- बड़ा काला है डॉक्टर गुप्ता का इतिहास, पिछले कार्यकाल में दागियों व अपराधियों को दिया संरक्षण
- आक्सीजन आपूर्ति फंड भेजने का काम खुद करते थे डॉ. गुप्ता, गोरखपुर मेडिकल में आक्सीजन की कमी पर उन्हें कौन बचा रहा?
बिजनेस लिंक ब्यूरो
लखनऊ। सूबे के चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक केके गुप्ता का नाम कई आरोपों से घिरा है। यह आरोप आर्थिक अनियमितता, दागियों व घोटालेदारों को संरक्षण देने सहित चहेती फर्मों को लाभ पहुंचाने के लिये नियमों को दरकिनार करने और कमीशनखोरी को बढ़ावा देने आदि जैसी गंभीर श्रेणी के हैं।
बावजूद इसके डीजीएमई के पद पर विवादित डॉ. केके गुप्ता की ताजपोशी हो गई। इतना ही नहीं गोरखपुर मेडिकल कालेज में असमय हुई मासूमों की मौत का एक कारण आक्सीजन की कमी के तार भी डॉ. केके गुप्ता से जुड़ रहे हैं। सूत्रों का दावा है कि कमीशनखोरी के चलते आक्सीजन आपूर्तिकर्ता फर्म का भुगतान लटकाये रखा गया। इसकी सीधी जिम्मेदारी महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा की बनती है।
चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ. गुप्ता के नाम समय-समय पर कई गंभीर आरोप जुड़े हैं। जैसे, विभाग में दागियों को प्रोन्नति देने से लेकर नियम विरुद्ध नियुक्ति देने में इनकी भूमिका के चलते इस पद से इन्हें हटाया गया था। लेकिन भ्रष्टाचार मुक्त सुशासन का नारा देने वाली योगी सरकार ने डॉ. गुप्ता की दोबारा डीजीएमई के पद पर ताजपोशी कर दी। सूत्रों की मानें तो पूर्व कार्यकाल में प्रधान सहायक के पद पर तैनात गैंगस्टर के आरोपी नवीन कुमार मिश्र को प्रशासनिक अधिकारी पद पर तैनाती देने का विवाद भी डॉ. गुप्ता के नाम जुड़ा है।
विभाग ने नवीन कुमार को वर्ष 2010 में संगीन आरोपों के चलते निलंबित कर दिया था। इतना ही नहीं पिछले कार्यकाल में डॉ. गुप्ता पर स्वाइन फ्लू घोटाले के आरोपी डॉ. आनंद स्वरूप को संरक्षण देने का आरोप भी है। जालौन मेडिकल कालेज का प्रिंसिपल रहते हुये डॉ. आनंद पर स्वाइन फ्लू की रोकथाम व उपचार के लिए जारी एक करोड़ 80 लाख रूपये डकारने के आरोप हैं। तत्कालीन झांसी जिलाधिकारी ने विभाग को सौंपी अपनी रिपोर्ट में इस घोटाले की पुष्टि भी की है।
विभागीय जानकारों की मानें तो तब विभाग की ओर से कार्रवाई करते हुये डॉ. आनंद रूवरूप को डीजीएमई कार्यालय से अटैच कर दिया गया। लेकिन डॉ. गुप्ता की विशेष मेहबानी के चलते डॉ. आनंद ने कार्यालय न आकर अपने गृह जनपद कानपुर में खुलेआम प्रैक्टिस जारी रखी। डा. गुप्ता के डीजीएमई के पद पर रहते हुये वर्ष 2014 के दौरान प्रदेश में आयोजित सीपीएमटी का पेपर आउट हुआ, तब तत्कालीन प्रदेश सरकार ने डॉ. गुप्ता को हटाकर डॉ. वीएन त्रिपाठी को महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा बनाया था। अब ऐसे में दर्जनों संगीन आरोपों के बावजूद प्रदेश सरकार की ओर से सीनियरटी को दरकिनार कर डॉ. केके गुप्ता पर मेहरबानी लुटाते हुये दोबारा महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा बनाना सुशासन व भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश के स्वप्न की मुहिम को कमजोर कर सकता है।
मेरठ के निर्माण कार्यों में चहेतों को पहुंचाया लाभ
मेरठ स्थित लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कालेज में ङ्क्षप्रसिपल के पद पर रहते डॉ. केके गुप्ता ने तीन मॉड्यूलर ऑपरेशन थियेटर समेत कई निर्माण कार्यों की अनुमति दी। आरोप है कि डॉ. गुप्ता ने नियम कानून ताक पर रखकर करोड़ों के निर्माण कार्यों की स्वीकृति व बजट जारी करके अपने चहेते ठेकेदारों को लाभ पहुंचाया। हालांकि डॉ. गुप्ता सभी कार्य नियमानुसार होने का दावा करते रहे हैं।
