ऊर्जा मंत्री की उपभोक्ता देवो भव: मुहिम को पलीता लगा रहे विद्युत कर्मी
बिजली चोरी में पहले दी मुकदमा दर्ज कराकर जेल भेजने की धमकी, फिर साठगांठ कर निपटाया मामला
लखनऊ। उपभोक्ताओं का उत्पीडऩ न करने और उनसे बेहतर तरीके से पेश आने की ऊर्जा प्रबंधन की लाख कोशिशों के बावजूद विद्युत विभाग के कर्मियों का रवैया बदल नहीं रहा है। इंजीनियर और संविदा कर्मचारी विद्युत विभाग का दामन दागदार करने का कोई मौका छोड़ नहीं रहे हैं। ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा की तमाम नसीहतों के बाद भी विभाग में भ्रष्टïाचार का बोलबाला कायम है। इंजीनियर और संविदा कर्मियों के गठजोड़ से उपभोक्ता त्रस्त हैं। आकंठ भ्रष्टïाचार में डूबे इंजीनियरों और संविदा कर्मियों के काले कारनामे विभाग की छवि को धूमिल कर रहे हैं। विभाग की छवि को धूमिल करने वाला ऐसा ही एक मामला मुंशीपुलिया डिवीजन का सामने आया है। बीते जनवरी माह में मुंशीपुलिया डिवीजन में झोपड़पट्टियों में रह रहे असमियों को चोरी से बिजली उपयोग करने के मामले में दबोचा गया। यहां पर करीब 20 झोपड़पट्टियों में 10 किलोवाट की बिजली चोरी पकड़ी गई। बिजली चोरी कराने में मास्टर, दिनेश, हनीफ सिद्दकी, राजनारायण सहित कई और लोगों की संलिप्तता पायी गयी। जिसके बाद ही चेकिंग करने गयी स्थानीय टीम एक्शन में आ गयी और तत्काल ही असमियों को मुकदमा दर्जा कराकर जेल भेजे जाने की धमकी दी जाने लगी। वहीं अभियंताओं द्वारा भी बिजली चोरी करवा रहे लोगों को मुकदमा दर्ज करवाकर जेल भेजे जाने की धमकी दी जाने लगी। यही नहीं स्थानीय टीम द्वारा उन पर अपनी बात मनवाने का भी दबाव दिया जाता रहा। इसके बाद भी जब वे लोग नहीं माने तो उनके खिलाफ तहरीर बनाकर पुलिस स्टेशन भेज दिया गया। इस बीच बिचौलियों से भी साठगांठ की बातें चलती रहीं। जिसके बाद जेल जाने के डर दलालों ने उनकी शर्तें मान लीं। सूत्रों की मानें तो बिजली चोरी के आरोपियों को बचाने के लिए 50 हजार रुपये की डील हुई। जिसके बाद मामले को रफा-दफा करा दिया गया। वहीं इस दौरान असमियों ने आरोप लगाया कि चोरी से बिजली जलाने के लिए तो पैसा देते ही रहे, अब छुड़ाने के लिए भी पैसा देना पड़ रहा है। मालूम हो कि बिचौलियों के खिलाफ एक महीने तक मुकदमा दर्ज नहीं कराया गया। महज थाने में तहरीर देकर मामले को रफा—दफा करा दिया गया। वहीं सोशल मीडिया में जब तहरीर की कापी वायरल होने लगी तो अभियंताओं ने बचाव में जवाब देना शुरू कर दिया। अभियंताओं ने तहरीर की कॉपी को ही एफआईआर बता दिया। मामले को दबाने की फिराक में लगे अभियंताओं ने कई और झूठ भी पेश किये। बताया गया कि इस प्रकरण में शमन और जुर्माना दोनों जमा करा लिया गया है। जबकि दोनों ही नहीं जमा कराये गये और सिर्फ बंदरबांट कर मामले को निपटा दिया गया।
प्रकरण संज्ञान में आया है। एफआईआर में क्यों इतनी देरी हुई, डिवीजन के अभियंताओं से जवाब मांगा गया है। लापरवाही में शामिल दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
एपी शुक्ला
अधीक्षण अभियंता सर्किल—9