऑन रोड बसें 190
- बसों से यात्रा करने वाले मुसाफिर- 58000
- एमएसटी होल्डर- 18000
सिटी बसों के कुछ हादसे
- मोहनलाल गंज में सिटी बस का चलते समय टायर निकल गया
- गोमती नगर क्षेत्र में एक बस के गियर बॉक्स में आग लग गई
- महानगर में ब्रेक फेल होने से सिटी बस डिवाइडर पर चढ़ गई