- दो साल पहले आयी 103 चेचिस हो गयी कबाड़
- 83 नई चेचिस के लिए फिर मिल गया करोड़ों का बजट
- कबाड़ हुई चेचिस पर खर्च किए गये थे 20 करोड़ बर्बाद
- क्या कबाड़ हो चुकी गाडिय़ां अब बुझाएंगी आग
धीरेन्द्र अस्थाना
लखनऊ। आम लोगों की गाढ़ी कमाई से जुटाया गया राजस्व किस तरह प्रदेश में बर्बाद किया जा रहा है, इसकी बानगी किसी से छिपी हुई नहीं है। आम लोगों और सरकारी हानि रोकने का जिम्मा जिस पर है, वो ऐसा काम करें तो जाहिर है शर्म तो आयेगी।
आपको बता दें कि बीते साल बिजनेस लिंक ने ३ से ९ सितम्बर के अंक में जिस खबर से आपको रू-ब-रू करवाया था, उसकी धज्जियां जमकर उड़ाई जा रही हैं। सरकार में बैठे मंत्री से लेकर अधिकारी सबकी आंखों पर काली पट्टïी तो बंधी नहीं है, जो उन्हें बर्बाद होते राजस्व की चिंता न हो, लेकिन फिर भी ऐसा हो रहा है।
आपको बता दें कि पिछले साल आग पर काबू पाने के लिए जो फायर टेंडर बनवाए जाने थे, उनकी सैकड़ो चेचिस अब भी फायर स्टेशनों पर धूल फांक रही है। इन १०३ चेचिस पर २० करोड़ खर्च किए गये थे। लेकिन अग्निशमन विभाग इनको काम पर लगाने में असमर्थ रहा, नतीजा यह चेचिस जंग लगकर खराब होने की कगार पर आ खड़ी है।
लेकिन मजे की बात तो ये है कि अग्निशमन मुख्यालय ने शासन को नया प्रस्ताव भेजकर ८३ नई चेचिस खरीदने के लिए १० करोड़ फिर पास करा लिये। विभागीय लोग खुद इस बात को लेकर असमंजस में है।
कबाड़ और कंडम हो चुकी 103 चेचिसों के फायर टेंडर बनवाकर अब अग्निशमन विभाग आग पर काबू पाएगा। दो साल से राजधानी के फायर स्टेशनों में खड़े- खड़े कंडम हो चुकीं यह चेचिस दो साल पहले 20 करोड़ रुपये खर्च कर मंगवाई गई थीं। जिन्हें 2018 के फायर सीजन में ही सूबे के सभी फायर स्टेशनों में भेजनी थीं।
पर मुख्यालय के अधिकारियों ने इन चेचिसों में फायर टेंडर बनवाने के बजाए बीते वित्तीय वर्ष में 83 और चेचिस खरीदने के लिए शासन से 10 करोड़ रुपये और पास करा लिए थे। जब बिजनेस लिंक ने खबर को प्रमुखता से छापा था तब से विभागीय अधिकारियों की नींद टूटी हुई थी, जिसके बाद आलाधिकारी जागे और ई- टेंडर प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। टेंडर करके इन कंडम गाडिय़ों को आग बुझाने लायक बनाया जाएगा। लेकिन अब देखना ये है कि आखिर इस काम में विभाग कितना सफल हो पाता है।
क्या होती रहेगी राजस्व की बर्बादी
जनता के धन की गाढ़ी कमाई क्या शासन में बैठे अधिकारी ऐसे ही बर्बाद करते रहेंगे? यदि समय रहते इस पर सरकार ने विचार नहीं किया तो आम लोग सरकार को राजस्व देने की भला कैसे सोचेंगे। यदि सरकार और शासन ने समय रहते इस पर विचार नहीं किया तो प्रदेश के राजस्व का नुकसान ऐसे ही होता रहेगा।
10-15 साल होती है एक दमकल की लाइफ
विशेषज्ञों के मुताबिक अग्निशमन विभाग में फायर टेंडर की लाइफ 10- 15 साल होती है। क्योंकि गाडिय़ों में इतना अधिक भार लदा होता है कि जिसके कारण इस समय सीमा के बाद वह खुद ब खुद चलने में दिक्कत करने लगती हैं।
टेंडर बनाने में लगता है महीना
उ एक विभागीय विशेषज्ञ की माने तो किसी भी ठेका कंपनी को तीन से चार फायर टेंडर को पूरा करने में अनुमानित समय महीना भर आराम से लगता है। यदि अभी टेंडर दिया जाता है तो ठेका देने में ही दो से तीन महीना लग जाता है। इसके बाद कंपनी फाइनल होने के बाद कार्य शुरू हो पायेगा। इतने समय में तो न केवल पुरानी बल्कि नयी चेचिस को भी जंग लग सकती है।
फाइल फैक्ट
- एक अप्रैल से 30 जून 2018 के बीच फायर टेंडर का रूप देकर सूबे के 342 फायर स्टेशनों को भेजा जाना था
- फायर सीजन में होते हैं साल के 45 फ ीसद अग्निकांड, फायर टेंडर और स्टाफ की कमी के कारण समय से नहीं बुझ पाती आग
- राजधानी के चौक, आलमबाग, बीकेटी और पीजीआई समेत अन्य फायर स्टेशनों में धूल और जंग खा रहीं फायर टेंडर की चेसिस
- जाम हैं इंजन, खराब हो चुकी बैट्री, पाइप और टूट चुकी है बॉडी भी
क्या कहते हैं जिम्मेदार
शासन के निर्देश पर फायर स्टेशनों में खड़ी 103 चेचिसों से फायर टेंडर बनवाने के लिए ई- टेंडर प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। जल्द ही इन चेचिसों के फायर टेंडर बनवाकर इन गाडिय़ों को सूबे के सभी फायर स्टेशनों में भेजा जाएगा।
विश्वजीत महापात्रा, डीजी फायर