मुख्यमंत्री से की जांच की मांग
मेरठ निवासी समाजसेवी रविकांत ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से डीजीएमई डॉ. गुप्ता के कारनामों की शिकायत की है। शिकायती पत्र में १९ गंभीर आरोपों की जांच कराने की मांग की गई है। मेरठ मेडिकल कालेज में कराये गये निर्माण कार्य, सीनियरटी के विपरीत तैनाती आदि समेत कई गंभीर आरोपों का जिक्र है। रविकांत ने मुंख्यमंत्री से मांग करते हुए लिखा है कि डॉ. गुप्ता पर लगे आरोपों की जांच के लिए एसआईटी गठित की जाय।
चहेती मैनपावर आउटसोॢसग फर्म को पहुंचाया लाभ
जानकारों की मानें तो वर्ष 2016 में मेरठ मेडिकल कालेज प्रधानाचार्य रहते हुए डॉ. केके गुप्ता ने यूपीएसआईसी को अंधेरे में रखकर चहेती फर्म को सृजित पदों से कहीं अधिक का वर्क आर्डर दे दिया। आज इस चहेती फर्म पर यूपीएसआईसी ने रोक लगा रखी है तो डॉ. गुप्ता ओपन टेंडर के माध्यम से इस कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिए 14 अक्टूबर 2015 के शासनादेश को नकार दिया है। सहारनपुर मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य ने इस शासनादेश को दरकिनार करते हुए व्यक्तिगत रूप से निविदा आमंत्रित कर दी, जो काॢमकों की उपलब्धता के संदर्भ में न्याय संगत नहीं है। विभागीय जानकारों की मानें तो ऐसा वर्तमान चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक केके गुप्ता के दबाव के चलते किया गया है।
सेवा शुल्क में होगा खेल
सूत्रों का दावा है आने वाले समय में चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक केके गुप्ता अपनी चहेती कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए सभी मेडिकल कालेजों का टेंडर निकलवाने वाले हैं। टेंडर की शर्तों के अनुसार कंपनी को दिया जाने वाला सेवा शुल्क पांच प्रतिशत से कम नहीं होगा, जबकि इसके लिए कोई भी शासनादेश नहीं है। अगर पांच प्रतिशत सेवा शुल्क देना ही है तो यूपीएसआईसी को क्यो न दिया जाय। नियमानुसार टेंडर की धरोहर राशि कुल प्रोजेक्ट कास्ट की दो प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती, जबकि निकाले गये टेंडर की ईएमडी 25 लाख रूपये रखी गई है।
दुविधा में दोनों गये, माया मिली न राम
यह पक्तियां मेडिकल कालेज सहारानपुर के प्रधानाचार्य पर फिट बैठ रही है। मैनपावर आउटसोॢसंग का टेंडर उनके लिए गले की हड्डी बन गया है। सूत्रों की मानें तो प्रधानाचार्य टेंडर निकालना नहीं चाहते थे, लेकिन चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक केके गुप्ता के कहने पर आधी-अधूरी तैयारी से यह निविदा निकाल दी। अब आये दिन इसका शुद्वि पत्र प्रकाशित कराना पड़ रहा है। 19 अगस्त को प्रकाशित शुद्घि पत्र के अनुसार अब टेंडर खोलने की तिथि बढक़र 26 अगस्त हो गई। इलाहाबाद से टेंडर डालने आये एक कंपनी के प्रतिनिधि ने बताया, यहां आकर मुझे पता चला कि सहारनपुर मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य ने टेंडर में कई नये नियम जोड़ दिये हैं। जैसे, तकनीकी निविदा का आगणन नंबर पर आधारित कर दिया गया है। जानकारों का दावा है, ऐसा इसलिए किया गया जिससे चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक केके गुप्ता की चहेती कंपनी के अलावा अन्य दूसरी कंपनियां तकनीकी निविदा में पास न हो सके और यह टेण्डर उनकी चहेती कंपनी की झोली में चला जाय।