उम्र पूरी कर चुका वाहन सड़क पर चलने लायक तो आरटीओ में हो जाता है रजिस्ट्रेशन
वन टाइम टैक्स का 10 प्रतिशत ग्रीन टैक्स देकर फिर से हो सकता है रजिस्टर्ड
लखनऊ। पर्यावरण प्रदूषण के बढ़ते स्तर को लेकर सुप्रीम कोर्ट जहां गंभीर है तो वहीं परिवहन विभाग खुद प्रदूषण फैलाने की हरी झंडी दे रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण कम करने के लिए भले ही बीएस 3 मानक वाले वाहनों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है लेकिन परिवहन विभाग के पास इन वाहनों को सड़कों पर दौडऩे से रोकने का कोई नियम कानून नहीं है। वर्षों पुराने हो चुके वाहनों को परिवहन विभाग दोबारा प्रदूषण फैलानी की हरी झंडी दे रहा है। गाड़ी कितनी भी पुरानी हो जाए, अगर वह सड़क पर चलने लायक है तो आरटीओ की ओर से अनुमति मिल जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण के लिए खतरे को देखते हुए एक अप्रैल से भारत स्टेज ३ मानक वाले दो पहिया वाहनों की बिक्री बंद करने व इसका रजिस्ट्रेशन न करने का आदेश जारी किया था। लेकिन पर्यावरण की फिक्र न लोगों को रही और न ही परिवहन विभाग व वाहनों डीलरों को। परिवहन विभाग में इस विसंगति को देखते हुए पर्यावरण प्रदूषण रोकने के प्रयास बेमानी लगते हैं।
15 साल बाद फिर करा सकते हैं रजिस्ट्रेशन
दो पहिया या चार पहिया गाड़ी 15 साल पूरे कर चुकी है तो उसका फिर से आरटीओ में पांच साल के लिए रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। मोटरसाइकिल और कार सहित सभी गाडिय़ों का आरटीओ में पहले 15 वर्ष के लिए ही रजिस्टर्ड होती है। आरटीओ में वन टाइम टैक्स के रूप में निर्धारित पैसा जमा करने के बाद गाड़ी का नंबर मिलता है। नियमत: 15 वर्ष पूरे होने के बाद उनका सड़क पर चलने के लिए रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होता है। 15 साल पूरे होने के बाद वाहनों का दोबारा पांच साल के लिए रजिस्ट्रेशन करने का नियम है। वाहन चलने लायक हो और पांच सीटर से अधिक क्षमता का वाहन होने पर उसकी फिटनेस के बाद गाड़ी का रजिस्ट्रेशन किया जाता है। मोटर साइकिल व कार के लिए रजिस्ट्रेशन निर्धारित फीस के साथ पांच वर्ष के लिए होता है। रजिस्ट्रेशन कराने में देरी पर हर महीने के हिसाब से लेट फीस भी ली जाती है। साथ ही 15 वर्ष पूर्व गाड़ी खरीदते समय आरटीओ में जमा किए गए वन टाइम टैक्स का दस प्रतिशत राशि ग्रीन टैक्स के समय दोबारा रजिस्ट्रेशन कराने पर जमा करने का नियम है।
5 वर्ष के लिए रिन्यूवल की व्यवस्था
कोई भी वाहन 15 वर्ष पुराना होने के बाद उसके दोबारा 5 वर्ष के लिए रिन्यूवल की व्यवस्था है। इसके लिए वाहन स्वामी को निर्धारित फीस के साथ ग्रीन टैक्स जमा करना होता है। दोपहिया वाहन की रजिस्ट्रेशन फीस 300 रुपये व लेट फीस 300 रुपये प्रति माह है। वहीं गैर परिवहन वाहन जैसे निजी कार के लिए रजिस्ट्रेशन फीस 600 रुपये व लेट फीस 500 रुपये प्रति माह है। इसके अलावा व्यावसायिक गाडिय़ों की रजिस्ट्रेशन फीस 1000 रुपये व लेट फीस 500 रुपये प्रति माह है। वाहनों के दोबारा रजिस्ट्रेशन में दस फीसद ग्रीन टैक्स भी जमा होगा। यह 15 साल पूर्व जमा हुए वन टाइम टैक्स के आधार पर लिया जाएगा।
बढ़ेगा प्रदूषण, जहरीली होगी हवा
वर्तमान में राजधानी में रजिस्टर्ड दो पहिया वाहनों की संख्या 16 लाख को पार कर गयी है। शहर की सड़कों पर इतनी अधिक संख्या में बीएस ३ मानक वाली दौड़ रही गाडिय़ां पर्यावरण को बुरी तरह नुकसान पहुंचा रही हैं। इतना तो पहले से ही कम नहीं था उस पर बीते 30 व 31 मार्च को राजधानी में हजारों की संख्या में खरीदे गए बीएस ३ मानक वाले दो पहिया वाहन और उतर आए हैं। इससे अब प्रदूषण का स्तर कम होने की बजाय कई गुना और बढ़ जाएगा। शहर की हवा और जहरीली हो जाएगी।
प्रदूशित शहरों में अपना भी शहर
प्रदूषण के लिहाज से प्रदेश के ३७ जिलों में लखनऊ भी प्रदूषित शहरों में शुमार है। यहां पर प्रदूषण का स्तर खतरे से कहीं ज्यादा ऊपर है। ऐसे में यहां पर बीएस ३ मानक वाले वाहनों की संख्या में इजाफा होने से पर्यावरण प्रदूषण और ज्यादा हो जाएगा। इससे शहर में लोगों का जीना दूभर हो जाएगा।
तकनीक बदलकर बेंचना चाहिए था वाहन
पर्यावरण के जानकारों को मानना है कि पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने में अगर कम्पनी जरा भी ध्यान देती तो उसे बीएस ३ मानक वाले वाहनों की बिक्री करने के बजाय इसकी तकनीकी में बदलाव करना चाहिए था। कम्पनी का यह दायित्व होना चाहिए था कि वह बीएस ३ इंजन को बदलकर वर्तमान में पर्यावरण के अनुकूल बीएस ४ मानक वाला इंजन लगाकर दो पहिया वाहनों को वापस बाजार में उतारती, इससे पर्यावरण प्रदूषित होने से बचाया जा सकता था।
-विभाग में किसी भी नए वाहन का रजिस्ट्रेशन पहले 15 वर्ष के लिए होता है। इसके बाद दोबारा पांच-पांच साल के लिए निर्धारित फीस जमा कर रजिस्ट्रेशन करने की व्यवस्था है। वाहन कितना भी पुराना हो जाए अगर वह चलने लायक है तो दोबारा उसका पांच साल का रजिस्ट्रेशन होता है। इस पर किसी प्रकार की कोई रोक नहीं है।
अनिल मिश्रा, उप परिवहन आयुक्त