वित्तीय वर्ष 2016-17 में 1300 करोड़ रुपए के फायदे में रहा यूपीआरवीयूएनएल
पावर कॉरपोरेशन के घाटे की वजह से उत्पादन निगम को उठाना पड़ रहा नुकसान
उत्पादन निगम का पावर कॉरपोरेशन पर 6000 करोड़ रुपए से ज्यादा बकाया
बकाया भुगतान न होने से विद्युत उत्पादन व कर्मचारियों के वेतन भुगतान का बढ़ रहा संकट
पंकज पांडेय
लखनऊ। उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (यूपीआरवीयूएनएल) को लाभ का निगम होने के बावजूद दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। यूपीआरवीयूएनएल को दोहरा नुकसान उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन की वजह से हो रहा है। पावर कॉरपोरेशन के अंग के रुप में कार्य कर रहे उत्पादन निगम को लाभ की वजह से जहां टैक्स अदा करना पड़ेगा तो वहीं बकाया भुगतान न होने से कर्मचारियों के वेतन का संकट भी झेलना पड़ रहा है। दरअसल यह पूरा मामला पावर कॉरपोरेशन के घाटे और उत्पादन निगम व ट्रांसमिशन के फायदे से जुड़ा हुआ है। उत्पादन निगम व ट्रांसमिशन के फायदे में होने के बाद भी उन्हें पावर कॉरपोरेशन के घाटे की वजह से नुकसान उठाना पड़ रहा है। यूपीआरवीयूएनएल वित्तीय वर्ष 2015-16 में 100 करोड़ रुपए के फायदे में रहा जबकि वित्तीय वर्ष 2016-17 में यह फायदा बढ़कर 1300 करोड़ रुपए हो गया। वहीं पावर कॉरपोरेशन बिजली बिल न वसूल पाने व विद्युत चोरी पर अंकुश न लगा पाने की वजह से लगातार घाटे में जा रहा है। घाटे की वजह से पावर कॉरपोरेशन, उत्पादन निगम का बकाया नहीं दे पा रहा है। बकाया बढ़ते जाने की वजह से उत्पादन निगम में वेतन का संकट पैदा हो गया है। पावर कॉरपोरेशन, ट्रांसमिशन व उत्पादन निगम के प्रबंध निदेशक का चार्ज वर्तमान में एक ही अधिकारी के जिम्मे है। इसके बाद भी इस मामल में गंभीरता से कदम नहीं उठाया जा रहा है।
6000 करोड़ है देनदारी
यूपीआरवीयूएनएल का पावर कॉरपोरेशन पर वर्तमान में 6000 करोड़ रुपए से ज्यादा बकाया है। लाभ में होने के बावजूद उत्पादन निगम को बकाये का संकट झेलना पड़ रहा है। कॉरपोरेशन के बकाया न देने से अब कर्मचारियों के वेतन का संकट पैदा होने लगा है। जिससे कर्मचारी परेशान हैं।
कोल कंपनियों का बढ़ रहा बकाया
पावर कॉरपोरेशन के बकाया धनराशि न देने से उत्पादन निगम पर कोल कंपनियों की देनदारी बढ़ रही है। वर्तमान समय में 600-700 करोड़ रुपए कोल कंपनियों का बकाया उत्पादन निगम पर हो गया है। बकाया लगातार बढऩे से अब पावर प्लांटों में कोयले की कमी का संकट पैदा होने लगा है। इसी प्रकार आयल, पानी समेत अन्य जरुरी चीजों का पैसा भी उत्पादन निगम भुगतान नहीं कर पा रहा है।
मशीनों की नहीं हो पा रही ओवरहालिंग
नियमत: विद्युत उत्पादन गृहों की मशीनों की ओवरहालिंग साल भर में एक बार होनी चाहिए। लेकिन पैसा न होने की वजह से मशीनों की ओवरहालिंग नहीं हो पा रही है। जिसकी वजह से मशीनों का प्लांट लोड फैक्टर पीएलएफ कम होता जा रहा है। इसकी वजह से जनता को सस्ती बिजली मिलने में भी दिक्कत आ रही है।
2011 से नहीं मिला जनरेशन इन्सेंटिव
विद्युत उत्पादन गृहों में अच्छा कार्य करने वालों को प्रोत्साहित करने के लिए पावर कॉरपोरेशन की ओर से जनरेशन इन्सेंटिव दिया जाता है। लेकिन 2011 के बाद से अब तक किसी को भी जनरेशन इन्सेंटिव नहीं दिया गया। प्रोत्साहन भत्ते के रुप में की गयी इस व्यवस्था के जरिए कर्मचारियों को बेहतर कार्य के लिए प्रोत्साहित करना था। लेकिन समय के साथ इस व्यवस्था पर भी ग्रहण लग गया।
उत्पादन निगम से मिलती है सबसे सस्ती बिजली
राज्य विद्युत उत्पादन निगम के उत्पादन गृहों से प्रदेश को सबसे सस्ती बिजली मिलती है। जबकि केंद्रीय उत्पादन गृहों और निजी घरानों से प्रदेश की बिजली मांग को पूरा करने के लिए पावर कॉरपोरेशन को बहुत महंगी दरों पर बिजली खरीदनी पड़ती है। यही नहीं पीक आवर में बिजली की कमी को पूरा करने के लिए केंद्रीय पूल से बहुत अधिक महंगी दर पर बिजली खरीदनी पड़ती है। उत्पादन निगम से सस्ती मिलने के बावजूद सरकार व प्रबंधन उसके कायाकल्प के प्रति उदासीन बना हुआ है। उत्पादन गृहों की न तो क्षमता बढ़ायी जा रही है और न ही विद्युत उत्पादन कर रही इकाईयों के रखरखाव का ध्यान दिया जा रहा है।
पीसीएल का बढ़ता जा रहा घाटा
बकाए का भुगतान न होने से जहां उत्पादन निगम की हालत दिन ब दिन खराब होती जा रही है तो वहीं पीसीएल का घाटा भी लगातार बढ़ता जा रहा है। वर्तमान समय में पीसीएल 30 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा घाटे में चला रहा है। जानकारों की मानें तो इस घाटे के पीछे खुद पीसीएल प्रबंधन व वितरण से जुड़े अधिकारी जिम्मेदारी हैं। लाइन लास के नाम पर अधिकारियों व कर्मचारियों की मिलीभगत से कराई जा रही बिजली चोरी इसके लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है।