शैलेन्द्र यादव
- बालाजी-गणपति के बाद अब अहलूवालिया पर दर्ज होगा मुकदमा
- निविदा में हेरा-फेरी के आरोप में यूपीएसआईडीसी प्रबंध निदेशक ने मुकदमा लिखाने के दिये निर्देश
- राजधानी के सरोजनी नगर थाने में जल्द दर्ज होगा मुकदमा
- अनुबंध होने के बाद जोड़ दी गई अलग से चार प्रतिशत वैट व सॢवस टैक्स की शर्त
- अधिकारियों का दावा निविदा खुलने तक नहीं थी यह शर्त
लखनऊ। साहब, ये यूपीएसआईडीसी है। यहां बदनाम लड्डुओं का भोग चट करने वाले चर्चित अधिकारी कौन सा खेल कब खेल जाय, यह समझना आसान नहीं। राजधानी के अमौसी औद्योगिक क्षेत्र में निर्माणाधीन प्रदर्शनी एवं कार्यालय भवन की आमंत्रित निविदा खुलने और अनुबंध होने के बाद कमाई का कारनामा सुनियोजित रूट से अंजाम दिया गया। शातिराना अंदाज से निगम की अभिरक्षा में रखे 112 करोड़ के अनुबंध की फाइलों में शर्तों को बदल दिया गया। निगम को भ्रष्टाचारमुक्त बनाने के अभियान में जुटे प्रबंध तन्त्र ने बेपर्दा हुये इस नये प्रकरण में भी महज ठेकेदार पर एफआईआर कराने का निर्देश देकर इस जालसाजी में शामिल निगम के मुलाजिमों को आक्सीजन दे दी है।
तत्कालीन प्रबंध निदेशक अमित घोष ने औद्योगिक क्षेत्र अमौसी के भूखण्ड संख्या-बी 9 में बनाये जा रहे भवन की निविदा और ठेकेदार को किये गये भुगतान की जांच के लिये फरवरी 2017 में एक कमेटी गठित की थी। इस समिति में वित्त नियंत्रक, अधिशासी अभियन्ता मुख्यालय, मुख्य प्रबंधक औद्योगिक क्षेत्र और अधिशासी अभियंता निर्माण खण्ड-7 को नामित किया गया। कमेटी की रपट में कई चौकाने वाले खुलासे हुये हैं।
यह रिपोर्ट तस्दीक करती हैं कि मेसर्स अहलूवालिया को 112 करोड़ का कार्य देने वाले इस प्रकरण की दाल में कुछ काला नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली है। कमेटी के मुताबिक, इस निविदा में नई दिल्ली की चार फर्मों ने हिस्सा लिया। मेसर्स अहलूवालिया की दरें निम्न होने पर सहमति के बाद 16 अक्टूबर 2015 को अनुबंध संपन्न हुआ। इस समय तक मेसर्स अहलूवालिया ने अलग से चार प्रतिशत वैट व सॢवस टैक्स का कोई उल्लेख नहीं किया। पर, बाद में मेसर्स अहलूवालिया ने इसका जिक्र करते हुये लगभग नौ प्रतिशत अधिक धनराशि का दावा कर दिया।
ठेकेदार ने इसका तर्क दिया कि उसने प्राइस बिड में इसका उल्लेख पहले ही कर दिया था। जबकि निविदा से जुड़े संबंधित अधिकारियों का कहना है कि इसका उल्लेख निविदा खुलने के समय तक नहीं किया गया था। समिति का मानना है कि इस प्रकरण में दो ही संभावनायें हो सकती हैं। पहली, ठेकेदार ने प्राइस बिड में दरों के साथ चार प्रतिशत वैट व सॢवस टैक्स की शर्त भी अंकित की हो, लेकिन टेण्डर खोलने वाले तत्कालीन अधिशासी अभियंता मुख्यालय ने इसको संज्ञान में न लिया हो।
दूसरी, संभावना यह हो सकती है कि निविदा प्रक्रिया संपन्न होने के बाद ठेकेदार ने चार प्रतिशत वैट व सर्विस टैक्स की शर्त अलग से जोड़ दी हो। समिति ने सिफारिश करते हुये आगे लिखा है, इन दोनों ही परिस्थितियों में तत्कालीन अधिशासी अभियंता मुख्यालय एवं तत्कालीन उप प्रबंधक लेखा से स्पष्टीकरण लिया जाना उचित होगा, जिसके बाद ही अग्रिम कार्यवाही करना संभव हो सकेगा। बीते दिनों प्रबंध निदेशक रणवीर प्रसाद ने संबंधित अधिकारियों को स्पष्टीकरण देने के निर्देश दिये।
