परिवहन निगम की कार्यशालाओं में सालों से खाली पड़े हैं पद
कार्यशालाओं में ठेके पर निजी कर्मियों के सहारे चालाया जा रहा काम
निगम बेड़े में अनुबंधित बसों समेत 12 हजार से अधिक है बसों की संख्या
प्रति दिन औसतन 350 किलोमीटर तक चलती हैं बसें
मैकेनिकों की कमी से बढ़ रहीं दुर्घटनाएं
लखनऊ। उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम का बस बेड़ा बीते सालों में जितनी तेजी से बढ़ा उतनी ही तेजी से निगम की कार्यशालाओं में मैकेनिकों की संख्या कम होती गयी। आज हालत यह है कि निगम की कार्यशालाओं में निजी कर्मियों के जरिए काम चलाया जा रहा है। यही नहीं निगम की कार्यशालाओं में निजी कर्मियों की संख्या भी नाम मात्र की है। जिसकी वजह से बसों का मेंटीनेंस भी अच्छे तरीके से नहीं हो पा रहा है। निगम कार्यशालाओं में मैकेनिकों की कमी ही बस हादसों का सबब बन रही है। लेकिन इस ओर परिवहन निगम के उच्चाधिकारियों से लेकर शासन व सरकार तक का ध्यान नहीं है। मैकेनिकों की भर्ती न होने से कार्यशालाओं में बसों की तकनीकी खराबी दूर नहीं हो पा रही है जिससे बसें हादसे का शिकार हो रही हैं और यात्रियों की मौतों का आंकड़ा भी बढ़ता जा रहा है। परिवहन निगम प्रशासन बस दुर्घटना में परिजनों को मुआवजा देता है, लेकिन बस हादसे का दोषी कार्यशाला में तैनात कर्मियों को मानते हुए बर्खास्त कर दिया जाता है। राजधानी समेत प्रदेश की परिवहन निगम की सभी कार्यशालाओं में मैकेनिकों की कमी है। लखनऊ परिक्षेत्र में परिवहन निगम की ६०० के करीब बसें हैं। प्रत्येक बस की मरम्मत के लिए डेढ़ आदमी की जरूरत के हिसाब से मानक तय किए गए हैं। इस मानक के आधार पर ७२९ मैकेनिकों की आवश्यकता है, लेकिन यहां तो केवल २५६ लोग ही तैनात हैं। इनमें से अधिकतर मैकेनिक ठेके पर बसों की मरम्मत कर रहे हैं। एसी बसों की मरम्मत के लिए जानकार मैकेनिक हैं ही नहीं। यही वजह है कि रोडवेज बसों की लग्जरी सेवाएं दिन-प्रतिदिन मरम्मत के अभाव में साधारण बसों में तब्दील होती जा रही हैं। इस मामले में परिवहन निगम के मुख्य प्रधान प्रबंधक प्राविधिक जयदीप वर्मा का कहना है कि निचले स्तर पर बसों की मरम्मत के लिए मैकेनिकों की जरूरत है। इनके बिना बसों की बेहतर सेवाएं नहीं दी जा सकती।
सालों से नहीं हुई भर्तियां
रोडवेज में चालक-परिचालकों की भर्ती जहां नियमित अंतराल होती रहती है वहीं तकनीकी शाखा के कर्मचारियों की भर्ती बीते कई सालों से नहीं की गयी है। जिसका नतीजा है कि आज कार्यशालाओं में ठेके पर बाहर के लोगों से काम चलाया जा रहा है। रोडवेज की कार्यशालाओं में पिछले कई सालों से १० तरह के पद रिक्त पड़े हैं। इनमें सीनियर फोरमैन, जूनियर फोरमैन, मैकेेनिक, इलेक्ट्रीशियन, सहायक मैकेनिक, सहायक इलेक्ट्रीशियन, फ ीडर मैकेनिकल, फ ीडर इलेक्ट्रीशियन, स्टोर कीपर सहित भंडार अधीक्षक के पद खाली हैं। इन पदों को भरने के लिए कई बार ब्यौरा मांगा गया लेकिन मैकेनिकों की भर्ती नहीं हो सकी।
कबाड़ हो गईं करोड़ों की बसें
जानकार मैकेनिकों की कमी की बात की जाए तो सिटी बस इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। जानकार मैकेनिकों की कमी के चलते ही करोड़ों की सिटी बसें कबाड़ हो चुकी हैं। जेएनएनयूआरएम योजना के तहत लखनऊ सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड ने सिटी बस बेड़े में करोड़ो रुपए की वातानुकूलित 15 एसी बसें खरीदी थीं। मेंटीनेंस के अभाव में करोड़ों की ये बसें आज गोमती नगर स्थित सिटी बस कार्यशाला में कबाड़ हो चुकी हैं। जिसकी सबसे बड़ी वजह जानकार मैकेनिकों का अभाव रहा। जिसकी वजह से इनकी मेंटीनेंस नहीं हो सका और ये बसें धीरे-धीरे कबाड़ होती गयीं।
रिक्त पदों का ब्यौरा मांगे जाने से जगी आस
बीते दिनों शासन की ओर से सभी विभागों में रिक्त पड़े पदों का ब्यौरा मांगा गया है। इनमें परिवहन निगम में खाली पड़े पदों का ब्यौरा भी शासन ने मांगा है। जिसके बाद निगम की तकनीकी शाखा में भर्ती की आस जगी है। निगम मुख्यालय ने प्रदेश भर के बस स्टेशन और कार्यशालाओं में खाली पड़े पदों की सूची तैयार भी की है। इस सूची को जल्द शासन भेजने की तैयारी है। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि प्रत्येक सरकार में शासन स्तर पर खाली पदों को भरने के लिए ब्यौरा मांगा जाता है। इसके बाद भी आज तक कई सरकारें आई और गई लेकिन खाली पदों को भरने के लिए शासन की ओर से आज तक मंजूरी नहीं मिली।
इलेक्ट्रीशियन की कमी से हो रहा शार्ट सर्किट
बसों में वायरिंग करने के लिए इलेक्ट्रीशियन तैनात किए जाते हैं। कार्यशालाओं में जहां बसों की मरम्मत होती है वहां इलेक्ट्रीशियन की जिम्मेदारी होती है कि वायरिंग की जांच कर लें, लेकिन यहां तो इलेक्ट्रीशियन ही नहीं हैं, ऐसे में बसों के अंदर खस्ताहाल हो चुकी वायरिंग की मरम्मत करे भी तो कौन?