लखनऊ। शिक्षा दिनों- दिन कारोबार का रूप ले रही है बल्कि ये कहे तो बेहतर होगा कि लग्जरी कारोबार। इस लग्जरी कारोबार में शिक्षा देने के बदले अभिभावकों की जेब पर डाका डाला जा रहा है। नये सत्र की शुरूआत हो गयी है। घर- घर में चिंताओं की तरह- तरह की कहानी सुनने को मिल रही है।
कोई अपनी दवा रोककर तो कोई मोबाइल- केबल जैसे छोटे-मोटे खर्चों में कटौती करके बच्चों का दाखिला करवाने में तमाम तरह के जतन कर रहे है। हर साल शिक्षा सत्र शुरू होते ही शिक्षा माफिया सक्रिय हो जाते हैं।
किताब, ड्रेस, स्टेशनरी और अन्य व्यवस्थाओं के नाम पर अभिभावकों को लूटा जाता है और इसमें निजी स्कूलों की भूमिका बड़ी होती है। इसके अलावा एनसीईआरटी किताबों के बजाए निजी प्रकाशकों की किताबें अभिभावकों को खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है। बाकायदा निजी प्रकाशकों की किताबों के लिए ठेका दिया जाता है।
स्कूलों की मनमानी की शिकायत अभिभावक आखिर किससे करें? आज हर स्कूल में कमीशन के नाम पर अभिभावकों के साथ खुली लूट हो रही है और अभिभावक बेबस होकर अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिये जानते- समझते लुट रहे हैं।
केवल यूपी में नहीं बल्कि पूरे देश में आज हर घर की अगर कोई समस्या है तो वो है बच्चों की शिक्षा की। आज हर घर का अभिभावक अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने का ख्वाब संजोए हुए है, लेकिन प्राइवेट स्कूलों की लूटखोरी के आगे आज अभिभावक बेबस है।
देश में बेटी- बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे हर मिनट नेताओं की जुबां पर रहते है, लेकिन इसका जवाब कौन देगा और कब देगा कि आखिर बेटी को पढ़ाने के लिए इतनी मोटी रकम का इंतजाम अभिभावक कहां से करें। जिनकी कमाई का आधा से ज्यादा हिस्सा शिक्षा माफिया खुलेआम लूट रहे हैं।
इस शैक्षिक सत्र में अभिभावकों की जेब पहले से ज्यादा ढीली हो रही है, जिससे अभिभाावक न केवल परेशान है बल्कि बीमारी की चपेट में जा रहे है। शहर के तमाम बड़े स्कूलों ने फीस में बेतहासा बढ़ोतरी कर दस फीसद तक की बढ़ोतरी की है। मजे की बात ये है कि ये ऑफीसियल बढ़ोतरी है, बाकी ऊपर के खर्चे आने वाला समय बताएगा।
अप्रैल माह से अभिभावकों से बढ़ी हुई फीस की वसूली भी शुरू कर दी गयी है। बात कॉपी- किताबों की कीमतों की जाए तो भला ऐसा कैसे हो सकता है, जब स्कूल फीस बढ़ाए और स्टेशनरी आइटम न बढ़े। इसमें 20 फीसद तक और यूनिफॉर्म में 10 फीसद तक की वृद्घि सामने आ रही है। इस बार अधिकांश स्कूल कंपोजिट फीस वसूल रहे हैं। दरअसल, शुल्क विनियम-2018 के अनुसार कंपोजिट फीस लेने का प्रावधान है।
इससे पहले स्कूल ट्यूशन फीस अलग से वसूलते थे और बाकी स्पोटर््स, लाइब्रेरी, स्मार्ट क्लास, एनुअल आदि शुल्क अलग से लेते थे। कुल मिलाकर सीधा मतलब है स्कूलों की लूट की दुकानें सज गयी हैं। शिक्षा के मंदिर में सजी लूट की इन दुकान का खेल सरकार से छिपा नहीं है। यदि सरकार की सख्ती इन प्राइवेट स्कूलों पर होती तो शायद आज अभिभावकों की जेब पर खुलेआम ये स्कूल डाका न डाल पाते।
एक स्कूल संचालक से जब इस विषय पर पूछा गया तो वे बोले कि इस बार अधिकांश स्कूल सभी शुल्कों को समाहित कर फीस वसूलेंगे। स्कूल संचालक बढ़ती महंगाई और शिक्षकों के वेतन में बढ़ोतरी को इसका कारण बता रहे है। ज्यादातर स्कूलों ने अपनी नई फीस वेबसाइट पर जारी की है।
ये स्कूल अभिभावकों से वसूल रहे मनमानी फीस
