- कौन सुने आपूर्तिकर्ताओं की फरियाद कलम्बे समय से लटके भुगतान को पाने में बेहाल हो रहे आपूर्तिकर्ता
- भुगतान न करना पड़े इसके लिये आपूर्तिकर्ताओं पर बनवा रहे पुलिसिया दबाव
- बड़े ठेकेदार राजकीय निर्माण निगम से भुगतान न होने का बना रहे बहाना
- राजकीय निर्माण निगम के बड़े ठेकेदारों ने आपूर्तिकर्ताओं के दबाये करोड़ों
शैलेन्द्र यादव
लखनऊ। राजकीय निर्माण परियोजनाओं में विभिन्न निर्माण सामग्री की सप्लाई करने वाले सूचीबद्ध आपूर्तिकर्ता बेहाल हैं। सरकार की कार्यदायी संस्थाओं द्वारा अनुबंधित बड़े ठेकेदार इन आपूर्तिकर्ताओं का करोड़ों रुपये का भुगतान वर्षों से दबाये बैठे हैं। लम्बे समय से तगादा कर रहे पीडि़त आपूर्तिकर्ताओं की मानें तो इन ठेकेदारों ने संबंधित कार्यदायी संस्था द्वारा भुगतान किये गये मोबिलाइजेशन फण्ड का उपयोग संबंधित परियोजनाओं में न करके अन्य ठेकों को लेने सहित दूसरे व्यक्तिगत कार्यों में कर लिया। साथ ही हमारा भुगतान न करने के पीछे तर्क देतेे हैं कि निगम ने जो भुगतान किया वह आला अधिकारियों और शासन में बैठे हुक्मरानों में बंट गया, अब निगम जब भुगतान करेगा, तब मिलेगा।
इनसे परेशान आपूर्तिकर्ता
राजकीय निर्माण निगम द्वारा अनुबंधित जीएस इन्फ्रा, जीएस एक्सप्रेस, एसकेसी इन्फ्रा, सिद्धेश्वर, सन इन्फ्रा और प्रभू कंस्ट्रक्शन आदि बड़े ठेकेदार फर्मों सहित शासन की अन्य कार्यदायी संस्थाओं द्वारा अनुबंधित किये गये ठेकेदारों ने आपूर्तिकर्ताओं के करोड़ो रुपये का भुगतान लटका रखा है।
पीडि़त आपूर्तिकर्ताओं का कहना है कि देश और प्रदेश की बात छोडिय़े, राजधानी लखनऊ में ही करोड़ों की निर्माण परियोजनाओं का कार्य जिन ठेकेदारों को मिला है, उनमें से कईयों ने आपूर्तिकर्ताओं का भुगतान नहीं किया है। लिहाजा, निगम में सूचीबद्ध आपूर्तिकर्ता इन ठेकेदारों को निर्माण सामग्री की सप्लाई करने से पीछे हट रहे हैं। ऐसे में यह ठेकेदार गैर पंजीकृत आपूर्तिकर्ताओं से दोयम दर्जे की निर्माण सामग्री की आपूर्ति ले रहे हैं। जिस कारण आपूर्तित निर्माण सामग्री की गुणवत्ता रामभरोसे है। साथ ही इससे कई सरकारी निर्माण परियोजनायें अधूरी पड़ी हैं और कई ऐसी भी हैं जिनका निर्धारित समय पर पूरा होना दूर की कौड़ी है।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश सरकार की विभिन्न निर्माण कार्यदायी संस्थाओं में उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम प्रमुख है। उत्तर प्रदेश और राज्य के बाहर कई निर्माण परियोजनाओं की जिम्मेदारी राजकीय निर्माण निगम पर है। उत्तर प्रदेश सरकार की विभिन्न निर्माण परियोजनाओं को अमलीजामा पहनाने के लिये राजकीय निर्माण निगम ने जिन ठेकेदार फर्मों को अनुबंधित किया है, उनमें कई फर्मों ने विभिन्न परियोजनाओं में दर्जनों आपूर्तिकर्ताओं से विभिन्न निर्माण सामग्री आपूर्ति करायी। पर, इसके सापेक्ष आपूर्तिकर्ताओं को बीते कर्ई वर्षों से करोड़ों का भुगतान नहीं किया। ठेकेदारों की इस मनमानी का यह दंश आपूर्तिकर्ता झेल रहे हैं।
राजकीय निर्माण निगम जिन शर्तों के तहत संबंधित ठेकेदारों को अनुबंधित करता है, उसके तहत निर्माण कार्य की गुणवत्ता और विभिन्न आपूर्तिकर्ताओं द्वारा ली गई निर्माण सामग्री आदि की गुणवत्ता का परीक्षण करने के उपरान्त ही भुगतान किया जाता है। संबंधित ठेकेदार द्वारा आपूर्तिकर्ताओं को भुगतान न करने के लिये प्रत्यक्षरूप से निर्माण निगम उत्तरदायी नहीं है। फिर भी यदि ऐसा कोई प्रकरण संज्ञान में आता है, तो एक स्वस्थ्य माहौल बनाने की कोशिश रहती है जिससे निर्माण निगम का कोई कार्य प्रभावित न हो।
इं. राजन मित्तल, एमडी, यूपीआरएनएन
इस संबंध में राजकीय निर्माण निगम प्रबंध तंत्र का तर्क है कि जिन शर्तों के तहत ठेकेदार फर्मों को अनुबंधित किया गया है, उसमें निर्माण की गुणवत्ता और सामग्री की गुणवत्ता का परीक्षण करने के बाद ही संबंधित ठेकेदार को भुगतान किया जाता है। अनुबंध की शर्तों के मुताबिक, संबंधित ठेकेदारों को विभिन्न निर्माण सामग्री की सप्लाई करने वाले आपूर्तिकर्ताओं के भुगतान की जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम की नहीं है। फिर भी प्रयास रहता है कि एक स्वस्थ्य माहौल का वातावरण निर्मित हो, जिससे शासन की कोई भी महत्वपूर्ण निर्माण परियोजना का कार्य बाधित न हो।
राज्य सरकार ने आमजन के खून पसीने की कमाई हजम करने वाले धंधेबाज बिल्डरों की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिये उत्तर प्रदेश भू-संपदा विनियामक प्राधिकरण, यूपी रेरा का गठन किया है। इसका असर भी दिखाई दे रहा है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या यह प्रयोग राजकीय निर्माण निगम या अन्य शासकीय कार्यदायी संस्थाओं द्वारा सरकार की विभिन्न निर्माण परियोजनाओं के लिये अनुबंधित किये जाने वाले बड़े ठेकेदारों को आपूर्ति करने वाले आपूर्तिकर्ताओं के धन और व्यवसाय की सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार कब निभायेगी?