तेलगू फिल्मों का केंद्र तेलंगाना, तमिल फिल्मों का केंद्र तमिलनाडु, मलयाली फिल्मों का केंद्र केरला तो बंगाली फिल्मों का केंद्र कोलकाता है। भाषा आधारित इन फिल्मों और इस पर आधारित फिल्म उद्योग का केंद्र वही राज्य है जहाँ इनकी राज्य की आधिकारिक भाषा वही भाषा है जो वहां की फिल्मों का भाषा है। सिर्फ हिंदी फिल्म और उसकी छाया में विकसित भोजपुरी फिल्म उद्योग ही ऐसा है जो उस राज्य में हैं जिसकी आधिकारिक राज्यभाषा मराठी प्रथम है।
एक जगह विशेष पर फिल्म उद्योग एवं उसके इकोसिस्टम विकसित होने के कई कारण होते हैं जिसमें प्रमुख रूप से फिल्म उद्योग में प्रयोग होने वाले कैमरा, लाइट, परिवहन साधन, सेट बनाने वाली फर्में और सामग्री, क्राफ्ट एवं आर्ट आपूर्ति की फर्में, संगीत रिकॉर्डिंग स्टूडियो, फिल्म सेट स्टूडियो, एडिटिंग लैब, प्रीमियर थिएटर, सिनेमा हाल वितरकों का जमावड़ा और आजकल के हिसाब से डिजिटल प्लेटफार्म उपलब्ध कराने वाले कम्पनियों का ऑफिस और अनुकूल फिल्म नीति और यह सब जहाँ रहता है वहां फिल्म उद्योग फलफूल पाता है और इस कारण जो इसके मानवीय संसाधन हैं जैसे की फिल्म कलाकार, निर्माता, निर्देशक वितरक एवं अन्य सहायक लोग ऐसी जगह पर इक_ा होते हैं और यही कारण है कि इन सब इकोसिस्टम की उपलब्धता के कारण मुंबई में फिल्म उद्योग फला फूला।
एक और बड़ा कारण मुंबई सहित दक्षिण भारत में फिल्म उद्योग की स्थापना का रहा है वह है सूर्य के प्रकाश और मौसम की अनुकूलता, उत्तर भारत में जहां अत्यधिक सर्दी और अत्यधिक गर्मी और कुहासे का मौसम रहता है ऐसे में शूटिंग लायक मौसम सितम्बर से लेकर मार्च तक ही रहता है जो कुल मिला के 6 माह की होती है जबकि ऊपर के अन्य जगहों में कम से कम 9 माह तक सूर्य का प्रकाश और मौसम की अनुकूलता रहती है बाकी बचे 3 महीने में ये इनडोर काम करते रहते हैं।
नोएडा में नई फिल्मसिटी की घोषणा और कोरोना काल दोनों ने एक ऐसा अवसर पैदा किया है जिससे उत्तर प्रदेश में भोजपुरी फिल्म उद्योग की शिफ्ट किया जा सकता है, इससे फिल्मों की उत्पादन लागत भी कम आएगी स्वत: उपस्थित फिल्म की लोकेशन के कारण उन्हें अलग से कृत्रिम सेट बनाने की जरुरत और महंगा किराया और बड़े लोजिस्टिक खर्च नहीं देने पड़ेंगे। कोरोना काल के कारण भोजपुरी फिल्म उद्योग के कई कलाकार यूपी को रिवर्स पलायन कर चुके हैं जिसका प्रमाण आप उधर खुल रहे कई म्यूजिक रिकॉर्डिंग स्टूडियो के रूप में देख रहे होंगे, कई तो अब मुंबई वापस भी आना नहीं चाहते हैं क्यों की कुछ फिल्मों की शूटिंग यूपी में होनी है तो उन्हें शूटिंग शुरू होने का इन्तेजार है।
यही सही मौका है भोजपुरी फिल्म उद्योग को यूपी में खासकर मध्य यूपी एवं पूर्वांचल में फिर से खड़ा किया जा सकेगा क्यों की बहुमत में इस उद्योग के मानवीय संसाधन यूपी में ही कोरोना के कारण पलायित हो आ चुके हैं, दूसरा यह संयोग ही है की गोरखपुर के सांसद रविकिशन भी भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के अगुवा हैं और वर्षों से फिल्मसिटी निर्माण के लिए प्रयासरत थे, इनकी पहल और नेतृत्व इस उद्योग को यहाँ खड़े करने में महती भूमिका निभाएगा।