राजधानी के शिक्षा माफिया कहलाये जाने वाले स्कूल सीएमएस का हाल तो किसी से छिपा नहीं है। प्लेगु्रप में लाखों सालाना कमाने वाले सीएमएस की पोल न खुले इसके लिए उसने अपनी ऑफिसियल वेबसाइट पर फीस स्ट्रक्चर ही शो नहीं किया है। जीडी गोयनका पब्लिक स्कूल ने अपनी फीस में सात से आठ प्रतिशत तक की बढ़ोतरी की है। वित्तीय वर्ष के पहले महीने में अभिभावकों को नर्सरी में दाखिले के लिए 64,333 रुपये देने पड़ेंगे, जिसमें फीस प्रतिमाह सम्मिलित होगी। यदि स्कूल तिमाही चार्ज करेगा, तो उनको ज्यादा जेब ढीली करनी पड़ेगी। गोमती नगर स्थित सेठ एमआर जयपुरिया स्कूल ने भी आठ प्रतिशत तक फीस में बढ़ोतरी की है। स्कूल प्रशासन ने अपनी वेबसाइट पर फीस जारी कर इसका दावा किया है। हालांकि स्कूल ने इस बार एडमिशन फीस में दो हजार रुपये की बढ़ोतरी की है। पिछले साल 2500 रुपये थी जो बढ़ाकर 3000 रुपये कर दी गई है। मिलेनियम स्कूल ने अपनी फीस में छह से सात प्रतिशत तक बढ़ोतरी की है। स्कूल के एडमिशन फीस में कोई बढ़ोतरी नहीं है। स्कूल का दावा है कि एडमिशन फीस केवल नए छात्रों से ही वसूली जाएगी।
ऐसे कर रहे खेल
उप्र पोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क विनिमय) अधिनियम-2018 के अनुसार स्कूल हर साल एडमिशन फीस नहीं ले सकते हैं। एडमिशन नर्सरी में होने के बाद पांचवीं क्लास में ही दोबारा ऐडमिशन फीस ली जा सकती है। हालांकि अभिभावकों का आरोप है कि प्रति वर्ष एडमिशन फीस वसूली जा रही है। इतना ही नहीं एडमिशन फीस की कोई सीमा न होने से भी स्कूल मनमानी वसूली करते हैं। कुछ प्राइवेट स्कूल 20 हजार से 50 हजार तक एडमिशन फीस वसूल रहे हैं।
स्टेशनरी के नाम पर चल रही दुकान
नियमों के अनुसार अभिभावक कॉपी-किताब सहित अन्य स्टेशनरी कहीं से भी ले सकते हैं। जबकि ज्यादातर स्कूलों ने बुक लिस्ट के साथ ही दुकान भी तय कर रखी है। इसी तरह पांच सालों तक ड्रेस में बदलाव न करने के नियम को ठेंगा दिखा मनमाने तरीके से बदलाव किया गया है। यदि प्रशासन को स्कूलों की मनमानी पर नकेल कसनी है तो उनके पूरे सिंडिंकेट को खत्म करना होगा।
अभिभावकों के सवाल?
पहला सवाल: मेरा बेटा सेंट जोसफ में पढ़ रहा है। चौथी क्लास में उसकी फीस 1900 थी, इस बार पांचवी क्लास में 2600 कर दी गई। किस आधार पर इतनी फीस बढ़ाई गई।
दूसरा सवाल: मेरा बेटा डीपीएस एल्डिको में पांचवी क्लास में पढ़ रहा है। स्कूल द्वारा एक निश्चित दुकान से ही कॉपी किताब खरीदे जाने के लिए कहा जा रहा है। किताबें भी ऐसी हैं, जो कहीं और नहीं मिल रही। स्कूल किसी की सुन भी नहीं रहे।
तीसरा सवाल: मेरी बेटी सेंट्रल एकेडमी इंदिरा नगर में पढ़ रही थी। इसी बार उसका दाखिला सेंट डोमिक इंदिरा नगर में कराया है। यहां 20 हजार रुपये एडमीशन फीस जमा कराया गया है। क्या स्कूल छोडऩे पर स्कूल एडमीशन फीस वापस करेगा।
चौथा सवाल: कुछ स्कूल दिसंबर तक दो- दो महीने की फीस लेते हैं, उसके बाद एक-एक महीने की। इसके लिए क्या नियम है।
सीएम और डिप्टी सीएम की जुबान की क्या नहीं कोई कीमत!
मुख्यमंत्री बनते ही सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम डा. दिनेश शर्मा ने कहा था कि प्राइ वेट स्कूलों के साथ बैठकर ऐसी नीति तय की जाएगी, जिससे अभिभावकों की परेशानी का हल निकाला जा सके। लेकिन ये केवल मात्र एक बयान था इस मुद्दे पर कागजी कार्यवाही शून्य ही है। यदि यूपी के सीएम ही चुप्पी साधे रहेंगे तो जनता तो परेशान होगी ही।