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पेट्रोल में सेंध

  • 1 (1)बाट-माप विभाग पेट्रोल पम्पों की जांच नहीं करता
  • सूबे के 6,600 पेट्रोल पम्प की जांच के लिए टीमें छापे में लगी हैं
  • घटतौली से प्रदेश में प्रति माह 250 करोड़ रूपये की हुई लूट

धीरेन्द्र अस्थाना

लखनऊ। आज देश में हर ओर हेराफेरी और चार सौ बीसी का बोलबाला है। यहां तक कि पेट्रोल पम्प भी अब इससे अछूते नहीं रहे। पेट्रोल पम्पों द्वारा पूरे पैसे लेकर कम पेट्रोल भरने का मामला उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में चिप लगाकर पेट्रोल पंप में तेल चोरी के खुलासे के बाद हुआ। इस खुलासे के बाद पूरे देश में हड़कंप मचा हुआ है। इस इलैक्ट्रॉनिक चिप और रिमोट की सहायता से पेट्रोल पंप प्रति एक लीटर पर 6 से 10 प्रतिशत तक कम पेट्रोल भरते थे। रिमोट का बटन दबाने पर पाइप से पेट्रोल गिरना बंद हो जाता परंतु मीटर पर पेट्रोल की मात्रा और रुपयों का नम्बर उसी रफ्तार से चलता रहता। यानि प्रत्येक एक लीटर की कीमत चुकाने के बदले में उपभोक्ता को 10 प्रतिशत तक कम पेट्रोल मिलता था। इस प्रकार एक पेट्रोल पम्प पर प्रतिदिन 30- 40 हजार रुपये की हेराफेरी के हिसाब से प्रति माह 10 से 15 लाख रुपये का पेट्रोल चोरी किया जा रहा था। अकेले उत्तर प्रदेश में प्रति माह ग्राहकों को 250 करोड़ रुपये से अधिक का चूना लगाया जा रहा था। जबकि एक करोड़ से ऊपर की घटतौली तो केवल राजधानी में ही प्रतिदिन हो रही थी।
राजधानी के 90 फीसद पेट्रोल पम्पों से रोज करीब एक करोड़ की घटतौली होने का दावा है। यह खुलासा पेट्रोल पम्पों पर इलेक्ट्रानिक डिवाइस पाए जाने के बाद पकड़े गये लोगों से हो रही पूछताछ में हुआ है। जांच में जुटे अधिकारियों ने भी माना है कि राजधानी के नब्बे फीसद पेट्रोल पम्पों पर घटतौली की जा रही है। हालांकि इतनी बड़ी रकम अकेले पेट्रोल पम्प मालिक ही नहीं डकार रहे थे बल्कि इसमें कुछ हिस्सा बांट- माप, पेट्रोलियम कम्पनियों व आपूॢत विभाग का भी होने के संकेत मिले हैं। राजधानी में लगे 1७५ पेट्रोल पम्पों से प्रतिदिन 4 लाख लीटर पेट्रोल व 5 लाख लीटर डीजल बिक्री होती है। जिलापूॢत विभाग के अफसरों ने भी माना है कि घटतौली का यह खेल 90 फीसद पेट्रोल पम्पों पर संभव हो सकता है। डीजल व पेट्रोल की मौजूदा दरों को यदि आधार बनाया जाय तो ग्राहकों को घटतौली से प्रतिदिन एक करोड़ रुपये का चूना लगाया जा रहा था।
आपूॢत विभाग के अधिकारियों की माने तो सीधे पेट्रोल पम्पों की जांच का अधिकार उनके पास नहीं है। किसी भी पम्प पर छापा मारने के लिए मजिस्ट्रेट स्तर के अधिकारी, पेट्रोलियम कम्पनी की मोबाइल वैन, सेल्स अफसर और बांट-माप विभाग के अफसरों की संयुक्त टीम का होना आवश्यक है। लेकिन जब तक यह प्रक्रिया पूरी की जाती, तब तक पूरे शहर में हंगामा मच जाता है और कार्रवाई का रिजल्ट नहीं आता है। लिहाजा, जब तक शासन स्तर पर छापेमारी करने का विशेष निर्देश नहीं जारी होता तब तक विभाग के आला अफसर सक्रिय नहीं होते और सख्त कार्रवाई संभव नहीं हो पाती। यही नहीं सवाल ये पैदा होता है कि दशकों से शहर ही नहीं पूरे प्रदेश में हजारों पेट्रोल पंप में ये खेल चल रहा है और जिम्मेदारों की आंखों पर पट्टïी बंधी रही।
आपको बता दें कि राजधानी के 175 पेट्रोल पम्पों में प्रतिदिन करीब 6 लाख लीटर डीजल और 4 लाख लीटर पेट्रोल की बिक्री में तकरीबन 280 लाख रुपये का पेट्रोल व 250 लाख रुपये का डीजल बिकता है। यही कारण है कि पेट्रोल पम्पों पर कर्मचारी मुफ्त में भी काम करने को तैयार रहते हैं। पेट्रोल पम्पों पर काम करने वाले प्रबन्धकों की अगर जांच हुई तो उनकी हैसियत करोड़ों में निकलनी तय है। बिजनेस लिंक ने कई बार प्रमुखता से पेट्रोल पम्पों व गैस एजेन्सियों पर घटतौली के समाचार प्रकाशित किये हैं। पेट्रोल पम्पों पर यूपी एसटीएफ की कार्रवाई से लखनऊ पेट्रोल डीलर्स एसोसिएशन के पदाधिकारी भी हैरत में है। हालांकि हद तो तब हो गयी जब पेट्रोल पंप संचालकों ने चोरी पकड़े जाने के डर से हड़ताल कर दी। हर तरफ हड़कंप मच गया, यहां तक सोशल मीडिया पर लोगों ने पंप संचालकों को नसीहतें देना शुरू कर दी। कई ने तो चोर तक बता दिया। प्रदेश भर के करीब ९० फीसद पेट्रोल पम्पों पर यह धंधा पिछले पांच साल से चल रहा था और ये चलता ही रहता अगर एसटीएफ इसका खुलासा न करती।