अधिशासी अभियंता एमएल सोनकर के अपने स्पष्टीकरण में लिखा है, प्राइस बिड खोले जाते समय निविदा प्रपत्र पर चार प्रतिशत वैट व सर्विस टैक्स अलग से दिये जाने की कोई भी टिप्पणी अंकित नहीं थी। इसे बाद में किसी समय बढ़ाया गया है। क्योंकि मेरे द्वारा निविदा खोले जाते समय दी गई दरों को घेरे में घेरकर हस्ताक्षर किये गये थे, जो वर्तमान में लिखी शर्तों पर नहीं हैं। मात्र 17.65 प्रतिशत अधिक पर ही मेरे द्वारा घेरा करके हस्ताक्षर किये गये थे।
उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास निगम प्रबंध तंत्र ने लगभग 250 करोड़ के टेण्डर लेने में हुई हेरा-फेरी में बालाजी और गणपति पर जालसाजी की धाराओं में कानपुर के कल्याणपुर थाने में मुकदमा दर्ज कराया है। अब इसी फेहरिस्त में मेसर्स अहलूवालिया पर राजधानी के सरोजनी नगर थाने में जल्द ही मुकदमा दर्ज होने वाला है। इस निविदा में हुई हेरा-फेरी पर निगम तंत्र और ठेकेदार के अपने-अपने दावे हैं।
निविदा से संबंधित अधिकारियों का यह दावा कि ठेकेदार ने बाद में यह शर्त जोड़ दी निगम की कार्यप्रणाली को कठघरे में खड़ा कर रहा है। ऐसे में सवाल उठने लाजिमी हैं कि क्या निगम में 112 करोड़ की निविदा से संबंधित फाइलों की सुरक्षा तारामण्डल के भरोसे है? आखिर वो शख्स कौन है जो खाता तो यूपीएसआईडीसी की है, पर बजाता अहलूवालिया की है। पर्दे के पीछे छिपे उस शख्स पर कार्रवाई कब होगी? क्योंकि जब तक भ्रष्टाचार की गर्भनाल पर चोट नहीं की जायेगी, तब तक वह रावण की तरह अमर रहेगा और विकास कार्य पाण्डवों की भांति अज्ञातवास काटते रहेंगे… एमडी साहब।
कौन है इस हेरा-फेरी का मास्टर माइंड?
जानकारों की मानें तो यदि अलग से चार प्रतिशत वैट व सॢवस टैक्स की शर्त को कम्परेटिव स्टेटमेंट में शामिल किया गया होता तो मेसर्स अहलूवालिया की निविदा प्रथम न्यूनतम नहीं होती। ऐसे में इस फर्म को यह कार्य मिल ही नहीं सकता। यहां यह सवाल उठना लाजिमी है कि जब निविदा खोली गई तो इसका जिक्र नहीं था, तो बाद में यह कैसे दर्ज हो गया। इसके पीछे किस मास्टर का मांइड है? सभी को पता है। पर, शासन-प्रशासन में बैठे जिम्मेदार भ्रष्टाचार की इस गर्भनाल पर प्रहार करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।
निगम हित में पूरा कराया जाये कार्य
समिति का मानना है कि ठेकेदार ने निर्माणाधीन भवन का जो निर्माण किया है। इसमें निगम का लगभग 28 करोड़ रुपये व्यय हो चुका है। ऐसी स्थिति में निर्माणाधीन भवन के भूमिगत, भूतल एवं प्रथम तल के अवशेष कार्यों को निगमहित में पूरा करा लिया जाय, जिससे इस परियोजना में व्यय हुई धनराशि का सदुपयोग हो सके।
यह भुगतान तर्कसंगत नहीं
निविदा से जुड़े विभागीय अधिकारियों का कहना है, इस भुगतान की देयता नहीं बनती है। निगम द्वारा चार प्रतिशत वैट व सॢवस टैक्स के भुगतान का कोई तर्कसंगत औचित्य नहीं है।