उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन लिमिटेड के कर्मचारियों के पीएफ को निजी कंपनी में निवेश कर में हुए घोटाले की जांच कर रही सीबीआई ने दो पूर्व चेयरमैन समेत 3 आईएएस अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति मांगी है। यह अधिकारी 1984 बैच के आईएएस संजय अग्रवाल, आलोक कुमार प्रथम और यूपीपीसीएल में प्रबंध निदेशक रहीं अपर्णा यू. हैं।
जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश स्टेट पावर सेक्टर इम्प्लाइज ट्रस्ट एवं उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन अंशदायी भविष्य निधि ट्रस्ट में जमा यूपीपीसीएल के कर्मियों के जीपीएफ व सीपीएफ की 2631 करोड़ रुपये की धनराशि तत्कालीन संबंधित अधिकारियों ने मनमाने तरीके से निजी संस्था में नियम विरुद्ध निवेश किया। इस मामले में हजरतगंज थाने में एफआईआर होने केबाद पूरे मामले को आर्थिक अपराध अनुसंधान शाखा को सौंप दिया गया था। इस मामले में पूर्व एमडी एपी मिश्रा समेत लगभग एक दर्जन लोगों को गिरफ्तार किया गया था और दर्जनों लोगों से पूछताछ हुई थी। बाद में इस मामले को सीबीआई के सपुर्द कर दिया गया था। सीबीआई ने शुरुआती जांच के बाद अब उक्त तीन अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति मांगी है। शासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इसकी पुष्टि की है।
सीबीआई करेगी भूमिका की जांच
सूत्रों का कहना है कि इस मामले में सीबीआई को जो दस्तावेज हाथ लगे हैं, उसके मुताबिक आगे की कार्रवाई के लिए यह अनुमति मांगी गई है। पीएफ के पैसों को निजी कंपनियों में निवेश का फैसला दिसंबर 2016 से मार्च 2017 के बीच किया गया। इस दौरान यूपीपीसीएल के चेयरमैन संजय अग्रवाल और प्रबंध निदेशक एपी मिश्रा थे। अग्रवाल के जाने के बाद भी निजी कंपनी में निवेश की प्रक्रिया आगे जारी रही। संजय अग्रवाल के हटने के बाद आलोक कुमार प्रथम को यूपीपीसीएल का चेयरमैन बनाया गया था और अपर्णा यू को प्रबंध निदेशक बनाया गया था।
तत्कालीन एमडी, वित्त निदेशक और ट्रस्ट के सचिव हो चुके हैं गिरफ्तार
इस पूरे मामले में अब तक यूपीपीसीएल के तत्कालीन एमडी एपी मिश्रा, वित्त निदेशक सुधांशु द्विवेदी और ट्रस्ट के सचिव प्रवीण गुप्ता को पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है। सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता सीपीएफ ट्रस्ट और जीपीएफ ट्रस्ट दोनों का कार्यभार देख रहे थे।
उन्होंने तत्कालीन निदेशक वित्त सुधांशु द्विवेदी से अनुमोदन ले कर वित्त मंत्रालय, भारत सरकार के 2015 के आदेश को दरकिनार करते हुए भविष्य निधि फंड की 50 प्रतिशत से अधिक राशि को दीवान हाउसिंग फाइनेंस कॉरपोरेशन लिमिटेड (डीएचएफएल) नाम की निजी संस्था में निवेश कर दिया। जबकि उक्त संस्था अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक की श्रेणी में नहीं थी। शुरुआती जांच में पता चला था कि यूपीपीसीएल के कर्मियों के सामान्य भविष्य निधि का 2631.20 करोड़ रुपया डीएचएफएल में निवेश किया गया। इन अधिकारियों के अलावा डीएचएफएल के अधिकारियों को भी पूछताछ के बाद गिरफ्तार किया गया था।
पावर कार्पोरेशन के अस्तित्व में आने के बाद हुआ था ट्रस्ट का गठन
तारीख थी 14 जनवरी और सन था 2000। उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद को तीन भागों में बांट दिया गया था। यहां काम करने वाले सभी कार्मिकों को तीन कम्पनियों उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड, उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड और उत्तर प्रदेश जल विद्युत निगम लिमिटेड में स्थानांतरित किया गया।
इन तीनों कम्पनियों के कर्मियों के जीपीएफ, पेंशनरी अंशदान और ग्रेच्युटी अंशदान के रख-रखाव के लिए प्रॉविडेंट फंड एक्ट 1925 के तहत 29 अप्रैल 2000 को उत्तर प्रदेश स्टेट पावर सेक्टर इम्पलॉइज ट्रस्ट का गठन किया गया। साथ ही उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन लिमिटेड की सेवा में नियुक्त सभी कर्मिकों के भविष्य निधि के रख रखाव के लिए 25 जून 2006 को प्राविडेंट फंड एक्ट के तहत उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन अंशदायी भविष्य निधि ट्रस्ट का गठन किया गया था।