- यूपीएसआईडीसी प्रबंध तंत्र ‘कांटों’ से निकाल रहा ‘कांटा’
- बमुश्किल एक दागी को कर पाये किनारे, तो कई दागियों की कर दी गई ताजपोशी
- समूह ‘क’ से ‘घ’ तक 100 से अधिक कार्मिकों के खिलाफ हुई हैं जांच
लखनऊ। उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास निगम में भ्रष्टाचार का पर्याय मुख्य अभियंता अरुण मिश्रा के कारनामे जगजाहिर हैं। पर, यूपीएसआईडीसी में एक नहीं, दर्जनों अरुण मिश्रा मौजूद हैं। बीते वर्ष तत्कालीन प्रशासनिक अधिकारी देवेन्द्र सिंह पाठक ने वित्त नियंत्रक को ऐसे अधिकारियों व कर्मचारियों की सूची भेजी जिनके विरुद्ध विभागीय, अनुशासनिक और अन्य जांचे चल रही थी। इस सूची में समूह क, ख, ग और घ संवर्ग के अधिकारियों-कर्मचारियों के नाम हैं। इसके बाद भी दागियों की इस सूची में कई नाम जुड़े और अब निगम को भ्रष्टचारमुक्त बनाने के लिये इनकी अहम पदों पर तैनाती कर दी गई हैं!
यूपीएसआईडीसी के चन्द अधिकारियों को छोड़ अधिकतर के दामन पर दाग हैं। इनके कारनामें विवादित मुख्य अभियंता की श्रेणी के हैं। इनमें से कई अधिकारी भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जा चुके हैं। विजिलेंस, सीबीसीआईडी, ईडी, ईओडब्ल्यू सहित सीबीआई जैसी संस्थायें इनके कारनामों की जांच कर रही हैं। हैरत की बात है कि बावजूद इसके अरुण मिश्रा की छवि निगम के महा-भ्रष्टतम अधिकारी की है। केवल अरुण मिश्रा को ही कानून के शिकंजे में जकडऩे की कोशिश हो रही है, जबकि निगम के अन्य दागी अधिकारियों की कारगुजारियों के कई प्रकरण हैं, जिनमें लैंड यूज बदलकर एक हजार करोड़ के घोटाले की जांच एसआईटी कर रही है।
इसके अलावा नोयडा में बिल्डरों को बेशकीमती औद्योगिक भूखण्ड रेवडिय़ों की तरह बांटना, बिना काम किये करोड़ों के भुगतान, ट्रोनिका सिटी गाजियाबाद में लो लैंड में उद्योग लगवाना, बिना चले एसटीपी व सीईटीपी के रख-रखाव में करोड़ों का भुगतान और लोनी औद्योगिक क्षेत्र में जो भूमि निगम के कब्जे में नहीं थी, ऐसे 39 भूखण्ड उद्यमियों को आवंटित करने आदि जैसे कारनामों को अंजाम देने वाले अधिकारी अब तक मालदार पदों पर काबिज हैं।
सूत्रों की मानें तो निगम में मौजूद दर्जनों दागियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने का साहस पिछली सरकारें नहीं उठा पाई। नतीजतन, इन दागियों का दिन-पर-दिन मनोबल बढ़ता गया और भ्रष्टïाचार के कारनामों की फेहरिस्त लम्बी होती रही। तत्कालीन प्रबंध निदेशक की सख्ती के बाद निगम के दागी अफसरों के दिन पूरे होने की उम्मीद जगी। पर, धंधेबाज अधिकारियों ने उनके दामन पर भी कीचड़ उछाल दिया। विभागीय अधिकारियों का दावा है कि वर्तमान प्रबंध निदेशक की कार्यप्रणाली से निगम में बदलाव की बयार चल रही है।
