लखनऊ। उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में मानकों को ताक पर रखकर दवाखाने चलाए जा रहे हैं। जिम्मेदार निंद में है या फिर जानबुझकर अनदेखा कर रहे है, ये किसी से छिपा हुआ नहीं है। केवल राजधानी में ही करीब 20 फीसद से अधिक मेडिकल स्टोर्स में फार्मासिस्ट ही नहीं हैं तो बहुत से मेडिकल स्टोर बिना लाइसेंस के ही चल रहे हैं।
मजे की बात तो ये है कि शहर के चर्चित अस्पतालों के सामने लाइसेंस किसी और के नाम से है और दवा बेचने वाले दसवीं- बाहरवी तक पढ़े हुए है, जिन्हे दवा की समझ तक नहीं है। इसे फूड सेफ्टी एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन विभाग अनदेखा क्यों कर रहा है। ये विभाग की लापरवाही कहें या मैनपॉवर की कमी, लेकिन इन सबका खमियाजा मरीजों को ही भुगतना पड़ रहा है।
पहले भी कई बार नकली एंटीबायोटिक सहित अन्य दवाएं पकड़ी गई, लेकिन इन पर रोक नहीं लग पा रही है। इसके अलावा पतंजलि स्टोर्स की आड़ में मेडिकल स्टोर्स खोलकर दवाओं की बिक्री का धंधा भी इन दिनों जोरशोर से चलन में आया है। वहीं प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों की बात की जाए तो वहां लाइसेंसधारक फॉर्मासिस्टों का पता ही नहीं है और मेडिकल स्टोर्स का धंधा सालों से चल रहा है।
ताजा मामला लखनऊ में तब खुला जब एफएसडीए की टीम ने अमीनाबाद में छापा मार कर सहारा मेडिकल स्टोर को पकड़ा था। जांच में अधिकारियों के सामने जो बात निकलकर आयी वो चौकाने वाली थी। मेडिकल स्टोर करीब आठ साल से बिना लाइसेंस के अमीनाबाद की दवा मार्केट में चल रहा था।
ऐसा तब था जब करीब एक से दो किमी. की दूरी पर ही एफएसडीए के ड्रग इंस्पेक्टर का ऑफिस है। फिर भी किसी को भनक नहीं लगी, ये अधिकारियों की जांच पर सवाल खड़ा करता है। सूत्रों की माने तो यह अकेला स्टोर नहीं है। ऐसे दर्जनों मेडिकल स्टोर राजधानी में संचालित हो रहे हैं जिनके पास न तो लाइसेंस है और न ही फॉर्मासिस्ट हैं।
इसके अलावा एक अधिकारी ने बताया कि ग्रामीण इलाकों में रस्ट्रिेक्टेड लाइसेंस दिया जाता है, जिसमें बिना फॉर्मासिस्ट के कोई भी पढ़ा लिखा व्यक्ति चला सकता है, लेकिन इसमें पैरासीटामाल जैसी सामान्य कुल 14 प्रकार की दवाएं ही बेची जा सकती हैं, लेकिन इसके लाइसेंस पर मेडिकल स्टोर वाले सभी प्रकार की दवाएं बेच रहे हैं।
शहरों व ग्रामीणों में सैकड़ों की तादाद में पुराने मेडिकल स्टोर्स के पास यही लाइसेंस है। यहीं नहीं लाइसेंस रीन्यूअल के समय इनकी जांच के लिए जाने वाले संबंधित अधिकारी क्या देखकर मेडिकल स्टोर का लाइसेंस देते है इसका जवाब आखिर कौन देगा?
ड्रग इंस्पेक्टर्स की कमी का फायदा उठा रहे अवैध संचालक
एफएसडीए के अधिकारियों के अनुसार पिछले वर्ष से प्रदेश में लाइसेंसिंग सिस्टम ऑनलाइन कर दिया गया। ऐसे में एक ही फॉर्मासिस्ट के लाइसेंस पर एक से अधिक मेडिकल स्टोर्स चलने पर रोक लग गई। किसी फॉर्मासिस्ट के नाम पर कोई भी नया लाइसेंस या रीन्यूअल तभी होगा जब उसके नाम पर पहले से कोई लाइसेंस नहीं होगा। यदि पहले कहीं चल रहा है तो उसे कैंसिल कराना होगा। इसके लिए फॉर्मासिस्टों की भी यूनीक आईडी जारी की गई है। इससे फर्जीवाड़ा रुक गया, लेकिन इसके बाद से पिछले डेढ़ वर्ष में जिनके लाइसेंस समाप्त हुए वो रीन्यूअल कराने ही नहीं आए। अधिकारियों की मानें तो ड्रग इंस्पेक्ट्र्स की कमी का फायदा ये मेडिकल स्टोर वाले उठा रहे हैं।
अधिकारी जांच करने में अक्षम
फार्मासिस्ट एसोसिएशन की मानें तो शहर में करीब 20 फीसद मेडिकल स्टोर्स ऐसे हैं जिनमें फार्मासिस्ट नहीं हैं। वहीं बहुत से ऐसे मेडिकल स्टोर्स हैं जिनके पास वैलिड लाइसेंस ही नहीं है, लेकिन एफएसडीए अधिकारी समय पर इनकी जांच कर पाने में अक्षम हैं।