हर रूप में आदर्श राम के चरित्र का वर्णन भाषा और मजहब से परे
मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया और बौद्धिस्ट देश श्रीलंका और थाइलैंड में भी होती है रामलीला
मॉरीशस, सूरीनाम और ट्रीनीडॉड में गिरमिटियां संग पहुंचे राम वहीं के हो गये
गिरीश पांडेय
लखनऊ। हरि अनंत, हरि कथा अनंता, कहहिं, सुनहिं बहुिविधि सब संता । देश और दुनियां में होने वाली रामलीलाएं मैदानी, मंचीय और सचल इसके सबूत हैं। दरअसल परिवार, समाज और प्रजा के लिए पुत्र, भाई, पति, राजा और पिता के रूप में श्रीराम का चरित्र इतना आदर्श है कि कोई समाज इसकी अनदेखी कर ही नहीं सकता है। यही वजह है कि भाषा और मजहब की सारी हदों से परे आज भी दुनियां के कई देशों में रामलीलाओं का मंचन होता है।
मसलन 86 फीसद मुस्लिम आबादी वाले इंडोनेिशया और अंग्रेजी भाषी त्रिनिडाड में भी रामलीलाओं का मंचन होता है। बौद्धिस्ट देश श्रीलंका, थाइलैंड और रूस भी इसके अपवाद नहीं हैं। अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित माउंट मेडोना स्कूल में पिछले 40 वर्षों से जून के पहले हफते में रामलीला का मंचन होता है। आजादी के पहले पाकिस्तान स्थित करांची के रामबाग की रामलीला मशहूर है। अब इसका नाम आरामबाग है और मैदान की जगह कंक्रीट के जंगल हैं। मान्यता है कि सीता के साथ शक्तिपीठ हिंगलाज जाते समय भगवान श्रीराम ने इसी जगह विश्राम किया था।
भारत में वाराणसी की रामनगर इटावा के जसवंतनगर, प्रयागराज और अल्मोड़ा की रामलीलाएं मशहूर हैं। इनका स्वरूप अलग-अलग हो सकता है, पर सबके केंद्र में राम ही हैं। मसलन भुवनेश्वर में ये साही जातरा हो जाती है तो चमाेली में रम्मण। कुछ जगहों पर तो रामायण के अन्य प्रसंगों मसलन धनुष यज्ञ, भरत मिलाप को भी केंद्र बनाकर आयोजन होते हैं।
रही बात भारत की तो रामलीला का इतिहास 500 साल से भी पुराना है। हर दो-चार गांव के अंतराल पर अमूमन क्वार के एकम से लेकर एकादशी के दौरान रामलीला का आयोजन होता है। यहां के लोगों के लिए राम आस रामभरोसे हैं। दाता सबके दाता राम है। वह जो चाहेंगे वही होगा होइहि सोई जो राम रचि राखा है। लिहाजा वर्षों पहले कठिन हालातों में गिरिमिटिया के रूप में जो लोग मॉरीशस, टोबैगो, ट्रीनीडाड, सूरीनाम आदि देशों में गये, वह अपने साथ भरोसे के रूप में राम को ले गये। उनकी पहल से राममंदिर भी बने और रामलीलाएं भी शुरू हुईं। फीजी जैसे छोटे से देश में 50 से अधिक रामलीला मंडलियां हैं। ट्रीनीडॉड का रामलीला मंदिर करीब 100 साल पुराना है। उसी राम का जो हमारे लिए मर्यादा पुरुषोत्तम हैं उनके भव्यतम मंदिर निर्माण के लिए पांच अगस्त को अयोध्या में भूमि पूजन होना है। स्वाभाविक है कि वहां वे अपने सभी स्वरूपों में विराजमान हाेंगे।