- आठ माह तक होता रहा व्यापारियों का उत्पीडऩ
- अधिकारियों को जारी हुई नोटिस, संघ ने दिया ज्ञापन
- वाणिज्य कर मुख्यालय के अधिकारियों ने जीएसटी से इतर बना दिये अपने नियम
बिजनेस लिंक ब्यूरो
लखनऊ। सूबे के मुख्यमंत्री ने पिछले दिनों वाणिज्य कर सेवा संघ के अधिवेशन में अधिकारियों को प्रदेश का राजस्व बढ़ाने की नसीहत तो दी थी, इसका वाणिज्य कर मुख्यालय में तैनात अधिकारियों पर ऐसा असर पड़ा कि उन्होंने जीएसटी नियमों को दर किनार कर अपने एक अलग ही नियम की संरचना कर डाली है। नियम के इन वैज्ञानिकों की मंशा भले ही विभाग का राजस्व बढ़ाने की हो, लेकिन इस नियम से प्रदेश ही नहीं देश भर के व्यापारियों का इतना उत्पीडऩ हुआ कि मामला जीएसटी काउन्सिल तक पहुंच चुका है, काउन्सिल की दखल के बाद ये नियम तो खारिज हो गया लेकिन विभाग की सचल दल यूनिटों में तैनात असिस्टेन्ट कमिश्नर इस ‘वायरसÓ की जद में आ गये और नतीजा ये रहा कि दर्जनों अधिकारियों को नोटिस जारी हो गये। हैरत की बात ये है कि इन अधिकारियों को नोटिस इसलिए जारी हुई कि उन्होंने जीएसटी काउन्सिल द्वारा आदेश को खारिज किये जाने से पहले उस आदेश का पालन प्रवर्तन कार्यों में क्यों नहीं किया। इस कार्रवाई के बाद प्रदेश भर में घमासान मच गया है और अधिकारी संघ के अध्यक्ष सुनील कुमार वर्मा मोर्चा संभालते हुए कमिश्नर अमृता सोनी को ज्ञापन देकर इस कार्रवाई को उत्पीडऩ करार दिया है। सवाल ये है कि जीएसटी काउन्सिल ने करनिर्धारण की जो व्याख्या की है उसमें सचल दल अधिकारियों को निर्णय लिए जाने की शक्ति प्रदान की गयी है और हर विषय के लिए नियम भी तय है, तो मुख्यालय के अधिकारी खुद किस अधिकार से नियम बना रहे है और अधिकारियों पर कार्रवाई कर रहे हैं। इसकी जांच के लिए कमेटी का अभी तक गठन क्यों नहीं किया है, जिसका संघ मांग भी कर रहा है।
विभाग में शुरू होने जा रही इस नयी महाभारत की संरचना करने के लिए उन्हीं वैज्ञानिक अधिकारियों को जिम्मेदार माना जा रहा है, जिन्होंने मुख्यालय से सम्बद्ध होते ही 8 मई 2018 को एक आदेश जारी करके सचल दल अधिकारियों द्वारा टैक्सचोरी के मामलों में पकड़े गये माल पर स्वामित्व की परिभाषा सन 1930 के सेल्स एंड गुड्स एक्ट निकाल कर बदल डाली है। इससे प्रदेश ही नहीं देश के सबसे बड़े राज्य यूपी जहां सबसे अधिक माल की आवक होती है, इस अविधिक परिपत्र की आड़ में व्यापारियों का उत्पीडऩ किया जाता रहा। इनके नियम के अनुसार टैक्सचोरी में पकड़ा गये माल को छुड़ाने का पहला अधिकार माल के खरीददार को होगा जो कि जीएसटी एक्ट की मंशा के विपरीत है। व्यापारियों के माध्यम से जब ये मामला जीएसटी काउन्सिल के संज्ञान में आया तो जीएसटी काउन्सिल ने 30 दिसम्बर को माल के स्वामित्व को लेकर व्याख्या जारी की जिसके बिन्दु संख्या-6 में माल के सम्बंध में स्पष्ट किया गया है कि माल के प्रपत्रों में दर्ज के्रता या विक्रेता को भी माल पकडऩे जाने पर स्वामी के रूप में उपस्थित हो सकते हैं, उनसे टैक्स व इसके बराबर अर्थ दंड जमा कराकर माल अवमुक्त किया जा सकता है, इसके अलावा माल का कोई भी प्रपत्र न होने पर सचल दल अधिकारी को माल के स्वामी के सम्बंध में निर्णय लेने की शक्ति प्रदत्त है। जीएसटी काउन्सिल द्वारा माल के स्वामी के स्वामी की व्याख्या किये जाने के बाद मुख्यालय द्वारा पूर्व में जारी किये गये आदेश को निरस्त माल लिया गया और कार्रवाई जीएसटी एक्ट के तहत होने लगी। नया संग्राम तक शुरू हो गया जब मुख्यालय के सचल दल ने जीएसटी काउन्सिल द्वारा परिपत्र जारी किये जाने से पूर्व जो माल मुख्यालय द्वारा जारी आदेश के अनुपालन के आधार पर नही छोड़ा उसे राजस्व हानि मानते हुए नोटिस जारी कर दी।