- सहकारी बैंकों की बैलेंस सीट जांच रहा नाबार्ड, 35 से अधिक जिला सहकारी बैंकों में खेल
- दो दर्जन प्रबंधक-कैशियर निलंबित, नप सकते हैं कई अधिकारी-कर्मचारी
- जल्द होगी धारा-68 के तहत वसूली
शैलेन्द्र यादव
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में सहकारिता विभाग की दाल में कुछ काला है या फिर सहकारिता की पूरी दाल ही काली है? यह सवाल सहकारिता क्षेत्र की शीर्ष बैंकों में अंजाम तक पहुंचाई गई कमाई की काली कहानियां उठा रही हैं। किसानों को दीर्घकालीन ऋण मुहैया कराने वाले उत्तर प्रदेश भूमि विकास बैंक में हुई मनमानी भर्तीयों सहित अन्य प्रकरण हों या फिर जिला सहकारी बैंकों में 53 सहायक प्रबंधकों की नियुक्तियों आदि के मामले। मनमानी की पराकाष्ठ दोनों ही प्रबंध तंत्रों का आईना रही है। नतीजतन, बैलेंस सीट की जांच में 400 करोड़ रुपये का हिसाब नहीं मिल रहा है।
बता दें कि बीते दिनों भारतीय रिजर्व बैंक, सहकारी बैंक पर्यवेक्षण विभाग ने 14 मई 19 को आयुक्त एवं निबंधक सहकारिता को अवगत कराया कि नाबार्ड द्वारा 31 मार्च 2017 की स्थिति में 38 जिला सहकारी केन्द्रीय बैंकों, राज्य सहकारी बैंक का निरीक्षण कर जो रपट प्रस्तुत की गई है उसके मुताबिक, 22 जिला सहकारी बैंकों का संचालन वर्तमान एवं भविष्य के जमाकर्ताओं के हित में नहीं है। साथ ही नाबार्ड ने इन बैंकों के लाइसेन्स जारी रखने की अनुशंसा करते हुये कहा कि हमारे लिये यह चिन्ता का विषय है कि इन बैंकों के लाइसेंस को जारी रखने से जमाकर्ताओं के हित को नुकसान हो सकता है। इसीलिये इस मामले की जांच कर बैंकों की वित्तीय व्यवस्था सुधारी जाय।
अब तक करोब दो दर्जन प्रबंधक और कैशियर निलंबित किये जा चुके हैं। जल्द ही जिम्मेदार अधिकारियों और कर्मचारियों से वसूली के लिये धारा-68 के तहत कार्रवाई होगी। कई अधिकारी और कर्मचारी बर्खास्त भी किये जायेंगे।
एमवीएस रामीरेड्, प्रमुख सचिव, सहकारिता
इस पर आयुक्त एवं निबंधक सहकारिता ने अविलम्ब विभागीय अधिकारियों को जांच के निर्देश दिये। साथ ही बैंकों की वित्तीय स्थिति तथा प्रबंधन सुधारने के लिये वित्तीय सलाहकार सहकारिता से विचार-विमर्श उपरान्त कार्ययोजना तैयार कराकर आवश्यक कार्यवाही के लिये निर्देशित किया। इसके बाद जिला सहकारी बैंक अलीगढ़, इलाहाबाद, आजमगढ़, बलिया, बस्ती, बहराइच, बदायूं, देवरिया, फतेहपुर, गाजियाबाद, गाजीपुर, गोरखपुर, हरदोई, जौनपुर, कानपुर, मैनपुरी, मथुरा, मऊ, सिद्धार्थनगर, सीतापुर, सुल्तानपुर और वाराणसी के सचिव, मुख्य कार्यपालक अधिकारी को जांच पत्र भेजा गया।
जानकारों की मानें तो तमाम अनियमिततायें सामने आने पर उत्तर प्रदेश सहकारी बैंक के साथ ही प्रदेश की सभी 50 जिला सहकारी बैंकों के वित्तीय वर्ष 2010-11 से 2015-16 की बैलेंस सीट की जांच शुरू कराई। दो माह से चल रही इस जांच में पता चला कि पूर्ववती सपा और सपा सरकारों के दौरान जिला सहकारी बैंकों में बड़े पैमाने पर घोटाले हुये। गलत तरीके से कुछ लोगों को बड़े कर्ज देकर बैंकों की कमर तोड़ी गई। खाताधारकों के हस्ताक्षर, फोटोग्राफ और केवाईसी तक बैंक सिस्टम में अपलोड नहीं की गईं। समय से पूर्व जमा खातों से भुगतान करा दिया गया। प्रदेश के 35 से अधिक जिला सहकारी बैंकों की बैलेंस सीट की जांच में अब तक करीब 400 करोड़ रूपये के घोटाले सामने आ चुके हैं।
जानकारों की मानें तो जांच में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला सहकारी बैंकों से बड़े घोटालों के अधिक मामले आये हैं। मथुरा, अलीगढ़, बदायूं, आगरा, मुरादाबाद, बिजनौर, बांदा, फैजाबाद, कानपुर आदि जिला सहकारी बैंकों में बड़े पैमाने पर हेराफेरी सामने आ चुकी हैं। बता दें कि प्रदेश में कुल 50 जिला सहकारी बैंक हैं। इनमें से पूर्वी उत्तर प्रदेश के 16 बैकों की दशा इतनी दयनीय है कि वह ठीक से काम तक नहीं कर पा रहे हैं।
बता दें कि सहकारिता क्षेत्र के शीर्ष सहकारी बैंकों में कई प्रकरणों में जांच हो चुकी हैं, तो कई की हो रही हैं या फिर होनी शेष हैं। न्यायालय द्वारा कुछ मनबढ़ अधिकारी कारागार प्रवास पर भेजे जा चुके हैं, तो कईयों को यह राह जल्द पकडऩी पड़ सकती है। प्रदेश के 35 से अधिक जिला सहकारी बैंकों में करोड़ों रुपये के घोटालों को सुनियोजित रूट से अंजाम दिया गया। बैंकों की बैलेंस सीट की जांच में अब तक करीब 400 करोड़ रूपये के घोटाले सामने आ चुके हैं। इस मनमानी का दंश बैंक की स्थिति पर पड़ रहा है, यह समझते हुये योगी सरकार ने जिला सहकारी बैंकों के दो दर्जन से अधिक प्रबंधक-कैशियर को निलंबित कर दिया है। साथ ही इस हेराफेरी के जिम्मेदार हुक्मरानों को चिन्हित कर वसूली व बर्खास्तगी की तैयारी कर रही है। पर, ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि जो सेवानिवृत्त हो चुके हैं उनका क्या!