सड़क सुरक्षा का बजट ही खर्च नहीं कर पाए अफसर
लखनऊ। परिवहन विभाग साल भर सड़क सुरक्षा से जुड़े कई तरह के आयोजन राजधानी समेत प्रदेश भर में कराता है, लेकिन इनका कोई फायदा सड़क सुरक्षा के मामले में धरातल पर नजर नहीं आता। सड़क हादसों का ग्राफ घटने की बजाय बढ़ता ही जाता है। साल दर साल यह आंकड़ा पिछले साल की तुलना में ज्यादा ही होता है। दरअसल, सड़क सुरक्षा जीवन रक्षा की जिम्मेदारी संभालने वाले आफसर ही इसमें लापरवाही बरत रहे हें। यह हम नहीं कह रहे बल्कि यह परिवहन विभाग को सड़क सुरक्षा फंड से मिलने वाला बजट बता रहा है। पिछले वित्तीय वर्ष के लिए सरकार की ओर से सड़क सुरक्षा फंड के तहत हादसों पर रोक लगाने के लिए ५० करोड़ रुपये दिए गए, लेकिन विभागीय अधिकारी महज २४ करोड़ रुपये ही खर्च कर पाए। २६ करोड़ रुपया ३१ मार्च की रात लैप्स हो गया। यही वजह रही कि शहर से लेकर गांव तक रोजाना हो रही सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के सारे प्रयास धराशाई हो गए। सड़क सुरक्षा से जुड़े परिवहन अधिकारियों का कहना है कि एक साल के अंदर जितना पैसा खर्च करना था वह खर्च नहीं हो पाया। वजह साफ है परिवहन विभाग के पास संसाधन की भारी कमी है। इस कमी को जल्द पूरा किया जाएगा, जिससे जो पैसा वापस गया है वह इसी वित्तिय वर्ष में वापस आए। जिस काम के लिए पैसा मिला था उस काम को करने के लिए कार्यदायी संस्थाओं की कमी थी, इसी वजह से पैसा खर्च नहीं हो सका। इस वित्तीय वर्ष में परिवहन विभाग को पैसा वापस मिल जाएगा। हालांकि अधिकारी मानते हैं कि थोड़ी सी सतर्कता बरती गई होती तो पैसा वापस होने के बजाय सरकार से सुरक्षा उपकरणों के लिए अतिरिक्त पैसों की मांग करनी होती। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि इस वित्तीय वर्ष में जो भी पैसा मिलेगा उसे सही से खर्च किया जाएगा, जिससे सड़क हादसों पर नियंत्रण स्थापित किया जा सके।

आगरा व उन्नाव में ड्राइविंग टेस्ट ट्रैक बनना था। मोटर ट्रेनिंग सेंटर खुलना था। प्रदेश भर के चेकिंग दलों को वर्दी, जैकेट और टार्च उपलब्ध कराना था। स्कूलों में प्रतियोगिताएं आयोजित करानी थी। गांव-गांव प्रचार-प्रसार करना था। होर्डिंग, कट आउट व अन्य प्रचार-प्रसार की सामग्री व किताबें शामिल थीं। दुर्घटना बहुल्य क्षेत्रों में सतर्कता चिन्ह लगाने थे।
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