मास्टरमांइड था अंकुर वर्मा1 (3)
तेल चोरी की शुरुआत औरैया के एक इण्टर पास अंकुर वर्मा ने की थी। अंकुर फिलहाल पंजाब की जेल में बंद है। हालांकि इस मामले का खुलासा पंजाब पुलिस ने डेढ़ साल पहले ही किया था और यूपी पुलिस को आगाह भी किया था। लेकिन, किसी ने इस इनपुट पर ध्यान नहीं दिया। नतीजा यह हुआ कि पेट्रोल चोरी का यह नेटवर्क तीन राज्यों में फैल गया और करोड़ों रुपयों के हेराफेरी तेल चोरी के माध्यम से चलती रही। अंकुर के बारे में कहा जाता है कि वो पहले कानपुर की एक फैक्ट्री में काम करता था, लेकिन उसकी शैक्षणिक योग्यता महज इण्टर थी, लिहाजा उसे निकाल दिया गया। उसके बाद वह औरया के एक पेट्रोल पंप पर काम करने लगा। इस दौरान उसने चिप के जरिए पेट्रोल चोरी का प्रयोग शुरू किया। चिप और रिमोट से तेल चोरी के प्रयोग में सफल होने के बाद उसने अपना नेटवर्क पंजाब, हरियाणा और यूपी में फैलाया।

