- महिला कल्याण विभाग को मिली जिम्मेदारी
- बालश्रमिकों और कामकाजी महिलाओं का भी होगा उद्धार
- बड़ी तादाद में रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, बाजार, मंदिरों और चौराहों पर बच्चे, युवा, महिलाएं और बुजुर्ग मांगते हैं भीख
लखनऊ। योगी सरकार भिक्षुकों को पुनर्वास की सुविधायें उपलब्ध करके समाज की मुख्यधारा से जोडऩे का खाका खींच रही है। योजना के मुताबिक, सरकार भिखारी व बाल मजदूरों से राजधानी को मुक्त करने की योजना बना रही है। इसकी जिम्मेदारी महिला कल्याण विभाग को सौंपी गई है। योजना के प्रथम चरण में महिला कल्याण विभाग ने नगर विकास विकास विभाग से ऐसे भवनों की सूची मांगी है, जहां होम्स बनाये जा सकते हैं।
महिला कल्याण मंत्री रीता बहुगुणा जोशी के मुताबिक, योजना पर कार्य शुरू हो गया है। भिखारियों को शरणालयों में रखा जायेगा, जहां उनके भोजन-पानी की व्यवस्था होगी। इसी तरह मजदूरी करने वाले बच्चें को लाकर होम्स में रखा जायेगा। इसके लिये नगर विकास विभाग से विभिन्न शहरों में रिक्त आश्रय स्थलों व भवनों की सूची मांगी गई है। वहीं कामकाजी महिलाओं के लिये बड़े शहरों में हास्टल स्थापित किये जायेगे। इसके लिये भी नगर विकास विभाग से भवनों की सूची मांगी गई है।
गौरतलब है कि भिक्षुकों को पुनर्वासित कर समाज की मुख्यधारा से जोडऩे के लिये समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित भिक्षुक पुनर्वास योजना लागू है। इसके तहत भिक्षावृत्ति, कानूनन अपराध है। पर, शहर के मुख्य चौराहों, सहित अन्य सार्वजनिक स्थलों पर भिक्षावृत्ति को फलते-फूलते देखा जा सकता है। लखनऊ, कानपुर, आगरा, वाराणसी, इलाहाबाद और फैजाबाद में आठ भिक्षुक गृह हैं। पर, इनमें भिक्षुक गृहों में एक भी भिखारी बीते कई वर्षों से रखा नहीं गया है। इसकी वजह जर्जर इमारत बताई जाती है। राज्य सरकार की इस योजना के तहत भिक्षुक गृहों में भिक्षुकों को रहने-खाने, स्वास्थ्य, रोजगारपरक प्रशिक्षण और शिक्षा की व्यवस्था है। भिक्षुकों को मुख्य धारा से जोडऩे के लिये रोजगार मुहैया कराने की भी व्यवस्था है। पर, यह योजना सफेद हाथी साबित हुई है। भीख मांगते बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों में कई मजबूरी में ऐसा कर रहे हैं तो कुछ ने इसे अपना पेशा ही बना लिया है। समाज कल्याण विभाग की इस योजना को स्वयं पुनर्वास के आक्सीजन की सख्त दरकार है।
रेमन मैग्सेसे अवार्डी और भिक्षावृत्ति मुक्ति अभियान के संरक्षक डॉ. संदीप पाण्डेय का कहना हैकि भिक्षावृत्ति एक सामाजिक, आॢथक धाॢमक समस्या है। विभिन्न राज्यों ने भिक्षावृत्ति के उन्मूलन के लिये दंडात्मक प्रक्रिया अपना रखी है इसीलिए इस समस्या का उन्मूलन संभव नहीं हो पा रहा है। भिक्षुकों को पुनर्वास की सुविधायें उपलब्ध करके समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जा सकता है। भिक्षावृत्ति मुक्ति अभियान के संयोजक शरद पटेल बताते हैं, बड़ी तादाद में भिक्षुक रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, बाजार, मन्दिर और चौराहों पर हाथों में कटोरा लिये दिखाई देते हैं। भिक्षावृत्ति में बच्चों से लेकर बुजुर्ग, महिलायें सभी शामिल हैं। इस योजना का सही क्रियान्वयन न होने से भिक्षुकों का पुनर्वास दूर की कौड़ी साबित हुआ और यह योजना दम तोड़ गई।
भिक्षावृत्ति प्रतिषेध अधिनियम-1975
बता दें कि सूबे में उत्तर प्रदेश भिक्षावृत्ति प्रतिषेध अधिनियम-1975 लागू है। इसके तहत भिक्षावृत्ति कानूनन अपराध है। भिक्षावृत्ति को रोकने और भिक्षुकों को मुख्यधारा से जोडऩे के लिये इस अधिनियम में तमाम व्यवस्थायें की गई हैं। भिक्षुक पुनर्वास योजना के तहत प्रदेश में स्थापित आठ भिक्षुक गृहों में 18-60 वर्ष तक के भिक्षुकों को रहने-खाने, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा रोजगारपरक प्रशिक्षण देने की व्यवस्था है। पर, सरकार की यह योजना कागजों पर ही गुलाबी है।