लखनऊ। प्रदेश सरकार के वृक्ष महाकुम्भ अभियान को शहर व गांवों में छुट्टा घूम रहे 13 लाख से अधिक आवारा पशुओं से सबसे बड़ा खतरा है। सरकार की ‘एक नागरिक-एक पेड़Ó योजना को चहुंओर सराहना जरूर मिल रही है लेकिन इस योजना में लगाये गये पौधों को आवारा पशुओं से बचाना पौधरोपण अभियान से भी अधिक कठिन है।
वृक्ष महाकुम्भ अभियान में रोपित पौधों को बचाने के लिए वन व अन्य विभागों ने पुख्ता योजना भी नहीं बनायी है। अधिकतर विभागों ने पौधों का संरक्षण ग्राम पंचायतों या ग्रामीणों पर छोड़ दिया है। वन विभाग के अधिकारी कहते हैं कि पौधों की रक्षा के लिए ग्रामीणों को जागरूक किया जा रहा है।
सवाल यह है कि जो किसान अपनी फसलों को आवारा पशुओं से नहीं बचा पा रहे हैं वह पौधों की रक्षा किस तरह से करेंगे। हमारे देश में मात्र 19.5 प्रतिशत हिस्से में ही वन जंगल है, जबकि किसी भी देश में पर्यावरण संतुलन बनाये रखने के लिये 33 प्रतिशत हिस्से में वन होना जरूरी माना गया है। भारतीय वन सर्वेक्षण के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुल भौगोलिक क्षेत्र का 9.18 प्रतिशत क्षेत्र ही वन से आच्छादित हैं। प्रदेश में वन क्षेत्र बढ़ाने के लिये प्रदेश सरकार द्वारा प्रतिवर्ष वृक्षारोपण कराया जा रहा है।
सरकार ने इस वर्ष प्रदेश में 22 करोड़ पौधों का रोपण कराया है। पौधरोपण का जितना महत्व है उससे भी अधिक महत्वपूर्ण कार्य रोपित किये गये पौधों की सुरक्षा करना होता है। सरकारी तंत्र यहीं पर फेल हो जाता है। इस बार के वृक्ष महाकुम्भ अभियान में भी पौधों के संरक्षण पर कोई भी ठोस नीति नहीं बनायी गयी है।
इस बार सबसे अधिक पौधरोपण का कार्य वन विभाग, पंचायती राज, ग्रामीण विकास व राजस्व विभाग द्वारा कराया गया है। इन विभागों द्वारा कराया गया रोपण ग्रामीण क्षेत्र में ही है। यहां पर कुछ ग्रामीणों को लेकर ग्राम समितियां व वृक्ष अभिभावक बनाकर उनसे अपेक्षा की गयी है कि वह पौधों की रक्षा करेंगे। पशुपालन विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में 13 लाख से अधिक पशु छुट्टा घूम रहे हैं।
यह पशु ग्रामीणों की फसल बर्बाद करने के साथ ही हरे-भरे पेड़ों को भी नहीं बख्श रहे हैं। आवारा पशुओं से पौधों की रक्षा करना ग्रामीणों के लिए भी कठिन है। प्रधान मुख्य वन संरक्षक पवन कुमार से बात करने का प्रयास किया गया तो उनका सरकारी नम्बर बंद मिला।