शहर में संचालित हो रहीं जर्जर व खस्ताहल एम्बुलेंस
स्वास्थ्य व टै्रफिक विभाग के संरक्षण में हो रहा संचालन
लोगों में संक्रमण बांट रहे कंडम एम्बुलेंस वाहन
स्वास्थ्य विभाग व आरटीओ कार्यालय के पास नहीं है वाहनों का ब्यौरा
लखनऊ। मरीजों को बेहतर चिकित्सा सुविधा के लिए सरकारों ने नि:शुल्क एम्बुलेंस सेवाओं की सौगात दी। एम्बुलेंस सेवाओं के जरिए प्रदेश में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का दावा किया गया। गंभीर रुप से बीमार मरीजों के लिए इन एम्बुलेंसों को वरदान बताया गया। वर्तमान व पूर्ववर्ती सरकार ने इस सुविधा को अपनी उपलब्धि तक गिना डाला। लेकिन इन एम्बुलेंसों के जरिए बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के सरकारी दावों की हकीकत चौंकाने वाली है। दरअसल जिन एम्बुलेंसों के जरिए सरकारें बेहतर स्वास्थ्य सुविधा का दम भर रही हैं, असलियत में वे खुद बीमार हैं। शहर में एम्बुलेंस के रुप में जर्जर व खस्ताहाल वाहनों का संचालन हो रहा है। ऐसे में शहर की बीमार एम्बुलेंसों को मरीजों की बजाय खुद के इलाज की जरुरत है। इसकी वजह यह भी है कि स्वास्थ्य सेवाओं में सहायक होने की बजाय एम्बुलेंस अब लोगों में संक्रमण बांट रही हैं। इस काम में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं स्वास्थ्य व ट्रैफिक विभाग। जिनसे मिल रहे संरक्षण से शहर में एम्बुलेंस के नाम पर दिन प्रति दिन जर्जर व खस्ताहाल वाहनों का जाल बिछता जा रहा है। ऐसे में ये एम्बुलेंस इलाज में सहायक होने की बजाय मरीजों के लिए मौत का रास्ता बन रही हैं। गौरतलब है कि शहर में करीब 1200 से अधिक वाहनों का संचालन एम्बुलेंस के नाम पर हो रहा है। लेकिन इनका सही ब्यौरा न तो स्वास्थ्य विभाग के पास है और न ही संभागीय परिवहन कार्यालय में है। इनमें बड़ी संख्या में जर्जर व कंडम हालत में पहुंच चुके चार पहिया वाहन शामिल हैं। केजीएमयू स्थित ट्रॉमा सेंटर, बलरामपुर, सिविल, लोहिया अस्पताल से लेकर शहर के प्रमुख नर्सिंगहोम सेंटर के बाहर दर्जनों की संख्या में एम्बुलेंस मौजूद हैं। जिनका संचालन आक्सीजन सिलेंडर समेत आवश्यक जीवन रक्षक उपकरणों के बिना हो रहा है। इन्हीं वाहनों का उपयोग गंभीर मरीजों को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में शिफ्ंिग करने से लेकर गनशॉट व संक्रमित शवों को ढोने में किया जा रहा है। लेकिन स्वास्थ्य विभाग की ओर से एम्बुलेंस वाहनों के लिए इंस्ट्रलाइजेशन विसंक्रमित करने की गाइड लाइन तय नहीं है। जिसकी वजह से इन एम्बुलेंस का उपयोग करने वाले मरीज व उनके परिजन जाने अंजाने में जानलेवा संक्रामक बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। शहर में जर्जर एम्बुलेंस के संचालन इस बात की तस्दीक कर रही है कि जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग जन स्वास्थ्य के प्रति कितना सजग दिख रहा है।
आरटीओ कार्यालय में एम्बुलेंस का ब्यौरा तक नहीं
स्वास्थ्य विभाग की ओर से शहर के पंजीकृत 630 नर्सिंग और प्रमुख सरकारी अस्पतालों में करीब 1200 एम्बुलेंस वाहन संचालित हैं। इनमें अधिकांस वाहन अनफिट बताए जा रहे हैं। लेकिन इन सभी वाहनों का ब्यौरा न तो आरटीओ कार्यालय में उपलब्ध है और न ही स्वास्थ्य विभाग के पास उपलब्ध है। एम्बुलेंस चालकों का पहचान संबंधी रिकार्ड भी जिला प्रशासन के पास उपलब्ध नहीं है। जिसकी वजह से कई आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के लिए एम्बुलेंस का चालक बनना मुफीद साबित हो रहा है।
मानक तक नहीं किए गए तय
शहर में एम्बुलेंस का संचालन करने वालों के लिए जनहित को ध्यान में रखते हुए कोई मानक तय नहीं किए गए हैं। जिसकी वजह से आक्सीजन सिलेंडर समेत बिना जीवनरक्षक उपकरणों के शहर में सैकड़ों एम्बुलेंस का संचालन हो रहा है। एम्बुलेंस में साफ सफाई के लिए भी दिशा निर्देश तय नहीं हैं। जिस कारण कई बार संक्रमित शव को ढोने के बाद भी बिना सफाई-धुलाई इनका उपयोग मरीजों के लिए लगातार होता रहता रहा है।
- निजी एम्बुलेंस से स्वास्थ्य विभाग का कोई संबंध नहीं है। जिस अस्पताल परिसर के भीतर एम्बुलेंस मौजूद होगी वहां के अधिकारी जवाबदेह होंगे। निजी एम्बुलेंस के संचालन की एनओसी आरटीओ कार्यालय देता है।
डॉ.जीएस बाजपेई, सीएमओ लखनऊ