ऐसे काम करती थी चिप1 (15)
टेक्निकल एक्सपटर्स के मुताबिक पेट्रोल पंप पर लगने वाली चिप दो तरह से काम करती है। एक चिप रिमोट से तो दूसरी चिप कोड से काम करती है। दोनों चिपों के अलग-अलग रेट हैं। रिमोट वाली चिप की कीमत 40 से 50 हजार रुपये मिलती है। कोड वाली चिप की कीमत 20 हजार से 30 हजार है। रिमोट वाली चिप पंप के मीटर की पल्स बढ़ा देती है। ग्राहक को पेट्रोल या डीजल देते समय मीटर रीङ्क्षडग दस से शुरू होकर बीच के अंक छोड़कर आगे बढती है। कोड वाली चिप में पहले से ही लीटर या रुपये फीड किया जाता है। 10, 20 या 50 लीटर पर या फिर 100, 200, और 500 रुपये फीड किए जाते हैं। अगर इस क्रम में कोई डीजल या पेट्रोल डलवाता है तो घटतौली की जा सकती है। चिप में ए, बी, सी कोड है, एक लीटर पर आठ रुपये की चपत लगानी है तो ए कोड सेट किया जाता है, 6 रुपये की चपत के लिए बी कोड और चार रुपये के लिए सी कोड।

रिफाइनरी से लेकर टैंकर में होता है बड़ा खेल
एक तरफ एसटीएफ टीम घटतौली की शिकायत मिलने पर प्रदेश भर के पेट्रोल पम्पों पर छापेमारी कर रही है तो वहीं दूसरी ओर उसके और ऑयल कंपनी के नाक के नीचे ही अवैध तेल का काला कारोबार तेल टैंकर संचालक कर रहे हैं। यह पूरा गोरखधंधा राजधानी लखनऊ के अमौसी क्षेत्र में बने विभिन्न ऑयल कंपनी के रिफायनरियों में चल रहा है, जिसका कुल कारोबार करोड़ों में है। इस अवैध कारोबार के हिस्सेदार क्षेत्र में फैले ढाबा संचालक समेत टैंकर माफिया हैं। करीब प्रत्येक टैंकर से रोजाना 20 से 40 लीटर पेट्रोल और डीजल- पेट्रोल पम्प पहुंचने से पहले ही रास्ते में ही टैंकर ड्राइवर एक गैलन में निकाल कर बाजार में कम कीमत में बेच देते हैं। सूत्र बताते है कि रिफायनरी कंपनी के गेट से कुछ दूरी पर ही कारखाना बना है, जिसे टैंकर रिपेयरिंग सेंटर का नाम देकर टैंकों से गैलन में 20 से 40 लीटर पेट्रोल और डीजल निकालने का खेल चलता है, जिसे क्षेत्र में सक्रिय तेल माफिया बाजार में सस्ते दामों में बेचा जा रहा है।

एसटीएफ न पकड़ती तो चलता रहता धंधा
कारण ये है कि जिला प्रशासन, पेट्रोलियम कम्पनी, बांट- माप व जिलापूर्ति विभाग ने करीब दस सालों में मात्र तीन छापे मारे हैं। इसमें एक महानगर के विनायक फिलिंग स्टेशन महानगर व महात्मा गांधी मार्ग पर मारे गए हैं और ये कार्रवाई भी उस समय की सरकार में एक मंत्री की शिकायत पर हुई। बाद में मामले की जांच में क्या निकला पेट्रोलियम कम्पनियों ने क्या कार्रवाई की किसी को कुछ भी पता नहीं। हैरत करने वाली बात है कि त्योहारों के समय जिलापूर्ति विभाग के अधिकारी गली- मोहल्ले में गैस चूल्हा रिपेयर करने की दुकानों पर छापे मारते हैं, घरेलू गैस सिलेण्डर सीज करते हैं। एडीएम आपूर्ति तत्काल रिपोर्ट भी दर्ज करवाते हैं, लेकिन पेट्रोल पम्प संचालक जो की सीधे जनता की जेब काट रहे हैं उनके आगे सरकार इतना झुक गयी कि अधिनियम की धारा का मतलब ही बदल डाला।

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