- सीएम से शिकायत करने वाले चीफ इंजीनियर पर हैं भ्रष्टाचार के दर्जनों आरोप
- 1100 करोड़ टेण्डर के कथित घोटाले में अरुण मिश्रा ने लगाया 200 से 300 करोड़ कमीशन लेने का आरोप
- निष्पक्ष जांच में अरुण मिश्रा काली कमाई के कुबेर यादव सिंह को छोड़ देंगे कोसों पीछे : सूत्र
शैलेन्द्र यादव
लखनऊ। सूबे में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करने की अहम जिम्मेदारी निभाने वाले उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास निगम में वर्चस्व बचाये रखने की जंग जारी है। बीते डेढ़ दशक के दौरान सूबे की सत्ता चाहे जिस राजनीतिक दल के पास रही हो, लेकिन यूपीएसआईडीसी में एकछत्र मुख्य अभियंता अरुण कुमार मिश्रा की तूती बोली है। बीते वर्ष जब तत्कालीन एमडी अमित घोष ने इनके अधिकारों में कटौती की, चर्चा उसी दौरान शुरू हो गई थी कि अब वर्चस्व बचाये रखने के चलते निगम अखाड़ा बनने वाला है। बीते दिनों मुख्यमंत्री से मुख्य अभियंता की कथित मुलाकात और भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच की मांग ने यूपीएसआईडीसी में अपना वर्चस्व बचाये रखने के लिये जारी जंग पर मुहर लगा दी है।
बीते दिनों चीफ इंजीनियर ने जैसे ही मुख्यमंत्री योगी से मिलने की खबर फैलाई उसके बाद हर दिन नये-नये खुलासे हो रहे हैं। विभागीय सूत्रों की मानें तो भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों में जेल की हवा खा चुके मुख्य अभियंता अरुण मिश्रा ने जिन 1,100 करोड़ रुपए के टेण्डर में घोटाले का ठीकरा तत्कालीन एमडी अमित घोष के सिर पर फोड़ा है, उसमें से लगभग 500 करोड़ रुपए के टेण्डर खुद उन्होंने एनसीआर की अपनी चहेती फर्मों की झोलियों में डाले हैं। इतना ही नहीं ट्रांस गंगा सिटी में कुछ फर्मों को बिना काम कराये करोड़ों की धनराशि अग्रिम भुगतान की व्यवस्था के तहत रेवडिय़ों की तरह बांटी है।
सूत्रों की मानें तो अगस्त २०१६ से पूर्व मुख्य सड़कों पर अरुण मिश्रा ने कोई काम नहीं किया था, जिससे निवेशकों को साइट तक जाने में परेशानियां होती थीं। यही वजह रही कि अमित घोष ने अपने कार्यकाल में मुख्य सड़कों का टेण्डर किया, जो कुल 600 करोड़ रुपए के थे। अरुण मिश्रा जब बाहर की सड़कों का टेण्डर अपने चहेते ठेकेदारों को नहीं दिलवा सके, तो उन्होंने अपनी चिर-परिचित शैली में एमडी के कार्यों पर सवाल उठाना शुरू कर दिया। साथ ही अपने करवाये काम को भी तत्कालीन एमडी अमित घोष पर डाल दिये, जबकि उस समय अमित घोष एमडी नहीं थे। सूत्रों का दावा है कि यदि मामले की निष्पक्ष जांच होती है, तो अरुण मिश्रा का जेल जाना तय है, क्योंकि उन्होंने अपने चहेते ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए उन सड़कों का टेण्डर पहले कर दिया जिन पर मुख्य सड़क बनने के बाद काम होना था।
सीएम दफ्तर की मुहर और आदेश कैसे
यूपीएसआईडीसी के विभागीय मंत्री सतीश महाना, एमडी रणवीर प्रसाद और मुख्यमंत्री के विशेष सचिव आदर्श सिंह चीफ इंजीनियर अरुण मिश्रा के सीएम से मुलाकात कर शिकायत करने की बात से इनकार करते रहे। मुख्य अभियंता के शिकायती पत्र पर सीएम के विशेष सचिव डॉ. आदर्श सिंह की मुहर और हस्ताक्षर वाले आदेश को लेकर सभी गोलमोल जवाब देते रहे। कहा गया, सीएम के यहां तमाम शिकायतें आती हैं और मार्क होकर चली जाती हैं। यह शिकायत भी आई होगी और उस पर मुहर लगकर चली गई होगी। अफसरों और मंत्री के बयान से सवाल उठ रहा है कि क्या सीएम मुख्यालय में आई शिकायतों को इतने कामचलाऊ तरीके से देखा जाता है। वो भी 1,100 करोड़ रुपये के घोटाले में एक आईएएस के खिलाफ हुई शिकायत को भी। यह भी सवाल उठता है कि अगर इतनी गंभीर शिकायत आई थी तो अफसरों ने सीएम को इसकी जानकारी दी या नहीं।
कहां का है मामला
यह पूरा मामला इलाहाबाद के सरस्वती हाइटेक सिटी और ट्रांसगंगा उन्नाव का है। यहां 1200 एकड़ में परियोजनाएं हैं। यहीं पर मुख्य सड़क का टेण्डर न कर छोटी-छोटी सड़कों का टेण्डर अरुण मिश्रा ने अपने चहेते ठेकेदारों को देकर काम करवा दिया। जब मेन रोड का टेंडर अमित घोष ने 600 करोड़ रुपए का किया तो इसमें से अरुण मिश्रा के ठेकेदारों को काम नहीं मिला। इससे नाराज अरुण मिश्रा ने पूरे प्रोजेक्ट में 300 करोड़ रुपए के घोटाले की जांच की चिट्टी आनन-फानन में मुख्यमंत्री के विशेष सचिव डॉ. आदर्श सिंह से विजिलेंस की जांच के आदेश करवा लिए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संज्ञान में आते ही दो निजी सचिवों पर गाज गिरी और दोनों को ही हटा दिया गया। गौरतलब है कि तत्कालीन एमडी अमित घोष अगस्त 2016 से मार्च 2017 तक निगम के एमडी रहे। इस दौरान ट्रांस गंगा सिटी और सरस्वती हाइटेक सिटी के अंदर सड़क निर्माण के लगभग 600 करोड़ रुपए के टेण्डर किये गये।
विवादों-आरोपों से पुराना नाता
1986 में सहायक अभियंता के पद पर भर्ती हुए अरुण मिश्रा का करियर काफी विवादित रहा है। उन पर भ्रष्टाचार और घोटाले के दर्जनों आरोप हैं। नौकरी जॉइन करने के तीन साल के अंदर ही पहली बार निलंबित किये गए। 2003 में मुलायम सरकार में अरुण को प्रमोट कर चीफ इंजीनियर बनाया गया। तब से वह इसी कुर्सी पर जमें हैं। गाजियाबाद और ट्रोनिका सिटी मामले में उन पर घोटाले के तमाम आरोप लगे। 2007 और 2011 में मिश्रा को मायावती सरकार में निलंबित किया गया। सीबीआई ने फर्जी बैंक खातों के जरिये करोड़ों के हेरफेर के आरोप में अरुण मिश्रा को गिरफ्तार किया। लंबे समय तक जेल में रहे। बाहर आने के बाद अखिलेश सरकार में फिर अहम तैनाती मिली। सूत्रों की मानें तो भ्रष्टाचार पर कोई समझौता न करने का दावा करने वाली योगी सरकार ने यदि निष्पक्ष जांच कराई तो अरुण मिश्रा के कारनामें जेल में बंद काली कमाई के कुबेर यादव सिंह को कोसों पीछे छोड़ देंगे।