- सरकार के आदेश के बाद भी वाणिज्यकर अधिकारी नहीं बता रहे संपत्ति का ब्योरा
- अधिकारियों को सता रहा पोल खुलने का डर, अब तक केवल 50 फीसद अधिकारियों ने ही दिया ब्योरा
लखनऊ। सरकार का राजस्व बढ़ाने वाले वाणिज्य कर अधिकारी आखिर सरकार को अपनी संपत्तियों का ब्योरा क्यों नहीं दे रहे हैं? चार माह बीतने के बावजूद सरकार को संपत्ति का हिसाब-किताब नहीं मिला है।
इस असमर्थता का कारण क्या है? जब वे अपना हिसाब देने में इतने कमजोर हो सकते है तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि सूबे के कारोबारियों का हिसाब करने में वे कितने सजग होंगे। अधिकारियों का यह उपेक्षित रवैया क्या किसी काली करतूत के उजागर होने के डर से तो नहीं है?
विदित है कि उत्तर प्रदेश सरकार के बार-बार निर्देश के बाद भी वाणिज्यकर विभाग के अधिकारी अपनी अचल संपत्तियों का ब्योरा नहीं दे रहे हैं। अप्रैल से अब तक मात्र 50 प्रतिशत अधिकारियों ने संपत्तियों का ब्योरा मुख्यालय को उपलब्ध कराया है। जिन अधिकारियों ने ब्योरा नहीं दिया है उन्हें मौका और देते हुए एक सप्ताह में संपत्ति की जानकारी देने का समय दिया गया है।
लेकिन सवाल ये उठता है कि अधिकारियों को बार-बार चेतावनी देने के बाद भी जब उन अधिकारियों ने अपनी संपत्ति का ब्योरा नहीं दिया, तो वाणिज्य कर मुख्यालय ने अब तक कोई ठोस एक्शन क्यों नहीं लिया? आपको बता दे कि वाणिज्य कर मुख्यालय की ओर से इस संबंध में सभी जोन के एडिशनल कमिश्नर ग्रेड-1 व ग्रेड-2, ज्वाइंट कमिश्नर, असिस्टेंट कमिश्नर, वाणिज्यकर व सांख्यिकीय अधिकारियों के संपत्ति का ब्योरा देने के लिए मार्च में प्रारूप भेजा गया था।
सभी अधिकारियों को वित्तीय वर्ष 2018-19 तक की संपत्तियों का ब्योरा इसी प्रारूप पर हर हाल में 30 अप्रैल तक देने को कहा गया था। पर, अंतिम तिथि बीतने के करीब चार माह बावजूद 1,262 अधिकारियों ने ही अपनी संपत्ति का ब्योरा उपलब्ध कराया है। जबकि विभाग के अधिकारी संवर्ग की कुल संख्या लगभग 2,450 है। इस लिहाज से देखा जाये तो अब तक सिर्फ 50 प्रतिशत अधिकारियों ने जानकारी दी है।
संपत्ति की जानकारी देने के लिए मुख्यालय से अब तक कई बार रिमाइंडर भी भेजे गये, लेकिन अफसरों ने ब्योरा देना मुनासिब नहीं समझा। अधिकांश अधिकारी चुप्पी की चादर ओढ़े हैं। विभाग की ओर से एक बार फिर सख्त आदेश जारी किए गए हैं। इसमें कहा गया है कि एक सप्ताह में ब्योरा न देने वाले अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी।
हालांकि विभागीय अधिकारी इस प्रकरण पर बोलने से बच रहे हैं लेकिन ये देखना काफी रोमांचक होगा कि विभागीय अधिकारियों में कौन अपनी कुंडली जमा करता है और कौन नहीं?
2,450 अधिकारी से मांगा था ब्योरा
उत्तर प्रदेश के वाणिज्य कर विभाग में अधिकारी संवर्ग की कुल संख्या 2,450 के करीब बतायी जाती है। लेकिन इनमें से केवल 1,262 अधिकारियों ने ही अपनी संपत्ति का ब्योरा वाणिज्य कर मुख्यालय को दिया है। जब मुख्यालय को पता चला कि अब तक आधे से ज्यादा अधिकारियों ने ब्योरा नहीं दिया, तो उन्हें बारंबार स्मरण पत्र जारी किए गये। अंत में एक सप्ताह का समय भी दिया गया। अब देखना ये होगा कि इनमें कितने अधिकारी अपनी कुंडली विभाग को देते है और कितने छिपाने में कामयाब होते हैं।
शहर-गांव, पैतृक का भी देना था ब्योरा
संपत्तियों का ब्योरा भेजने के लिए तैयार प्रारूप में शहरी संपत्तियों के अलावा गांव की संपत्तियों का भी उल्लेख अनिवार्य रूप से करना है। इसी तरह पैतृक-अॢजत संपत्तियों का अलग-अलग ब्योरा भी देने के निर्देश हैं। प्रारूप के मुताबिक, भूमि और मकानों का अलग जिक्र करना है।
मौजूदा-भविष्य का भी देना होगा हिसाब
अधिकारियों व कर्मचारियों को मौजूदा संपत्तियों के साथ ही भविष्य में अॢजत की जाने वाली संपत्तियों की भी घोषणा करनी होगी। ताकि पांच साल बाद फिर से दिए जाने ब्योरे से घोषित संपत्तियों का मिलान किया जा सके।
4 माह बीतने के बाद भी कार्यवाही नहीं?
वाणिज्य कर विभाग कारोबारियों को चार दिन का समय नहीं देता, यदि कारोबारी ने कोई भी कार्य समय से नहीं किया तो उसके बदले उनसे चार दिन में जुर्माना वसूल लिया जाता है। लेकिन उसी विभाग के अधिकारी चार महीने से अपना खुद का हिसाब देने में कोताही बरत रहे है तो उनको कैसे शासन में बैठे अधिकारी कार्यवाही के बिना छोड़ सकते है। यदि उन लापरवाह अधिकारियों ने सरकार के बार-बार निर्देश के बाद भी मनमानी कर ब्योरा नहीं दिया तो सजा कौन देगा?