- राष्ट्रीय राजधानी के लुटियन जोन स्थित यूपीएसआईडीसी के विवादित मुख्य अभियंता अरुण मिश्रा का 208 करोड़ का बंगला हुआ कुर्क
- बेनामी संपत्ति लेनदेन निषेध अधिनियम के तहत आयकर विभाग ने की कार्रवाई
- वर्ष 2007 में अजंता मर्चेंट्स प्राइवेट लिमिटेड के नाम से 21.50 करोड़ रुपये में खरीदा गया था बंगला
बिजनेस लिंक ब्यूरो
लखनऊ। काली कमाई के कुबेर बन चुके उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास निगम (अब यूपीसीडा) के विवादित मुख्य अभियंता परियोजना अरुण कुमार मिश्रा की दिल्ली स्थित बेनामी संपत्ति पर आयकर विभाग ने अपना शिकंजा कसा है। राष्ट्रीय राजधानी के लुटियन जोन स्थित मिश्रा के 208 करोड़ी बंगले को आयकर विभाग ने कुर्क कर दिया है। विभाग ने बेनामी संपत्ति विरोधी कानून के तहत संपत्ति को अस्थायी रूप से कुर्क करने का आदेश दिया था। पृथ्वीराज रोड स्थित बंगले पर बेनामी संपत्ति लेनदेन निषेध अधिनियम की धारा 24 (3) के तहत कार्रवाई की गई है।
जानकारों की मानें तो अरुण कुमार मिश्रा का यह बंगला साल 2007 में कोलकाता में अजंता मर्चेंट्स प्राइवेट लिमिटेड के नाम से 21.50 करोड़ रुपये में खरीदा गया था। इसके लिये कोलकाता की 36 मुखौटा कंपनियों की मदद ली गई थी। इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम में वित्तीय अनियमितताओं सहित अन्य कई प्रकरणों में विवादित अभियंता के खिलाफ सीबीआई सहित अन्य प्रमुख एजेंसियां जांच कर रही हैं।
जानकर हैरानी होगी कि यूपीएसआईडीसी का एक सामान्य अभियन्ता कौडिय़ों से करोड़पति और फिर अरबपति का सफर महज चन्द वर्षों में पूरा कर लेता है और शासन-प्रशासन कुंभकर्णी नींद में सोया रहता है। इस बीच आय से अधिक अकूत सम्पत्ति के मामले में याचिका भी दायर होती हैं। सीबीआई से लेकर प्रवर्तन निदेशालय की जांच में दोषी भी साबित होते हैं। पर, इसे भ्रष्ट अभियंता का दबदबा नहीं, तो और क्या कहेंगे कि जैसे-जैसे वह काली कमाई का कुबेर बनता रहा, वैसे-वैसे उसे प्रोन्नति पर प्रोन्नति मिलती रही। बीते वर्षों यह अभियंता सुरसा के मुंह की भांति दिनों-दिन भ्रष्टाचार के नये-नये आयाम स्थापित करता रहा।
जानकारों की मानें तो अरूण कुमार मिश्रा की राजनीतिक हैसियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बीते वर्षों ट्रोनिका सिटी घोटाले में तत्कालीन प्रबंध निदेशक बलबिंदर कुमार ने जब उसे निलंबित कराया, तो उन्हें खुद निलंबित होना पड़ा था। वर्ष 2006-07 के कार्यकाल में इस इंजीनियर ने सबसे पहले गाजियाबाद और फिर ट्रोनिका सिटी में भूखंड आवंटन और विकास कार्यों में तमाम घोटालों को अंजाम दिया। इसके आगे की दास्तान लम्बी है।
कहने में गुरेज नहीं कि यूपीएसआईडीसी के तत्कालीन प्रबंध निदेशक अमित कुमार घोष पहले ऐसे एमडी रहे जिन्होंने अरुण कुमार मिश्रा के घोटालों और मनमानी पर अपनी नजर तिरछी की। मिश्रा के विरुद्ध नियमानुसार जंग छेड़ी। उन्होंने सर्वप्रथम अरुण मिश्रा से परियोजना का काम वापस लिया। विभागीय चर्चा को सही मानें तो श्री घोष के इस कृत्य से उन लोगों ने राहत की सांस भी ली थी, जो भ्रष्टïाचारी मिश्रा को सलाखों के पीछे देखना चाहते थे या जो मिश्रा के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे।
जांच का विषय : मिश्रा देश के दिग्गज वकीलों को कहां से देते हैं फीस?
उत्तर प्रदेश स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कारपोरेशन यूपीएसआईडीसी के विवादित चीफ इंजीनियर अरुण मिश्रा कैसे एक लाख रुपये महीने तनख्वाह पाने वाला इंजीनियर देश के शीर्षस्थ वकीलों को अपना मुकदमा लडऩे के लिए हायर करने की क्षमता रखता है। ये शीर्षस्थ वकील हैं सोली सोराबजी, हरीश साल्वे, मुकुल रोहतगी और अन्य। अरुण मिश्रा अपने को बचाने के लिए इन टाप वकीलों की सेवाएं लेते रहे हैं। लेकिन इस सेवा लेने से एक सवाल खड़ा हो गया है कि वह इन्हें पैसा कहां से देते होंगे? क्या अरुण मिश्रा से केन्द्रीय एजेंसियों को यह नहीं पूछना चाहिए कि आखिर वह इतने बड़े बड़े वकीलों को प्रत्येक पेशी पर लाखों रुपये कहां से देते हैं? ज्ञात हो कि 2011 में सीबीआई ने अरुण मिश्रा को दिल्ली के पृथ्वीराज रोड और देहरादून में संपत्तियों को जब्त किया था। उस समय पृथ्वीराज रोड वाली लुटियन जोन इलाके की अकेली प्रापर्टी की कीमत करीब 300 करोड़ रुपये से अधिक आंकी गई थी। आय से अधिक संपत्ति के आरोपी अरुण मिश्रा की प्रतिमाह तनख्वाह ही जब एक लाख रुपये है, तो ऐसे में वह इतने महंगे वकीलों को फीस कहां से देते हैं? इन वकीलों के बारे में सब जानते हैं कि ये एक एक सुनवाई के दौरान उपस्थित होने के लाखों रुपये लेते हैं। अरुण मिश्रा के खिलाफ ढेर सारे केस हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चल रहे हैं। ऐसे में यह बखूबी समझा जा सकता है कि यह विवादित अभियंता कहां से अपने टाप लेवल के वकीलों को फीस देता होगा।
सीबीआई कर चुकी है गिरफ्तार
एक मुख्य अभियंता अपने पद का दुरुपयोग कर कैसे करोड़ों की हेरा-फेरी कर अपना और अपनों का घर भरता रहा? काली कमाई का कुबेर अरुण मिश्रा चन्द वर्षों में ही यूपी, उत्तराखंड और दिल्ली आदि प्रदेशों में बेशकीमती जमीन-जायदाद का मालिक भी बन गया। आय से अधिक सम्पत्ति को लेकर सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय ने जांच की, तो भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ। लगभग छह माह तक जेल की सलाखों के पीछे रहने के बावजूद जोड़-तोड़ में माहिर मिश्रा अपने राजनीतिक आकाओं के बूते उपहार स्वरूप दोबारा उसी जगह पर तैनाती पाने में कामयाब हुआ। गौरतलब है कि अरुण मिश्रा को सीबीआई ने 2011 में गिरफ्तार किया था।