इन सार्थक प्रयासों के बीच जहां एक ओर दागी अधिकारियों की अहम पदों पर ताजपोशी ‘दाल में बहुत कुछ काले’ की तस्दीक कर रहा है। तो वहीं यह सवाल भी उठा रहा है कि ये दागी ‘भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस’ की नीति को कैसे साकार होने देगें। कहीं ‘भ्रष्टाचारयुक्त’ निगम को ‘भ्रष्टाचारमुक्त’ करने के लिये प्रबंध निदेशक की ‘कांटे से कांटा’ निकालने की कार्यप्रणाली निगम के दामन को और छलनी न कर दे।
सूची में समूह ‘क’ के इन अधिकारियों का नाम
संवर्ग ‘क’ के कई अधिकारी ऐसे हैं, जिन्होंने भ्रष्टाचार के मैदान पर दनादन चौके-छक्के जड़े हैं। निगम के तत्कालीन प्रशासनिक अधिकारी द्वारा जारी इस सूची में पहले पायदान पर निगम के मुख्य अभियंता अरुण मिश्रा का नाम है। दूसरा नाम मुख्य प्रबंधक संतोष कुमार का है। तीसरे पायदान पर अधीक्षण अभियंता मनमोहन का नाम दर्ज है। साथ ही वरिष्ठ प्रबंधक बीपी कुरील, एसके त्रिवेदी, पंकज पाण्डेय, केके यादव, अनिल वर्मा, प्रबंधक सुरेश कुमार, हिमांशु मिश्रा, एमडी आजाद, सतीश कुमार, आरएस पाठक, अधिशासी अभियंता सिविल संजय तिवारी, अजीत सिंह, आरके चौहान और एनके आदर्श के विरुद्ध जांच प्रचलित हुई। मौजूदा समय में इनमें से कई अधिकारी रिटायर हो गये, तो कई पदोन्नति के मार्ग से ऊंचे पदों पर विराजमान हैं।
समूह ‘ख’ के यह अधिकारी भी नहीं पीछे
वित्तीय वर्ष 2013-14 में जारी इस सूची में समूह ‘ख’ के जिन अधिकारियों के विरुद्ध जांच प्रचलित थी उनमें उप-प्रबंधक सुधीर कुमार कनौजिया, प्रमोद कुमार, रेशमा मौर्या, संजू उपाध्याय, डीडी तलरेजा, धर्म चन्द्र, शिरीष कुमार गुप्ता और सहायक अभियन्ता पन्नालाल, एसएल कुशवाहा, एमएल सोनकर, बी सरन, बीएस तोमर, प्रदीप कुमार, नागेन्द्र सिंह सहित अवर अभियंता डीके श्रीवास्तव और आरपी प्रजापति के नाम इस सूची में दर्ज हैं।
इन्होंने भी बिठाई जुगलबंदी
प्रशासनिक अधिकारी की इस सूची के मुताबिक, समूह ‘ग’ के जिन कर्मचारियों के विरुद्ध विभागीय अनुशासनिक कार्यवाही चली उनमें सहायक प्रबन्धक राम प्रसाद, आरती कटियार, शॢमला पटेल, रेनू सिंह गौड़ सहित अधीक्षक के पद पर तैनात मोहम्मद वसी, पीके गुप्ता, एसके निगम, डीएस मिश्रा का नाम है। उस समय सहायक श्रेणी प्रथम के पद पर तैनात एसएम मिश्रा, केबी श्रीवास्तव, राम कुमार व लेखाकार बीके तिवारी और राजेन्द्र सिंह का नाम भी दर्ज है। वहीं लियाकत हसन, जयन्त प्रताप, रामशंकर, कल्पना वर्मा, अवधेश कुमार वर्मा, लेखा लिपिक आरके सोनी, पीके शर्मा के साथ अवर अभियंता अख्तर हुसैन, एके अवस्थी, एसके वर्मा, अमर सिंह, मनोज कुमार सचान, राकेश बाबू और मानचित्रकार एके भारती के विरुद्ध भी जांच प्रचलित हुई। इतना ही नहीं इस सूची में समूह ‘घ’ के कर्मचारियों के नाम भी दर्ज हैं।