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शासन-प्रशासन की नाकामी, दिन-रात मनमानी

  • प्रशासन नहीं चाहता रुके यह मनमानी, यदि चाहता तो ठंडे बस्ते में न पड़ता रूट सर्वे
  • शहर में ई-रिक्शा के निर्धारित रूट 22, सर्वे के दौरान चलते मिले थे 157 से अधिक मार्गों पर
  • की गई थी 30 फिट से अधिक चौड़ी सडक़ों पर ई-रिक्शा संचालन पर पाबंदी लगाने की सिफारिश

शैलेन्द्र यादव 

0002लखनऊ। सरकार-ए-सरजमीं लखनऊ की शायद ही कोई सडक़ ऐसी हो, जो ऑटो, टैम्पों और बैटरी चलित ई-रिक्शा की मनमानी से अछूती हो। शहर के चौराहों और सडक़ों पर दिन-रात सार्वजनिक यातायात के इन साधनों की अराजकता जारी है। इनकी यह मनमानी लोगों को बेहाल कर रही है। सावन की हरियाली की तरह राजधानी की सडक़ों पर फर्राटा भर रहे बैटरी चलित ई-शिक्शा संचालकों की यह मनमानी शासन-प्रशासन की नाकामी बखूबी बयां करती है। आमजन का यह दर्द ऐसा है, जो डराता है इन साधनों में यात्रा करने वालों को। पर, विडंबना है कि सभी को इसकी जानकारी होने के बावजूद शहर का यह दर्द दूर नहीं हो पा रहा है।

ई-रिक्शा संचालक न नियम मानने को तैयार। न रूट की शर्त। कहीं चालक सीट संभाले बैठे नाबालिग, तो कहीं पलथी मार कर बैठे ई-रिक्शा चालक राजधानी की सडक़ों पर फर्राटा भरते दिख जायेंगे। नियमत: पांच सवारियों वाली इस सवारी में यह दस से ग्यारह को बैठाने में नहीं हिचकते। सवारियों की जान जोखिम में पड़े, तो पड़े। न इन्हें इससे मतलब और न शासन-प्रशासन को। जानकारों की मानें तो बीते फरवरी माह में राज्य सरकार द्वारा आयोजित किये गये निवेशकों के मेगा-शो इंवेस्टर्स समिट से पूर्व ई-रिक्शा संचालन से अव्यवस्थित हो चुकी शहर की सडक़ों पर इनकी संख्या और रूट सीमित करने की कोशिश शुरू की थीं। रूट सर्वे भी हुआ। मनमाना संचालन रोकने के लिये 31 मार्ग चिन्हित भी हुये। पर, इसके बाद न प्रशासन का ध्यान इस ओर गया और न शासन का। हालात यह हैं कि शहर के हर चौराहे पर चालक सवारी लेने की होड़ में मनमानी करते हैं। कोई दायें से झपटता है तो कोई बायें से। इस दौरान कोई चोटिल होता है, तो हो।

जानकारों की मानें तो प्रशासन द्वारा पूर्व में की गई इस कसरत में राजधानी के लगभग 157 से अधिक रूट पर ई- रिक्शा का संचालन मिला था, जबकि 22 रूट पर ही चलने की इन्हें अनुमति है। इस सर्वे में 30 फिट से अधिक चौड़ी सडक़ों पर ई-रिक्शे के संचालन पर रोक लगाने की बात भी कही गई थी। पर, अधिकारी सर्वे करके भूल गये और यह कार्रवाई भी ठंडे बस्ते में चली गई। शहर के चारबाग, नाका ङ्क्षहडोला, कैसरबाग बस स्टेशन चौराहा, मेडिकल कॉलेज चौराहा, चौक, ठाकुरगंज, डालीगंज, आइटी चौराहा, हजरतगंज, लालबाग, रकाबगंज, नक्खास, अमीनाबाद, इंदिरानगर, पॉलीटेक्निक, महानगर, अलीगंज, पुरनिया, कपूरथला और आलमबाग समेत शहर के दर्जनों ऐसे इलाके हैं जहां से गुजरने वाले लोग ई-रिक्शा संचालकों की मनमानी से परेशान हैं। पर, फिर भी कुछ नहीं बदलता। अराजकता की शिकार राजधानी की यातायात से आमजन परेशान हैं। विकासवादी सरकार की राजधानी पर यह मनमानी बदनुमा धब्बा है। राजधानी पुलिस के कैमरों में भी यह मनमानी कैद होती होगी। बावजूद इसके शहर में आखिर इन अव्यवस्थित सार्वजनिक यातायात के संचालकों की मनमानी किसकी शह पर चल रही है? यह सवाल गंभीर है।

मनमानी का शिकार हुई मां-बेटी
बीते दिनों केकेसी रेलवे ब्रिज के समीप सदर से चला एक अनियंत्रित ई-रिक्शा पलट गया। इसमें बैठे यात्रियों की जान पर बन आई। हादसे के बाद अपनी चोटिल बेटी को दिलाशा दे रही इस मां के आंशू राजधानी में संचालित सार्वजनिक यातायात के साधनों की मनमानी को बखूबी बयां कर रहे हैं। साथ ही इस मनमानी पर लगाम लगाने वाले प्रयासों को झुठलाते हैं। आमजन आहत हैं। बावजूद इनकी मनमानी बदस्तूर जारी है।

प्रशासन कब तक करेगा इन्तजार
संभागीय परिवहन अधिकारी एके सिंह के मुताबिक, पुलिस अधीक्षक यातायात रविशंकर निम के साथ शहर के विभिन्न इलाकों का दौरा कर अव्यवस्थित ई-रिक्शा संचालन को सीमित करने के लिये 31 रूट तय किये गये थे। इसकी रिपोर्ट शासन को भेजी गई थी। निर्देश मिलते ही इन्हें तय मार्गों पर संचालित कराया जायेगा।

रात में नहीं जलाते हेडलाइट
रात के वक्त तो ई-रिक्शा चालकों की मनमानी राहगीरों के लिये जानलेवा होती है। यह बैटरी बचाने के लिये रात में हेडलाइट तक नहीं जलाते। यहां तक कि चोरी की बिजली या अनाधिकृत तरीकों से बैटरी चार्ज करते हैं। प्रशासनिक अधिकारियों का दावा है कि लाइट न जलाने और मनमाने संचालन पर जुर्माना लगाया जाता है।

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