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भविष्य निधि पर डाका

वेण्डर ने जमा नहीं कराया एक साल से पीएफ-ईएसआई
मैनपावर आउट सोॄसग में वेण्डरों का खेल, जिम्मेदार खामोश
दो एजेन्सियों की तकनीकी समस्या में उलझी कर्मचारियों की भविष्य निधि
वेतन था 12,317, कट-पिट के मिला 7,666 रुपये प्रतिमाह
आउटसोॄसग के तहत रखी गई थी लगभग 250 जनशक्तियांvvvvvvvvv

शैलेन्द्र यादव

लखनऊ। सरकार-ए-सरजमीं की सबसे पावरफुल इमारत शास्त्री भवन स्थित मुख्यमंत्री सूचना परिसर, इलेक्ट्रानिक मीडिया सेल और सूचना विभाग में आउटसोॢसंग के तहत तैनात कम्प्यूटर ऑपरेटरों की भविष्य निधि धंधेबाज डकार गये हैं। संबंधित वेण्डर ने इनकी भविष्य निधि मई 2016 से पीएफ खातों में जमा नहीं कराई है। कर्मचारियों के वेतन से तो पीएफ का पैसा कटा, लेकिन यह रकम खातों में जमा नहीं हुई। संबंधित एजेंसी का यह खेल शुरू हुये लगभग एक साल होने को है। जनशक्तियों को भविष्य निधि और समय पर वेतन मिलने का इंतजार है।

राजकीय मैनपावर आउटसोॄसग एजेंसी उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम की डेडीकेटेड फर्म मेसर्स अवनी परिधि कम्यूनिकेशन एण्ड एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड ने अक्टूबर 2015 में मुख्यमंत्री सूचना परिसर, इलेक्ट्रानिक मीडिया सेल और जनसंपर्क एवं सूचना निदेशालय में लगभग 2०0 जनशक्तियों की तैनाती की थी। मई 2016 तक व्यवस्था पटरी पर रही, लेकिन एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुये उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने मेसर्स अवनी परिधि के कार्यों पर अग्रिम आदेशों तक रोक लगा दी। इस आदेश के बाद उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम ने अवनी परिधि के समस्त अधिकार पत्र निरस्त कर दिये।

मुख्यमंत्री सूचना परिसर और सूचना विभाग में तैनात जनशक्तियों के वेतन, पीएफ, ईएसआई आदि की जिम्मेदारी निगम में पंजीकृत फर्म मेसर्स जनता शिक्षण संस्थान के सुपुर्द कर दी गई। जनवरी 2017 तक इस इस वेण्डर ने जनशक्तियों का वेतन पीएफ, ईएसआई का अंश काट कर भुगतान किया। लेकिन मुख्यमंत्री सूचना परिसर में तैनात कर्मचारियों के पीएफ खातों में मई २०१६ से यह पैसा जमा नहीं हुआ है। तो वहीं सूचना विभाग में तैनात जनशक्तियों के खातों में जुलाई २०१६ से पीएफ जमा नहीं कराया गया है। जिम्मेदार इसके पीछे तमाम तकनीकी कारण बता रहे हैं। मसलन, अवनी परिधि से कार्य लेकर जनता शिक्षण संस्थान को दिया जाना। सेवा कर आदि के लिये पूर्व की कंपनी द्वारा दावा करना आदि आदि।

मुख्यमंत्री सूचना परिसर और सूचना विभाग में जब इन कम्प्यूटर ऑपरेटरों की तैनाती हुई, उस समय इनका मूल वेतन 12,317 रुपये था। इसमें से पीएफ, ईएसआई, सॢवस टैक्स व अन्य सॢवस चार्ज कटने के बाद इन्हें प्रतिमाह मात्र 7,157 रूपये मिले। धीरे-धीरे वेतन बढ़कर 7,666 हो गया। पीडि़तों ने नाम न छापने पर बताया कि जब तक वेतन अवनी परिधि ने दिया तब तक वेतन समय पर मिला और पीएफ, ईएसआई भी जमा हुआ। पर, एजेंसी बदलते ही न समय से वेतन मिला और न पीएफ, ईएसआई का पैसा जमा हुआ।

इतना ही नहीं सूत्रों की मानें तो विभाग से वेतन भुगतान के लिए टोकन मिल जाने के बावजूद जनता शिक्षण संस्थान काफी समय तक वेतन रोके रखती है। विभाग से फरवरी-2017 के वेतन का टोकन मिल गया, पर जनशक्तियों को वेतन अब तक नहीं मिला है। पीडि़त जनशक्तियों ने नाम न प्रकाशित करने पर बताया तत्कालीन सूचना निदेशक के कार्यकाल तक समय पर वेतन मिलता था। पर, विभाग से उनके जाने के बाद हमारे हालात भी बदल गये। तत्कालीन प्रमुख सचिव सूचना नवनीत सहगल ने वेतन बढ़ाने के लिए विभागीय अधिकारियों को निर्देशित भी किया। इतना ही नहीं आचार संहिता लगने से पूर्व वेतन बढ़ाने से सम्बंधित एक निविदा प्रकाशित कराई गई। पर, इस निविदा पर अब तक निर्णय नहीं हुआ है और वेतन यथावत है।

इस निविदा का भविष्य क्या होगा, यह समय के गर्भ में है। पर, ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि जब सूबे के मुख्यमंत्री कार्यालय में तैनात जनशक्तियों की भविष्य निधि और ईएसआई आदि का पैसा लगभग एक वर्ष से जमा नहीं हुआ और जिम्मेदार हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। तो बाकी कार्यालयों में तैनात जनशक्तियों की स्थिति क्या होगी?

एजेन्सी की कार्यप्रणाली पर भी सवाल
राज्य सरकार ने उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम को समस्त सरकारी संस्थाओं, निगमों व विभागों में श्रमशक्ति आपूॢत के लिये 27 अक्टूबर 2014 को एजेन्सी नामित किया। संबंधित शासनादेश के बिन्दु संख्या-4 और 6 के तहत निगम ने वेण्डर रजिस्ट्रेशन नियमावली भी बनाई। इसके तहत संबंधित वेण्डरों के माध्यम से आपूॢत की गई जनशक्तियों के पारिश्रमिक की पारदर्शी व्यवस्था आदि को विस्तार दिया गया। लेकिन बावजूद इसके सैकड़ों जनशक्तियों की भविष्य निधि और ईएसआई आदि एक वर्ष से जमा नहीं हो सकी और एजेंसी प्रबंध तंत्र के कागजी प्रयास आंधी में पतंग उड़ाने जैसे साबित हुये हैं।

कुछ तकनीकि कारणों के चलते कंप्यूटर ऑपरेटरों का पीएफ का पैसा जमा नहीं हो सका। जल्द ही इसे जमा करा दिया जायेगा।
मनोज सिंह, जनता शिक्षण संस्थान

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