बिजनेस लिंक ब्यूरो। लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार की एक मात्र सस्ती व गुणवत्तापरक दवा निर्माण करने वाली कंपनी यूपीडीपीएल को इलाज की सख्त दरकार है। घाटे के रोग से कंपनी कराह रही है। कांग्रेस श्रम प्रकोष्टï के सह संयोजक नरेन्द्र दत्त त्रिपाठी ने राज्य सरकार से मांग की है कि जनहित व कंपनी हित में इसकी समीक्षा कराई जाय कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा कंपनी की क्षमता के अनुरूप दवा निर्माण व आपूॢत का आर्डर देना क्यों बंद किया गया।
बता दें कि कंपनी के पास कर्मचारियों को वेतन देने के लिए धन नहीं है। स्वास्थ्य विभाग ने वित्तीय वर्ष 2012-2013 तथा 2013-2014 में दस करोड़ रुपये दिये थे जो कि कर्मचारियों के वेतन के मद में खर्च हो गये। सपा सरकार में पिछले साल मार्च के अन्तिम सप्ताह में पुनर्गठन के प्रस्ताव पर मुहर लगाई। मंत्रिमण्डल में पारित प्रस्ताव में प्रावधान था कि स्वास्य विभाग हर वित्तीय वर्ष में कंपनी से 50 करोड़ की दवा बनवायेगा। इसके लिये विभाग कंपनी को 15 करोड़ रुपये रोलिंग एडवांस भी देगा। इस निर्णय के अनुसार स्वास्य विभाग ने कंपनी को रोलिंग एडवांस के रूप में पांच करोड़ रुपये दिये। दवा बनाने का काम शुरू होता कि इसके पूर्व शासन ने मंत्रिमण्डल के निर्देश निर्णय को बदल दिया। शासन ने नया प्रस्ताव बनाया कि कंपनी में दवा बनाने का काम नहीं होगा। अब अस्पतालों के लिए निजी संस्थाओं से दवा खरीदेगी।
बीते दिनों कर्मचारी प्रतिनिधि मंउल ने मुख्यमंत्री से मांग करते हुये कहा कि कर्मचारियों के भविष्य पर खतरा मण्डरा रहा है इसलिये यूपीडीपीएल में दवा बनाने का काम फिर से शुरू कराया जाय। कंपनी की 40 एकड़ भूमि को सॢकल रेट पर बेचने का निर्णय भी लिया था। भूमि बेचने से मिले धन से कंपनी के पुनर्गठन के साथ ही कर्मचारियों के बकाये का भुगतान कराया जाय। शासन के अधिकारियों की हीलाहवाली के कारण एक वर्ष से अधिक समय बीतने के बाद भी कंपनी का पुनगर्ठन नहीं हो सका। मुख्यमंत्री ने प्रतिनिधिमण्डल को उचित कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है।
यूपीडीपीएल कर्मचारी यूनियन अध्यक्ष केके श्रीवास्तव का कहना है कि यूपीडीपीएल पिछले कई सालों से ड्रग माफियाओं के हाथों का खिलौना बनकर रह गयी है। ड्रग माफियाओं की सरकार व शासन में गहरी घुसपैठ के कारण जहां कंपनी का काम प्रभावित हुआ वहीं कर्मचारियों को काफी समस्यों का सामना करना पड़ रहा है। वहीं प्रतिनिधि मंडल में शामिल राम किशोर यादव कहते हैं कि स्वास्य विभाग में ड्रग माफियाओं के हस्तक्षेप से दवाओं की खरीद-फरोख्त को लेकर करोड़ों की कमीशनबाजी का खेल चलता है। यह कमीशन नीचे से लेकर ऊपर तक पहुंचता है। ड्रग माफियाओं के आखों में यूपीडीपीएल हमेशा से खटकता रहा। यूपीडीपीएल में दवा बनने से स्वास्य विभाग में दवा खरीदने का कोटा कम होता और इसका सीधा असर कमीशनबाजी पर पड़ता है।