एमएनआरई व यूपीईआरसी के नियमों को धता बता रहा नेडा प्रबंध तंत्र
सोलर रूफटॉप के जरिये 4300 मेगावाट बिजली उत्पादन को लग रहा झटका
सोलर पावर प्लांट लगाने के इच्छुकों के लिए शुरु किए गए पोर्टल से भी नहीं मिल पा रही सुविधा
सोलर प्लांट लगने के बाद उपभोक्ताओं को नेट मीटर के लिए लगाने पड़ते हैं चक्कर
पंकज पाण्डेय
लखनऊ। सूबे की नौकरशाही की कमाओ-खाओ नीति सरकारी योजनाओं पर बुरी तरह से भारी है। कमाऊ-खाऊ नीति का ही परिणाम है कि सरकारी योजनाएं धरातल पर नहीं उतर पा रही हैं। जिसके चलते जोर-शोर से शुरु होने वाली सरकारी योजनाएं धरातल पर उतरने की बजाय नौकरशाही की भेंट चढ़ जा रही है। मोदी और योगी सरकार के तमाम प्रयासों और कवायदों के बावजूद यूपी की नौकरशाही अपनी कमाओ-खाओ नीति से बाज नहीं आने वाली है। ईज ऑफ डूईंग बिजनेस में यूपी भले ही दो पायदान पर चढ़ गया है, लेकिन वैकल्पिक ऊर्जा विकास संस्थान (नेडा) एक ओर ईज ऑफ डूईंग बिजनेस ताक पर रख दिया है तो दूसरी ओर केन्द्र और प्रदेश की सोलर रूफटॉप योजना के नियमों की धज्जियां उड़ा रहा है। इससे प्रदेश में सोलर रूफटॉप के जरिए 4300 मेगावाट बिजली उत्पादन को झटका लगा है। इस मामले की शिकायत पर वैकल्पिक ऊर्जा मंत्री ने जांच के आदेश दिए हैं, लेकिन प्रमुख सचिव ऊर्जा और नेडा ने जांच के बजाए मंत्री के पत्र को ठंडे बस्ते में डाल दिया है।
गौरतलब हो कि मोदी और योगी सरकार ने वैकल्पिक ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रखी हैं। सोलर रूफटॉप योजना के तहत केन्द्र सरकार 30 फीसदी सब्सिडी और प्रदेश सरकार ने 30 हजार रुपए देने का प्रावधान किया है। इसके तहत यूपी को 4300 मेगावाट सोलर ऊर्जा का उत्पादन का लक्ष्य 2022 तक निर्धारित किया गया है। इसमें शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में रूफटॉप सोलर योजना को बढ़ावा दिए जाने की मंशा जताई गई है। साथ ही सब्सिडी का भी प्रावधान किया है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने जहां सोलर ऊर्जा से जुड़ी कम्पनियों को सूचीबद्घ की व्यवस्था से बाहर किया, वहीं सोलर ऊर्जा उत्पादों के रेट भी फिक्स कर दिए। उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग (यूपीईआरसी) ने सोलर रूफटॉप योजना को वर्ष 2015 में हरी झण्डी दी थी। इसमें भी रूफटॉप योजना के तमाम प्रावधान तय कर दिए थे।
नेडा के अफसरों की कमाओ-खाओ नीति के कारण रूफटॉप योजना पूरी तरह से फ्लाप शो बन गया है। 4300 मेगावाट सोलर ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य में अभी तक मात्र 20 मेगावाट का लक्ष्य तक नेडा पहुंच पाया है। रूफटॉप सोलर योजना के तहत चालू वित्त वर्ष में एक भी उपभोक्ता को सब्सिडी नहीं मिल पाई। जबकि सैकड़ों प्रस्ताव नेडा में धूल फांक रहे हैं। साथ ही नेडा ने सोलर ऊर्जा कम्पनियों को अपने काबू में करने के लिए तिकड़म लगाया है। एमएनआरई और यूपीईआरसी द्वारा निर्धारित मानकों को ताक पर रखकर अपना वर्चस्व बरकरार रखने के लिए नेडा ने पहले सभी सोलर ऊर्जा कम्पनियों को सूचीबद्घ करने के लिए 29,500 रुपए जमा करवाए। साथ ही तमाम बाध्यताएं भी निर्धारित की हैं। बावजूद इसके 175 कम्पनियों ने सूचीबद्घता के लिए आवेदन किया है। भारी भरकम आवेदन आने से अभी तक नेडा न तो सोलर कम्पनियों के सूचीबद्घता के आवेदनों का अध्ययन कर पाया है और न ही सब्सिडी की फाइलों को आगे बढ़ा पाया है।
नवीकरणीय ऊर्जा विशेषज्ञों का मानना है कि रूफटॉप योजना जनता के लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकती है। लेकिन नेडा के अफसरों का रवैया योजना को फ्लाप करने वाला प्रतीत हो रहा है। सोलर पावर प्लांट लगवाने के इच्छुक शहरी और ग्रामीण जनता घर बैठे आवेदन कर सके, इसके लिए यूपीनेडा ने पोर्टल की शुरुआत की थी, लेकिन नेट मीटरिंग के लिए लोगों को अब भी चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। सोलर पावर प्लांट की स्थापना के बाद जब तक नेट मीटर नहीं लगता, सब्सिडी के लिए आवेदन नहीं किया जा सकता। लोगों की शिकायत है कि प्लांट लगने के बाद नेट मीटर के लिए विद्युत विभाग दो-दो महीने दौड़ाता रहता है। अधिकतर तो नेट मीटर उपलब्ध ही नहीं होते हैं। ऐसे में उपभोक्ताओं से मीटर खुद खरीदने को कहा जाता है। फिर यदि कोई बाजार से नेट मीटर खरीद कर लाता है तो उसकी टेस्टिंग में विद्युत विभाग कई दिन लगा देता है। इस चक्कर में महीना-दो महीना कैसे निकल जाता है यह पता ही नहीं चलता। विभागीय कर्ता-धर्ता भी यह स्वीकार करते हैं कि नेट मीटरिंग के लिए उपभोक्ताओं को अनावश्यक दौड़-भाग करनी पड़ती है। वहीं विद्युत विभाग के अधिकारियों के मुताबिक विभाग नेट मीटर उपलब्ध कराता है। केवल चिनहट व गोमती नगर में ही अब तक 149 नेट मीटर लग चुके हैं। हालांकि नेट मीटर की कमी विभाग में बहुतायत रहती है। फिलहाल यह साफ है कि यदि सोलर पावर प्लांट को जन-जन में लोकप्रिय बनाना है तो इस व्यवस्था को सरल करना होगा। इस बाबत नेडा निदेशक अरुण सिंह से बात करनी चाही गयी तो उनसे संपर्क नहीं हो पाया।