आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल के बाद भी बढ़ रहे हादसे
बीते दो महीने में ही 95 यात्रियों ने गंवाई जान
लखनऊ। हाई-फाई बसें और एडवांस टेक्नोलॉजी के बावजूद रोडवेज बसें यमदूत बनी हुई हैं। बसों को दुर्घटनाग्रस्त होने से बचाने के लिए ऑटोमेटिक ब्रेक लगाने और ओवरस्पीडिंग समेत अन्य गतिविधियों पर नजर रखने के लिए कंट्रोल कमांड सेंटर बनाए जाने के बाद भी रोडवेज बसों के हादसे बढ़ते ही जा रहे हैं। जून महीने में ही एक के बाद एक हुए तीन हादसे में 26 लोग जान गंवा बैठे। बीते तीन महीने में जितने हादसे हुए उतनी दुर्घटनाएं रोडवेज के इतिहास में कभी नहीं हुईं। बीते दिनों उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने १०० दिन पूरे होने पर उपलब्धियां गिनाईं। इन उपलब्ध्यिों में शामिल परिवहन निगम के लिए यह 100 दिन किसी भयावह सपने की तरह रहा। उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम के लिए सरकार के १०० दिन अमंगलकारी साबित हुए। इन १०० दिनों में रोडवेज की सैकड़ों बसें दुर्घटनाग्रस्त हुईं और सैकड़ों घरों के चिराग बुझ गए हैं। यही नहीं कई घरों के मुखिया चोटिल होने के कारण विकलांग होकर बेरोजगार हो गए हैंं। उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम के पास अप्रैल और मई का सड़क दुर्घटनाओं का जो आंकड़ा मौजूद है, वह काफी चौंकाने वाला है। अप्रैल और मई को मिलाकर १४९ बसें दुर्घटनाग्रस्त हुईं। वहीं ९५ यात्री काल के गाल में समा गए। जून महीने में कई बड़ी घटनाएं हुईं जिनमें सई नदी में बस गिरने की घटना, बरेली में बस टकराने से २४ यात्रियों की मौत की घटना, सोमवार को गोसाईंगंज में एक युवक की मौत की घटना के साथ ही मंगलवार को कासगंज-एटा रूट पर बस पलटने की घटना में दर्जनों यात्रियों के घायल होने का आंकड़ा शामिल नहीं है।
ड्यूटी एलॉटमेंट साफ्टवेयर के प्रति लापरवाही
परिवहन निगम ने जिस उद्देश्य से ड्यूटी एलॉटमेंट साफ्टवेयर को डिपो स्तर पर लागू करने का आदेश जारी किया था वह क्षेत्रीय अधिकारियों की लापरवाही के चलते लागू नहीं किया जा सका। निगम मुख्यालय व क्षेत्रीय अधिकारियों में इस साफ्टवेयर को लेकर अलग-अलग धारणा भी देखने को मिली। रोडवेज मुख्यालय के प्रधान प्रबंधक (दुर्घटना) आशीष चटर्जी के अनुसार उक्त तकनीकी व्यवस्था राजधानी समेत तमाम डिपो में सुचारू रूप से चल रही है जबकि वास्तकविकता इससे इतर है। कई डिपो में तो यह भी देखने को मिला जिस मैगनस कंपनी के विशेषज्ञों ने क्रमवार उपरोक्त साफ्टवेयर में जिन चालक-परिचालकों का डिटेल फीड किया उसे जब चेक किया गया तो वो सही नहीं पाया गया। ऐसे में की-बोर्ड की कमान खुद एआरएम को संभालनी पड़ी। कंपनी कर्मियों को डिपो में साफ्टवेयर अपलोडिंग व डाटा फीडिंग का कार्य पूरा करने पर 2000 रुपये का भुगतान करता रहा। वहीं कई डिपो में यह भी पाया गया कि मुख्यालय द्वारा साफ्टवेयर अपलोडिंग के निर्देश तो दे दिये गये, पर उसके मुताबिक जरूरी तकनीकी संसाधन नहीं उपलब्ध कराया गया। कहीं कम्प्यूटर सही है तो की-बोर्ड खराब पड़े हैं तो कहीं प्रिंटर ही नहीं है।
हादसों के भयावह आंकड़े
अवधि दुर्घटनाओं की संख्या प्राणघातक हादसे मृतकों की संख्या घायल
अप्रैल २०१७ ७० ३४ ४६ १२२
मई २०१७ ७९ ४१ ४९ ९४
पिछले साल का आंकड़ा
अप्रैल २०१६ ६१ ३४ ४२ १०५
मई २०१६ ५७ ३३ ४१ ७१