अब सरकार को इन संयोग से मिले संसाधनों का संयोजन कर उनमे जान फूंक कर इस उद्योग को खड़ा करने में लगने वाले पूंजीगत खर्चों जैसे की प्राइवेट फिल्म सिटी का निर्माण, स्टूडियो का निर्माण, डिजिटल एवं एडिटिंग लैब आदि की स्थापना इक्विपमेंट एवं प्लांट की खरीद आदि में सब्सिडी दे ताकि फिल्मों का इकोसिस्टम विकसित हो और उसके इर्दगिर्द फिल्म जगत के सारे कारक आकर इकठ्ठा हो जाएँ, जैसे की वितरक निर्माता और वितरण डिजिटल से जुडी कम्पनियां भी। फिल्मों की सब्सिसी तो पहले से ही जारी है।
साथ ही सरकार को नॉएडा फिल्म सिटी के उन कारणों से सीख लेनी पड़ेगी की क्यों इतना बड़ा फिल्मसिटी बहुत पहले से ही नॉएडा में बनने के बाद उत्तर भारत के फिल्मकारों की पहली पसंद न बन सका और आज भी पहली पसंद मुंबई ही है, फिल्म का बाजार मुंबई से शिफ्ट नहीं हुआ है। इस मामले में कंगना रानावत का सुझाव भी काफी अच्छा है जिसमें उन्होंने कहा था की लोगों की धारणा है कि भारत में शीर्ष फिल्म उद्योग हिंदी फिल्म उद्योग ही है ये धारणा गलत है।
फिल्म उद्योग में तेलुगू फिल्म इंडस्ट्री शीर्ष स्थान पर पहुंची है और अब कई भाषाओं में फिल्में बनाकर पूरे भारत को कवर कर रही है, कई हिंदी फिल्मों को रामोजी हैदराबाद में शूट किया जा रहा है। योगी आदित्यनाथ जी की पहल का सराहना करते हुए कंगना का सुझाव भी काफी अच्छा है जिसमें उन्होंने कहा की हमें फिल्म उद्योग में कई सुधारों की आवश्यकता है।
सबसे पहले हमें भारतीय फिल्म उद्योग नामक एक बड़ी एकीकृत फिल्म उद्योग के स्थापना की आवश्यकता है, हम आज कई कारकों के आधार पर विभाजित हैं, जबकि एकीकृत फिल्म उद्योग के रूप में हॉलीवुड फिल्मों को इसका लाभ मिलता है जैसे की एक एकीकृत राष्ट्रीय उद्योग लेकिन कई जगहों पर फिल्मसिटी, नि:संदेह यह सलाह उचित है और सही दिशा है इसे राष्ट्रीय स्तर पर भी चिंतन करना चाहिए ताकि एकीकृत फिल्म उद्योग की स्थापना हो।
उत्तर प्रदेश में उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद् को इसके लिए सक्रिय भूमिका निभानी पड़ेगी और सबसे पहले इसके चेयरमैन को स्थायी तौर पर लगातार लखनऊ में बैठना पड़ेगा और प्रतिदिन कार्यालय जाना पड़ेगा ताकि उनका चिंतन और फोकस प्रतिदिन इस विषय पर हो तभी परिणाम निकल पायेगा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का विजन सम्पूर्ण हो पायेगा।
दूसरा तुरंत भोजपुरी फिल्म उद्योग के जितने भी स्टेक होल्डर हैं। उनकी एक बैठक लखनऊ में आयोजित कर या वर्चुअल मीटिंग आयोजित कर उनसे एक इनपुट लिया जाना चाहिए कि उत्तर प्रदेश को भोजपुरी फिल्म उद्योग का केंद्र बनाने के लिए उनके क्या सुझाव हैं। तीसरा फिल्म ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट पुणे की तर्ज पर एक इंस्टीट्यूट की स्थापना हो। यह एक चलता हुआ उद्योग है इसको एक हल्का सा पुश प्रदेश में रोजगार और देश के फिल्म उद्योग में एक बड़ा केंद्र हो सकता है।