लखनऊ। उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में जहरीली शराब पीने से दो दिनों के अंदर 66 से अधिक लोगों की मौत के बाद गहरी नींद से जागा आबकारी व पुलिस विभाग अब कच्ची शराब बनाकर बेचने वाले सिंडीकेट के खिलाफ अभियान चलाकर कार्रवाई में जुट गया है। ऐसा हर बार होता है जब जहरीली शराब से मौतें होती हैं, ये कोई नई बात नहीं है।
चौकाने वाली बात ये है कि जब आबकारी विभाग व पुलिस संयुक्त रूप से कार्रवाई करते हैं, तब जाकर शराब माफिया का नेटवर्क पकड़ा जाता है, लेकिन पूरी तरह से नेटवर्क खत्म करने में असफल रहते है तभी तो दोबारा मौका मिलते ही एक्टिव हो जाते है। पिछले दस साल में कच्ची शराब औसतन हर साल तीन दर्जन से अधिक लोगों को निगल चुकी है।
यह धंधा तस्करों के लिए जहां मोटी कमाई का है, वहीं शराब पीने वालों को मौत बांटने के लिहाज से भी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर, मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर, हापुड़, मेरठ, आगरा, अलीगढ़ के अलावा लखीमपुर, हरदोई, शाहजहांपुर, सीतापुर, लखनऊ, बाराबंकी, कानपुर, उन्नाव, आजमगढ़, गोरखपुर, बस्ती, बनारस समेत दर्जनों जिले हैं जो मुख्य रूप से कच्ची शराब बनाने वाले सौदागरों के मुख्य गढ़ माने जाते रहे हैं।
इसके पीछे इसकी भौगोलिक स्थिति व आबादी का ताना-बाना मुख्य रूप से कारण रहा है। यह वह जिले हैं जहां मध्यम वर्गीय व गरीब तबका बहुतायत में निवास करता है और यहीं पर अधिक से अधिक कच्ची शराब की खपत आसानी से की जाती है। सहारनपुर के देहात गांव हौजखेड़ी, पीकी, धतोली, रांगड़, मुल्ला नगराजपुर, सरकड़ी, सेक व जनकपुरी खुर्द ऐसे क्षेत्र हैं जहां बहुत अधिक मात्रा में कच्ची शराब बनाने का काम होता रहा है।
आबकारी सूत्र बताते हैं कि यह सब पुलिस की नाक के नीचे सफलतापूर्वक होता है और आबकारी विभाग की टीमें सोई रहती हैं। हाल ही में 7 से ९ फरवरी के बीच जहरीली शराब पीने से नागल, गागगलहेड़ी और देवन्द थाना क्षेत्र में 56 लोगों की मौत हो चुकी है और यह संख्या तब जाकर थमी है जब आबकारी और स्थानीय पुलिस के आला अफसरों ने फटकार लगाई। उत्तर प्रदेश में कच्ची शराब कितने बड़े पैमाने पर बनायी जा रही है पिछले दिनों जब एकाएक छापे पड़े तब इसका उदाहरण देखने को मिला था।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश व तराई क्षेत्रों के कुछ इलाकों में कच्ची शराब की खपत देशी शराब के बराबर या उससे अधिक होने लगी। हरियाणा, पंजाब व अरुणाचल प्रदेश से तस्करी कर लायी जाने वाली अंग्रेजी शराब की खपत भी सरकारी तंत्र ने बरामद की थी, जिसके चलते 2008-9 में आबकारी विभाग को राजस्व का भारी घाटा उठाना पड़ा था। खजाने को भरने और घाटे को कवर करने के लिए प्रदेश सरकार व आबकारी विभाग ने निर्णय लिया और 2009 में मेरठ, मुरादाबाद, सहारनपुर व बरेली मंडल को एक विशेष जोन बनाया गया था। चारों जोन का कारोबार एक बड़े सिंडीकेट को सौंप दिया था, ताकि राजस्व घाटे को फायदे में सुनिश्चित किया जा सके।
मुनाफे की चाहत ने बनाया शराब को जहरीला
कम समय में अधिक मुनाफा कमाने की चाहत कच्ची शराब को जहरीला बना देती है। शराब से जुड़े लोगों के अनुसार शराब वैसे तो गुड़ और शीरा में सड़े गले फल आदि का लहन बनाकर उसी का आसवन कर बनाई जाती है। यह सामान्य प्रक्रिया होती है और इसमें तीन से चार दिन लग जाते हैं। कम समय में लहन तैयार करने के लिए उसमें आक्सीटोसिन इंजेक्शन या फिर यूरिया और नौसादर मिला देते हैं। इसके मिलाने से कम समय में ही लहन तैयार हो जाता है और उसी से शराब उतारी जाती है। निर्धारित मात्रा से अधिक यह सब मिला देने से शराब जहरीली हो जाती है और उसके पीने से घटनाएं हो जाती हैं।
राजधानी में हुई मौतें
2005 कैसरबाग में हुई थीं 79 मौतें
9 जुलाई 2009 हजरतगंज बालू अड्डा में सुरेश व एक अन्य की मौत, 30 बेहोश
2009 चौक स्टेडियम के पास दो महिलाओं की मौत
2009 लखनऊ की बाराबंकी सीमा से सटे गांव में दो की मौत
2009 गोसाईगंज में दो व चिनहट में एक की मौत
16 जुलाई 2010 मलिहाबाद के तरौना गांव में राजू पासी की मौत 2
9 सितम्बर 2010 मोहनलालगंज गोविन्दपुर में योगेश व नान्हू की मौत
2011 हसनगंज खदरा शिवपुरी में एक की मौत, आधा दर्जन ने खोई आंख की रोशनी
12 जनवरी 2015 मलिहाबाद के दतली गांव में 12, बंथरा में चार व उन्नाव में छह सहित 57 की मौत
2009 आजमगढ़ में 23
2009 बाराबंकी में 7
2011 उन्नाव में 9
2011 सहारनपुर में सौ से अधिक
2011 मुजफ्फरनगर में 13
2014 भदोही में 9
2010 वाराणसी में 22
2017 आजमगढ़ में 15
प्रदेश में जहरीली शराब से पीने से हुई मौतों को लेकर आबकारी विभाग सतर्क है। जिलाधिकारी के निर्देश पर आबकारी विभाग, पुलिस व राजस्व विभाग की टीमों का गठन किया गया है जो सभी थाना क्षेत्रों में दस दिन तक लगातार होटलों, ढाबा व शराब की दुकानों पर छापामारी कर तलाशी अभियान चलाएगी।
जनार्दन यादव, जिला आबकारी अधिकारी