- चिकित्सा विभाग के विभिन्न कार्यालयों में सैकड़ों विशेषज्ञ चिकित्सक वर्षों से अपने मूल कर्तव्य से हैं दूर
- अस्पतालों में विशेषज्ञ चिकित्सकों को तैनात करने के लिए प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य ने जारी किया आदेश
- प्रदेश के चिकित्सालयों में है विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी
- बीते दिनों 200 चिकित्सक हुए थे अनुबंधित, जिनके मानदेय पर प्रतिवर्ष खर्च होंगे लगभग 10 करोड़ रुपये
बिजनेस लिंक ब्यूरो
लखनऊ। प्रदेश में बड़ी तादाद में अपने मूल दायित्व से दूर सरकारी विशेषज्ञ चिकित्सकों को अब स्वास्थ्य महकमा बाबूगीरी के काम से हटाकर रोगियों के इलाज में तैनात करेगा। पर, यह प्रक्रिया महज मुख्य चिकित्साधिकारी के अधीन तैनात विशेषज्ञ चिकित्सकों के प्रकरणों में ही अपनायी जायेगी। एक ओर प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों की भारी कमी है, जो जनसामान्य को बेहतर इलाज दिलाने में बाधक है। वहीं दूसरी ओर प्रदेश में सैकड़ों सरकारी चिकित्सक वर्षों से मुंशीगीरी के कार्य में लगे हुए हैं।
बीते दिनों विशेषज्ञ चिकित्सकों को चिकित्सालयों में तैनात करने के लिए प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य प्रशान्त त्रिवेदी ने प्रदेश के समस्त जिलाधिकारियों को पत्र भेजा है, जिसमें लिखा है कि प्राय: ऐसा देखने में आया है कि विशेषज्ञ विधा के चिकित्सकों की मुख्य चिकित्साधिकारी के अधीन तैनाती होने के कारण उनकी विशेषज्ञ विधा की व्यापक रूप से उपयोगिता नहीं हो पा रही है। जनसामान्य को बेहतर चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए चिकित्सालयों में विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी दूर करने के लिए मुख्य चिकित्साधिकारी के अधीन तैनात विशेषज्ञ चिकित्सकों को जनपद के जिलाधिकारी के अनुमोदन से तत्कालिक रूप से संबंद्ध किया जाना है। प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य के इस पत्र में लिखा है कि जनपद के मुख्य चिकित्साधिकारी के अधीन तैनात विशेषज्ञ विधा के ऐसे चिकित्सक जिनकी चिकित्सालयों में आवश्यकता है, उन्हें चिन्हित करते हुए चिकित्सालयों में इनकी तैनाती के लिए जिलाधिकारी का अनुमोदन प्राप्त किया जाय। साथ ही इसकी सूचना शासन को उपलब्ध कराई जाय, जिससे विशेषज्ञ चिकित्सकों का संबंधित चिकित्सालयों में समायोजन किया जा सके।
गौरतलब है कि बीते दिनों चिकित्सा विभाग ने डॉक्टरों की कमी के नाम पर करोड़ों का मानदेय खर्च कर चिकित्सकों को अनुबंधित किया है। चिकित्सा विभाग के कई ऐसे संस्थान व कार्यालय हैं, जहां विशेषज्ञ चिकित्सक वर्षों से अपने मूल कर्तव्य से दूर हैं और मुंशीगीरी के कार्य में जोत दिये गये हैं। प्रदेश में ऐसे चिकित्सकों की संख्या सैकड़ों में है। सरकार-ए-सरजमीं लखनऊ के अलीगंज स्थित राज्य स्वास्थ्य संस्थान तो महज बानगी भर है। यहां विशेषज्ञ चिकित्सक वर्षों से आराम फरमा रहे हैं। बता दें कि प्रदेश के 75 जनपदों के पेयजल की जांच करने वाले राज्य स्वास्थ्य संस्थान में आधा दर्जन चिकित्सक तैनात हैं। इनमें से चार विशेषज्ञ चिकित्सक हैं। संस्थान में कार्यवाहक अपर निदेशक के पद पर कार्यरत सुषमा सिंह स्त्री एवं प्रसूत रोग विशेषज्ञ हैं, जो इस संस्थान में पानी के जांच दल की मुखिया हैं।
वहीं कार्यवाहक अपर निदेशक के पति डा. एपी सिह बाल रोग विशेषज्ञ हैं, जो संस्थान में संयुक्त निदेशक के पद पर तैनात हैं। संस्थान में नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. सविता विश्वास भी तैनात हैं। इसके अलावा एक एमबीबीएस डा. संदीप गुलाटी भी हैं। इन चिकित्सकों के अलावा डॉ. मीना सिंह भी इस संस्थान की वेतनभोगी हैं। पर, इनकी तैनाती किसी अन्य संस्थान में है। एक शासनादेश के अनुपालन में इनका वेतन संस्थान वहन कर रहा है। वहीं लम्बे समय से अस्वस्थ हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. अजय साहनी को लम्बे समय से प्रतिमाह पूरा वेतन गिफ्ट के रूप में दिया जा रहा है। डॉ. साहनी की अस्वस्थ्ता का आलम यह है कि वो अकेले कहीं आने-जाने में असमर्थ हैं। इसलिये उनके परिजन रोजाना उन्हें कार्यालय लेकर आते हैं और उपस्थिति रजिस्ट्रर में हस्ताक्षर करवाने के बाद साथ लेकर ही चले जाते रहे हैं।
यह सिलसिला लम्ब समय से चल रहा है। बीते दिनों जरूर उन्हें दोपहर तक कार्यालय में बिठाया गया, पर यह अधिक दिनों तक हो नहीं सका। राज्य स्वास्थ्य संस्थान में काम के नाम पर विशेषज्ञ चिकित्सकों के करने लायक कुछ नहीं है। पानी की जांच अन्य स्टाफ ही निपटा देता है। बावजूद इसके उन्हें वेतन उतना ही मिलता है, जितना अस्पतालों में तैनात चिकित्सकों को। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि जनसामान्य को बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने वाली राज्य सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता तब तक पूरी नहीं होगी, जब तक सभी विशेषज्ञ चिकित्सकों को बाबूगीरी के कार्य से हटाकर मूल दायित्व नहीं सौंपा जाता।