- टीसीएस समेटेगी लखनऊ से कारोबार, 2000 लोगों की रोजी-रोटी पर खतरा
- बंद होने की कगार पर 1984 में खुला टीसीएस दफ्तर
- टीसीएस गई, तो निवेशकों में जायेगा गलत संदेश
- कंपनी को बचाने के लिए शुरू हुआ सोशल मीडिया वॉर
बिजनेस लिंक ब्यूरो
लखनऊ। देश की दिग्गज आईटी कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सॢवसेज, टीसीएस ने लखनऊ से अपना काम समेटने का ऐलान किया है। इससे आईटी प्रोफेशनल्स और निवेशक चिंतित हैं। आईटी क्षेत्र में सूबे का सबसे बड़ा हब मानी जाने वाली यह कंपनी यदि लखनऊ को टा-टा करती है, तो यह उत्तर प्रदेश और लखनऊ की आॢथक स्थिति के लिये बड़ा झटका साबित हो सकता है। कर्मचारियों का कहना है कि उन्हें टीम लीडर्स ने मौखिक तौर पर बताया कि यहां से काम समेटा जा रहा है। साल के अंत तक कंपनी ज्यादातर प्रॉजेक्ट्स नोएडा या इंदौर में शिफ्ट करने की तैयारी में है। बताया जा रहा है कि टीसीएस को लखनऊ में आॢथक नुकसान हो रहा है इसलिए कंपनी ने ये कदम उठाया है, जिससे राजधानी में कार्यरत दो हजार लोगों पर नौकरी का संकट मंडरा रहा है।
जानकारों की मानें तो बीते सप्ताह कंपनी के वाइस प्रेसीडेंट व उत्तर क्षेत्र के प्रमुख तेज पॉल भाटला लखनऊ पहुंचे और विभिन्न प्रोजेक्ट्स के प्रमुखों को दिसंबर तक अपने काम पूरे करने या यहां से नोएडा या इंदौर स्थानांतरित करने का निर्देश दिया। प्रोजेक्ट्स प्रमुखों को अपनी-अपनी टीमों को इस बारे में सूचित करने के लिए भी कहा। कंपनी के इस कदम से दो हजार आईटी प्रोफेशनलों के रोजगार खतरे में हैं। इन्हें खस्ताहाल आईटी सेक्टर में अपनी नौकरी बचाने के लिए शहर छोडऩे की चिन्ता सता रही है। वहीं कंपनी के इस निर्णय से लखनऊ की अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर पडऩा तय है। बताया जा रहा है कि लखनऊ में कंपनी का संचालन आॢथक रूप से नुकसानदायक है, इसीलिये यह निर्णय लिया गया।
टीसीएस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अवध पार्क का स्वामित्व रखने वाले बिल्डर ने मार्केट रेट पर किराये की मांग की है, जिसे चुका पाने से कंपनी प्रबंधन ने इन्कार किया है। बिल्डर की मांग पुरानी दर से चार गुना है। जानकारों की मानें तो इन विपरीत परिस्थितियों में यदि सरकार टीसीएस को लखनऊ में बनाये रखने के लिये टाटा मोटर्स को दी गई जमीन का उपयोग करते हुए ऑफिस बनाने की शर्त पर राजी करती है तो कुछ उम्मीद है। हालांकि अप्रैल तक रीन्यू की गई लीज खत्म हो जाएगी और नई व्यवस्था के लिये समय नहीं बचा है। इस दिशा में अब तक न टीसीएस ने कोई पहल की है और न सरकार ने। सूत्रों की मानें तो इस संबंध में प्रदेश सरकार से हुई वार्ता में टीसीएस प्रबंध तंत्र ने बताया था, आॢथक वजहों से वह अपने कुछ स्टाफ व प्रोजेक्ट को शिफ्ट कर रही है। उसके पास लखनऊ में अपनी बिल्डिंग नहीं है। न इतने संसाधन हैं कि निर्माण करवा सके।
लखनऊ में 400 आईटी प्रोफेशनल और वाराणसी में नया केन्द्र खोल कर करीब 300 प्रोफेशनल को काम पर रखेगी। कंपनी के इन दावों को टीसीएस के कर्मचारियों ने गलत बताया है। कर्मचारियों का कहना है कि 25 हजार करोड़ मुनाफा कमाने वाली कंपनी के पास संसाधनों की कमी कैसे हो सकती है। वहीं वाराणसी में भी कंपनी कोई निवेश नहीं करने जा रही, बल्कि ठेके पर काम करवाया जाएगा। कर्मचारी कंपनी के इस निर्णय से परेशान हैं। वर्ष 1984 से ही टीसीएस का लखनऊ में दफ्तर है और यहां साल 2000 में जिस आलीशान बिल्डिंग में ऑफिस शिफ्ट हुआ है वो किरााये पर है। अब बिल्डिंग के मालिक ने किराया बढ़ा दिया है। बस इसी बात का बहाना कर मैनेजमेंट यहां से ऑफिस नोएडा या इन्दौर ले जाने का मन बना चुकी है।
जानकारों की मानें तो यूपी में आईटी हब के विकास में टीसीएस की महत्वपूर्ण भूमिका है। टीसीएस कंपनी में काम रहे लोगों ने डिजिटल इण्डिया और प्रदेश के विकास के नाम पर पीएम नरेन्द्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ से लखनऊ ऑफिस को बचाने की गुहार लगाई है। सूत्रों की मानें तो सीएम योगी ने इस मामले को संज्ञान में लिया है। अब देखना है कि वह क्या करते हैं।
नहीं जाएगी कंपनी, टीसीएस लखनऊ नहीं छोड़ेगी। टीसीएस का लखनऊ कार्यालय किराये के भवन में चल रहा है। किराया ज्यादा होने के कारण कंपनी अपने कार्यालय को कहीं और ले जाना चाहती है।
योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री
टीसीएस का सफर
लखनऊ में टीसीएस का कार्यालय 33 साल पुराना है। राजधानी में टीसीएस का काम 1984 में प्रारम्भ हुआ। वर्ष 1884 से 1988 तक इसका दफ्तर राणा प्रताप मार्ग पर था। इसके बाद 1988 से 2008 तक टीसीएस का दफ्तर स्टेशन रोड पर रहा। स्टेशन रोड से टाटा ग्रुप ने 2008 में टीसीएस का दफ्तर गोमतीनगर में शिफ्ट किया। राजधानी में जब टीसीएस ने शुरुआत की थी, उस समय दफ्तर में महज 50 कर्मचारी कार्यरत थे। मौजूदा समय में करीब 1700 अधिकारी और कर्मचारी काम कर रहे हैं। इनके अलावा करीब 500 लोग हाउस कीङ्क्षपग, सिक्युरिटी और अन्य कार्यों से जुड़े हैं।
कर्मचारियों ने पीएम-सीएम से की फरियाद
लखनऊ में काम करने वाले कई कर्मचारियों ने सीएम योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर हस्तक्षेप करने की मांग की है। इसके अलावा उन्होंने पीएम नरेन्द्र मोदी, केन्द्रीय सूचना प्रौद्योगिक मंत्री रवि शंकर प्रसाद और प्रदेश सरकार के उप-मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा को भी पत्र लिखा है। हालांकि टीसीएस के अधिकारी फिलहाल कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं।
पिछली सरकार में आईटी पार्क बनाते हुए यूपी में आईटी सेक्टर को बढ़ावा देने के लिये प्रयास शुरू किये गये थे। लेकिन, अब लखनऊ में टीसीएस को ही बचा पाना मुश्किल हो रहा है। सरकार को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए ताकि वह निवेश के माहौल में डर को कायम न होने दे।
प्रमोद मिगलानी, पूर्व अध्यक्ष, आईआईए
यह बताई जा रही वजह
सूत्रों के अनुसार टीसीएस विभूति खंड स्थित अवध पार्क में किराये पर है, किराया बाजार दर पर बढ़ाने के निर्णय से कंपनी के समक्ष यह स्थितियां पैदा हुईं। बीते जनवरी माह में बिल्डर द्वारा टीसीएस के लिए की गई अवध पार्क की 10 साल की लीज मई 2017 में खत्म होने की बात सामने आई थी। तब, क्षेत्रीय प्रमुख अमिताभ तिवारी ने कहा था कि लीज खत्म होने की खबरें भ्रामक हैं। हालांकि उन्होंने तब भी इमारत की लीज को लेकर कोई बात कहने से इन्कार किया था। अब सामने आया है कि मई 2017 में लीज 11 महीने के लिए रीन्यू हुई थी, जो अप्रैल 2018 में खत्म होगी। इस दौरान टीसीएस अपना काम समेटेगी।
सरकार को किया गुमराह!
कंपनी के एक अफसर ने नाम न छापने पर बताया कि कंसॉलिडेशन किया जाना है। लखनऊ के कर्मचारियों और उनके प्रॉजेक्ट्स को दूसरे ऑफिस में शिफ्ट किये जायेंगे। वहीं कर्मचारियों में कंपनी के फैसले को लेकर असंतोष है। उनका कहना है कि पारिवारिक परिस्थितियों के कारण वे दूसरे शहर नहीं जा सकते। कंपनी के कर्मचारी खुलकर तो सामने नहीं आ रहे हैं, लेकिन ट्विटर पर एक पत्र पोस्ट किया है, जिसमें लिखा है कंपनी के कुछ अधिकारी सरकार से मिले थे और उन्होंने कंपनी बंद करने की बात पर सरकार को गुमराह किया है। जबकि पत्र में दावा किया गया है कि कंपनी यहां से रुखसत होना चाह रही है।
50 फीसदी महिलाओं पर जॉब का संकट
कंपनी के इस निर्णय से दो हजार आईटी प्रोफेशनल की नौकरी पर सीधा संकट है। इनमें करीबी 50 फीसदी महिलायें हैं। इन सभी के सामने अपना परिवार छोडक़र नौकरी के लिये दूसरे शहर जाना संभव नहीं है। इनके पास विकल्प नहीं हैं, वे नोएडा या इंदौर जाये या इस्तीफा दें। ऐसे समय में जब यहां अधिकतर कर्मचारी यूपी के ही हैं और प्रदेश सरकार ने रतन टाटा को अपना ब्रांड एंबेसेडर बनाया है। इसी वर्ष टीसीएस के सीईओ बने राजेश गोपीनाथन लखनऊ के सेंट फ्रांसिस कॉलेज से इण्टर की पढ़ाई कर चुके हैं। दोनों ही का लखनऊ व यूपी से नाता होने के बावजूद टीसीएस लखनऊ से जाती है तो इसे विडंबना ही कहा जाएगा। अगर, टीसीएस बंद होती है तो उत्तर प्रदेश के लिए यह नुकसानदेह होगा।
टीसीएस अगर सच में चली जाती है तो निश्चित रूप से गलत होगा। हालांकि एचसीएल के रूप में लखनऊ को एक और बड़ी आईटी कंपनी का विकल्प मिल रहा है, जहां से रोजगार का सृजन होगा। उम्मीद है कि अगर नुकसान टीसीएस से हो रहा है तो एचसीएल उसे कम करने में मदद कर पायेगी।
सचिन अग्रवाल, सीआईआई